2016-09-21 15:45:00

संत पापा फ्राँसिस का शांति संदेश


संत पापा फ्राँसिस ने विश्व शांति दिवस के अवसर पर अपनी आसीसी के संत फ्राँसिस महागिरजाघऱ में शांति पर अपना चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि येसु के कथन “मैं प्यासा हूँ” मानवता की सबसे बड़ी जरूरत और दुःख है।

विश्व के विभिन्न देशों से आये विभिन्न धर्मावलंबियों के साथ अपने चिंतन को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि यह प्यासा भूख से बड़ी है जिसके लिए वे स्वयं गरीब मानव बन कर धरती पर आये। येसु किसके लिए प्यासे हैं? निश्चय ही पानी के लिए जो जीवन हेतु अति आवश्यक है। लेकिन इसके भी बढ़कर प्रेम के लिए जो जीवन में कम महत्वपूर्ण नहीं है। वे हमें अपने इसी प्रेम से प्रोषित करते हैं और बदले में हमसे इसी प्रेम की माँग करते हैं। नबी येरेमियाह ईश्वर के इस प्रेम की चर्चा करते हुए कहते हैं, “मुझे तेरे जवानी की भक्ति याद है जब तू मुझे नववधू की तरह प्रेम करती थी।” (येरे.2.2) लेकिन वे अपने दुःखों को भी व्यक्त करते हुए आज हमें कहते हैं “उन्होंने जीवन के स्रोत, मुझे त्याग दिया और अपने लिए टूटे हुए मटके तैयार कर लिए हैं जिसमें जीवन जल जमा नहीं किया जा सकता।” यह “मुरझाये हृदय” की दुर्दशा है जो प्रेम की चाह नहीं करती जिसका जिक्र हम सुसमाचार में पाते हैं जहाँ येसु को खट्टी अंगूरी पिलायी जाती है। 

“प्रेम, प्रेम नहीं है” यह सच्चाई असीसी के संत फ्राँसिस को व्यथित करती है। क्रूसित प्रभु येसु के प्रेम को उच्चरित करने हेतु वे लज्जा का अनुभव नहीं करते हैं। जब हम क्रूसित येसु के जीवन पर मनन करते हैं तो यही सच्चाई हमारे जीवन में भी व्याप्त हो कि येसु प्रेम के प्यासे हैं। कोलकता की मदर तेरेसा ने अपने धर्मसमाज के सभी समुदायों के गिरजाघरों में येसु के इस कथन “मैं प्यासा हूँ” को क्रूस की बगल में अंकित किया। उन्होंने येसु की प्यास को ग़रीबों से गरीब की सेवा करते हुए बुझाने की कोशिश की। येसु की यह प्यास हमारी प्रेममय ग़रीबों की सेवा द्वारा बुझायी जाती है। हम येसु को सांत्वना प्रदान करते हैं जब हम उनके नाम में झुककर दुःखियों की सेवा करते हैं। न्याय के दिन वे हमें अपने किये गये इन कामों हेतु धन्य कहेंगे जिसे हमने जरूरतमंद लोगों हेतु किया, “जो कुछ तुम ने मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों के लिए किया वह मेरे लिए किया।” (मत्ती. 25. 40)

येसु के वचन हमें चुनौती प्रदान करते हैं। क्रूस पर से कहे गये येसु के इस वचन को हम दुःखियों की आवाजों में, उन निर्दोष में जो संसार में छोड़ दिये गये हैं, गरीबों के रुदन में और उनमें जो शांति हेतु व्याकुल हैं, सुनते हैं। युद्ध ग्रस्त देश के हमारे भाई-बहनें जो बम विस्फोट के भय में अपना जीवन जीते और अपने जीवन की सुरक्षा हेतु अपने घरों को छोड़ने में बाध्य हैं, जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया है जो शांति की कामना करते हैं, वे क्रूसित येसु और उन्हें शरीर के घावों के अंग हैं, वे सभी प्यासे हैं। लेकिन उन्हें अपने जीवन में येसु की भाँति दुत्कार रुपी खट्टी अंगूरी पीनी पड़ती है। उनकी कौन सुनता है? उनकी चिंता कौन करता है? उन्हें लोगों के उदासीनता रूपी बहरेपन, स्वार्थ का समाना करना पड़ता है।

हम ख्रीस्तीय प्रेम और प्रेम की कमी के रहस्य पर चिंतन करने हेतु बुलाये गये हैं जिससे हम अपने करुणा के कार्यों को दुनिया में कर सकें। क्रूस जो जीवन का वृक्ष है जहाँ बुराई अच्छाई में परिवर्तित हो गई, हम भी जीवन के वृक्ष बनने हेतु निमंत्रित किये जाते हैं जहाँ उदासीनता प्रेम के शुद्ध वायु में परिणत हो जाती है। येसु की बगल से प्रवाहित जल पवित्र आत्मा की निशानी है जो हमें जीवन प्रदान करती है येसु का यह जीवन हमारी निष्ठा और करुणा के रुप में प्यासों के लिए प्रवाहित हो।

माता मरिया के समान येसु हमें अपने और दुःखियों के साथ संयुक्त रहने की कृपा प्रदान करें। वे जो अपने दुःखों के कारण क्रूस में अर्पित कर दिये गये हैं हम उनके साथ अपने को संयुक्त करते हुए क्रूसित और पुनर्जीवित येसु के सानिध्य में दुनिया के लिए एकता और आपसी भाईचारे की अटूट निशानी बने, क्योंकि वे हमारी शांति हैं। वे हमें अपने प्रेम में बनाये रखें और एक दूसरे से संयुक्त में मदद करें जिससे हम उनकी इच्छानुसार एकता में बने रहें।

 








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