2016-10-13 08:46:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ 77 वाँ भजन, भाग -3


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"क्या उसकी सत्यप्रतिज्ञता लुप्त हो गयी है? क्या उसकी वाणी युगों तक मौन रहेगी? क्या प्रभु दया करना भूल गया है? क्या उसने क्रुद्ध होकर अपना हृदय द्वार बन्द किया है? मैं कहता हूँ, "मेरी यन्त्रणा का कारण यह है कि सर्वोच्च प्रभु ने अपना दाहिना हाथ खींच लिया।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 77 वें भजन के नौ से लेकर 11 तक के पद जिनकी व्याख्या से हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। इन पदों में विभिन्न सवालों के माध्यम से भजनकार मनुष्यों को प्रभु के अपूर्व कार्यों का स्मरण दिलाता है। वह इस तथ्य को महसूस करता है कि जो कुछ वह प्रार्थना में कह रहा था वह उसके मन से उठे विचार नहीं थे बल्कि प्रभु ईश्वर की प्रेरणा से प्रेरित होकर ही वह प्रार्थना कर पा रहा था। अस्तु, हम भी जब प्रार्थना करते हैं तब यह न सोचें कि जो कुछ हम बोल रहे हैं, जो विचार हमारे मन में उठ रहे हैं वे हमारी अपनी बुद्धि की उपज है अपितु यह स्वीकार करें कि प्रभु ईश्वर की प्रेरणा के बग़ैर हम प्रार्थना करने में सक्षम नहीं हो सकते।

 

स्तोत्र ग्रन्थ के 77 वें भजन के 11 वें पद में भजनकार अपनी यन्त्रणा और अपने कष्ट का कारण बताकर कहता हैः "मेरी यन्त्रणा का कारण यह है कि सर्वोच्च प्रभु ने अपना दाहिना हाथ खींच लिया।" वह इस तथ्य से परिचित है कि उसके कष्ट और उसकी पीड़ा का एक ही कारण हो सकता था और वह यह कि वह ईश्वर से दूर हो गया था अथवा ईश्वर ने ही उसका परित्याग कर दिया था। सच तो यह है प्रभु ईश्वर किसी का परित्याग नहीं करते वे सबकी सुधि लेते हैं। यह सम्भव है कि ईश्वर से हमें वह उत्तर नहीं मिले जिसकी हमें अभिलाषा रहती है।

श्रोताओ, ईश्वर के महान कार्यों को दृष्टिगोचर कर लेने के बाद और उनके अनुपम कार्यों के आनन्द को महसूस कर लेने के बाद ही हम उनसे सम्वाद अथवा प्रार्थना करने में समर्थ बनते हैं। यह सदैव याद रखें कि यदि हमारे मन से इस प्रकार की प्रार्थना उठती है तो हमारा मनपरिवर्तन हुआ है और मनपरिवर्तन के फलस्वरूप ही हम यह जानने का विवेक पा सके कि जिस सृष्टिकर्त्ता प्रभु ईश्वर ने हमें रचा, वे ही हमारे संरक्षक और हमारे उद्धारकर्त्ता हैं इसीलिये हम उनसे ही प्रार्थना किया करें तथा संकट के क्षणों में उन्हीं को ऊँचे स्वर से पुकारें।

आगे 77 वें भजन के 12 से लेकर 15 तक के पदों में भजनकार कहता हैः "मैं प्रभु के महान कार्यों को याद करता हूँ, प्राचीन काल में उसके किये हुए चमत्कार। मैं तेरे सभी कार्यों पर विचार करता हूँ, तेरे अपूर्व कार्यों का मनन करता हूँ। ईश्वर तेरा मार्ग पवित्र है। कौन देवता हमारे ईश्वर जैसा महान है? तू वह ईश्वर है जो चमत्कार दिखाता है। तूने राष्ट्रों में अपना सामर्थ्य प्रकट किया।"

