2016-09-21 15:39:00

स्वर्गिक पिता जैसे दयालु बनो


वाटिकन सिटी, बुधवार 21 सितम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत प्रेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

हम ने संत लुकस रचित सुसमाचार से प्रभु वचनों का श्रवण किया जो हमारे लिए करुणा की जयन्ती वर्ष की विषयवस्तु को प्रस्तुत करता है, “दयालु बनो जैसे कि तुम्हारा स्वर्गिक पिता दयालु है।” यह हमारे सम्पूर्ण जीवन का एक नारा है। इसे समझने हेतु हम इन पदों की तुलना संत मत्ती के सुसमाचार से करें जो हमें कहता है “पूर्ण बनो जैसा तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।” (मती.5.48) पर्वत प्रवचन जो आर्शीवचन से शुरू होती है जहाँ येसु हमें प्रेम में परिपूर्ण बनने की शिक्षा देते हैं, जो संहिता के नियमों की परिपूर्णता है। इसी के समांतर संत लुकस प्रेम को करुणा की संज्ञा देते हैं जहाँ वे परिपूर्णता को करुणामय प्रेम के रुप में प्रकट करते हैं। निश्चय ही ईश्वर परिपूर्ण हैं और हम मानव ईश्वर की परिपूर्णता की बराबरी नहीं कर सकते हैं। हम ईश्वरीय परिपूर्णता को करुणा के रूप में समुचित रुप से समझ सकते हैं जहाँ वे हमें अपने प्रेम, करुणा और दया को जीने हेतु कहते हैं।

लेकिन क्या ईश्वर के शब्द यथार्थवादी हैं? क्या यह संभव है कि हम ईश्वर की भाँति एक दूसरे को प्रेम और करुणा प्रदर्शित करें सकते हैं? मानव इतिहास को देखने से हमें ईश्वर के अनंत प्रेम का एहसास होता है जिसे उन्होंने मानव के लिए प्रकट किया है। ईश्वर एक माता और एक पिता के समान हैं जो हर सृष्टि प्राणी पर अपने प्रेम की वर्षा करते हैं। येसु का क्रूस मरण मानव और ईश्वर के प्रेम कहानी के बीच की पराकाष्ठा है। ऐसा प्रेम केवल ईश्वर की ओर से किया जा सकता है। ईश्वर के इस प्रेम के समान और कोई दूसरा प्रेम नहीं हो सकता। मानवीय प्रेम में हमेशा तुष्टियाँ होती हैं। लेकिन जब येसु हमें अपने पिता के समान परिपूर्ण बनने को कहते हैं तो वे हमारी तुष्टियों का ध्यान नहीं रखते वरन् हमें करुणा और दया की एक निशानी बनने का आहृवान करते हैं।

संत पापा ने कहा कि कलीसिया दुनिया हेतु ईश्वरीय प्रेम का एक संस्कार बन सकती है। इस तरह हर ख्रीस्तीय अपने जीवन में करुणा का साक्ष्य देने हेतु बुलाया जाता है और यह पवित्रता के मार्ग में पूरी होती है। कलीसिया में जितने भी संत हुए उन्होंने प्रेम के इसी मार्ग का चुनाव किया और अपने को ईश्वर की दिव्य करुणा से प्रोषित होने दिया। उन्होंने अपने जीवन में अनुभव किये गये ईश्वरीय प्रेम को लोगों के लिए उड़ेला जो दुःख और मुसीबतों में पड़े हुए थे। हम करुणा के उनके कामों को येसु के करुणामय चेहरे में देख सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि “क्षमा करना” और “देना” इन दो क्रियाओं द्वारा येसु के शिष्यों हेतु करुणा की व्याख्या की जा सकती है। सर्वप्रथम दया, क्षमादान के रुप में व्यक्त होता है। “दोष न लगाओ और तुम पर भी दोष नहीं लगाया जायेगा। क्षमा करो और तुम्हें भी क्षमा मिल जायेगी।” (लूका. 37) येसु यहाँ न्याय के अर्थ को खारिज नहीं करते हैं लेकिन वे शिष्यों को इस बात की याद दिलाते हैं कि भ्रातृत्व पूर्ण संबंध में न्याय और सज़ा जैसी बातों को दूर रखने की आवश्यकता है। क्षमा हम ख्रीस्तीयों के जीवन का एक स्तंभ है जो हमारे जीवन के सजाये रखता है क्योंकि उदारता में सर्वप्रथम ईश्वर ने हमें प्रेम किया है। हमारा भाई पाप करता है उसका न्याय करना और उसे सज़ा देना गलत है। संत पापा ने कहा कि मैं ऐसा इसलिए नहीं कहता कि मैं पाप को मान्यता देता हूँ लेकिन ऐसे करने से हमारे भातृत्व संबंध में दरार आ जाती है और हम ईश्वर की दया का तिरस्कार करते हैं क्योंकि ईश्वर अपने बच्चों को खोना नहीं चाहते हैं। हमें गलती कर रहे भाई पर दोषारोपण करने की शक्ति है लेकिन हमारा एक फर्ज भी है कि हम ईश्वर के बेटे-बेटियों के रुप में उसके सुधार, उसके मन परिवर्तन हेतु उसका साथ दें।

कलीसिया इस बात पर जोर देते हुए कहती है, “दो और तुम्हें दिया जायेगा...। क्योंकि जिस माप से तुम मापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी मापा जायेगा।” ईश्वर हमें अपने कृपादानों से भर देते हैं और उसके लिए उनकी कृपा और भी बहुतायत में मिलती है जो उदारता में अपने को अन्यों के लिए देता है। येसु यहाँ “माप” शब्द का उपयोग करते हैं जो हमारे लिए एक चेतावनी की तरह उपयोग किया गया है जैसा हम करेंगे वैसा ही हमारे साथ किया जायेगा।

संत पापा ने कहा कि करुणामय प्रेम ही हमारे लिए एक मात्र मार्ग है। इसीलिए संत पौलुस कहते  है कि सभी वरदानों में प्रेम सबसे बड़ा है।(1 कुरि.13.1-12) यह येसु के शिष्यों को उनकी पहचान खोने नहीं देता और वे अपने को पिता के पुत्र की भांति पाते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा कि आप अपने जीवन को येसु के करुणामय उपहार हेतु खोलें और उन सभों के साथ साझा करें जिन्हें आप जानते हैं। स्वर्गीय पिता की संतान के रुप में आप सभी करुणा के प्रेरित बनें और इतना कहने के बाद संत पापा ने सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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