2016-10-03 16:42:00

भारत में भूख की समस्या के हल हेतु संगोष्ठी का आयोजन


राँची, सोमवार, 3 अक्तूबर 2016 (ऊकान): देश में गरीबी और कुपोषण की समस्या को कम करने के लिए ग़रीबों के बीच, कम कीमत पर खाद्यन्न के वितरण हेतु कानून लागू किये जाने की मांग को लेकर पूरे भारत के स्वयंसेवकों ने झारखंड की राजधानी राँची में एक संगोष्ठि का आयोजन किया।

खाद्य के अधिकार अभियान के राष्ट्रीय संचालक जेस्विट फा. अरूदया ज्योति ने कहा, ″भोजन का अधिकार अधिनियम 2013 में पारित किया गया था किन्तु कई राज्यों ने अब तक इसे लागू नहीं किया है जिसके कारण देश में बहुत अधिक कुपोषण है।″ 

उन्होंने कहा कि लोगों के अधिकारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने हेतु छटवें राष्ट्रीय सम्मेलन में भोजन एवं काम के अधिकारों पर जोर दिया गया। दो दिवसीय कार्यक्रम 25 सितम्बर को समाप्त हुआ जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों में दलित एवं आदिवासियों के बीच कार्यरत करीब 3,000 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी ने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून जनादेश के अनुसार राज्य सरकार को कम क़ीमतों पर 1.2 करोड़ लोगों के लिए खाद्यन्न उपलब्ध कराना है जिनमें अधिकतर लोग गाँवों में रहते हैं। इस कानून के तहत मध्याह्न भोजन योजना तथा बाल विकास योजना शामिल है। किन्तु तीन साल के बाद भी कई राज्यों ने इसे लागू नहीं किया है। झारखंड सरकार छः महीनों तक प्रदर्शन के बाद इसे केवल अभी लागू कर रही है।

उन्होंने ऊका समाचार से कहा, ″विभिन्न राज्यों के लोगों की एक बड़ी संख्या को अभी भी इस योजना से लाभान्वित कराये जाने की आवश्यकता है। हम आशा करते हैं कि इस सम्मेलन द्वारा लोगों में सरकार से भोजन के लिए अपने अधिकार की मांग के प्रति जागरूकता उत्पन्न होगी।″

भारत में कुपोषण के शिकार लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के कृषि संगठन विभाग की 2015 की रिपोर्ट अनुसार करीब 195 मीलियन लोग भूखे हैं जो भारत की कुल आबादी का 15 प्रतिशत है।

रिपोर्ट अनुसार भारत में कुपोषण संबंधी रोगों के कारण करीब 3,000 बच्चे प्रतिदिन मरते हैं। हर चार में से एक बच्चा भूख का शिकार है।

खूँटी धर्मप्रांत के समाजिक कार्यकर्ता फा. बिसू बेनजामिन ने कहा कि यह कानून आदिवासियों के लिए एक खतरा के समान है जो उन्हें आलसी तथा परिश्रमहीन बना सकता है। उन्होंने सलाह दी कि मुफ्त में भोजन पाने के बदले लोग खुद मेहनत करके भोजन अर्जित करने की कोशिश करें।

उन्होंने कहा कि आदिवासी लोग आदतन मेहनती हैं किन्तु यदि वे इस तरह के मुफ्त अनाजों पर आश्रित होने लगें तो उनका जीवन जोखिम में पड़ जायेगा।








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