श्रोताओ, प्रार्थना करते समय भक्त में इस तथ्य के प्रति चेतना जागृत होती है कि जो कुछ वह कर सक रहा था वह सब ईश कृपा का फल था। इसीलिये प्रभु के महान कार्यों पर चिन्तन करता है। दर्शनशास्त्री रूप में प्रभु के कार्यों एवं ईश्वर के अस्तित्व पर अटकलें नहीं लगाता अपितु उनके महान कार्यों पर मनन-चिन्तन करने लगता है। उसमें यह चेतना जागृत होती है कि ईश्वर में कोई परिवर्तन नहीं आया, ईश्वर तो वही हैं जैसे वे आदि से हैं अपितु मनुष्य ही बदल जाता है। मनुष्य ही भरोसे और विश्वास के पुरुष से शक और सन्देह के अन्धेरे में बदल जाता है। इसीलिये प्रभु ईश्वर के महान कार्यों का स्मरण कर उन पर मनन करता है।

श्रोताओ, बाईबिल अध्ययन एवं पाठ और प्रार्थना एक ही सिक्के के दो बाजू हैं। इस स्थल पर ध्यान देना उचित होगा कि 77 वें भजन का रचयिता सर्वप्रथम यह घोषित करता है कि प्रभु ईश्वर पवित्र हैं, वे पापी एवं नश्वर मनुष्यों से बिलकुल अलग हैं। द्वितीय, ईश्वर स्वतः को तथा अपने कार्यों को मनुष्यों के जीवन में ही प्रकट करते हैं। तृतीय, वह इस तथ्य को स्वीकार करता है कि ईश्वर अनन्त हैं। एक प्रकार से 77 वें भजन का प्रार्थी एक बार फिर ईश्वर एवं उनके अपूर्व कार्यों की पुनर्खोज में सफल हो जाता है। श्रोताओ, ईश्वर ने हमारी सृष्टि की, वे हमारे संरक्षक और हमारे उद्धारकर्त्ता हैं इस बात को हम हालांकि जानते हैं किन्तु इसके प्रति सजग तब ही होते हैं जब हमें ईश्वर से कुछ मांगने की आवश्यकता पड़ती है।

भजनकार कहता है "मैं प्रभु के महान कार्यों को याद करता हूँ, ...मैं तेरे सभी कार्यों पर विचार करता हूँ, तेरे अपूर्व कार्यों का मनन करता हूँ।" जब मनुष्य को ईश्वर की ज़रूरत पड़ती है तब वह उनके अपूर्व कार्यों पर मनन कर मन ही मन यह प्रश्न करता है कि इतने अधिक चमत्कार करनेवाले उसके लिये क्योंकर एक चमत्कार नहीं कर पाते? सच तो यह है कि जब हम मनुष्य प्रार्थना करते हैं तब किसी न किसी चीज़ की कामना करते हैं, किसी न किसी चीज़ की अपेक्षा रखते हैं और 77 वें  भजन के प्रार्थी की तरह ही हमारी भी सोच होती है कि जिस ईश्वर ने सम्पूर्ण पृथ्वी और उसके राष्ट्रों पर अपना सामर्थ्य प्रकट किया वे ईश्वर हमारा एक छोटा सा काम क्यों नहीं कर सकता?

श्रोताओ, 77 वें भजन का प्रार्थी ईश्वर की कृपा से ही ईश्वर के बारे में बात करता और ईश्वर से बात करता है और इस प्रकार प्रार्थना में लीन हो जाता है। वह स्वीकार करता है कि ईश्वर ने महान कार्य किये हैं। प्रार्थना के क्षण वह यह भूल जाता है कि वह भी ईश्वर द्वारा मुक्ति प्राप्त प्रजा का सदस्य है। प्रभु ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की तथा अपने पुत्र प्रभु येसु ख्रीस्त के द्वारा हम मनुष्यों का उद्धार किया इसलिये ईश्वर के महान और अपूर्व कार्यों पर हम मनन-चिन्तन करें, उनसे प्रार्थना करें तथा यह कदापि न भूलें कि हम सब मुक्ति प्राप्त मानव परिवार के सदस्य हैं, हमारी प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जायेगी।








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