2016-09-15 12:18:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, स्तोत्र ग्रन्थ 76 वाँ भजन


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"ईश्वर ने अपने को यूदा में प्रकट किया। उसका नाम इस्राएल में महान है। सालेम में उसका शिविर है और सियोन में उसका निवास। उसने वहाँ धनुष के बाणों को, शस्त्रों को, ढाल और तलवार को खण्ड-खण्ड कर दिया।" 

श्रोताओ, विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने स्तोत्र ग्रन्थ के 76 वें भजन की व्याख्या आरम्भ की थी। इस भजन की शुरुआत उक्त शब्दों से ही होती है जिसमें प्रतापी ईश्वर की वन्दना की गई है। भजनकार कहता है, "ईश्वर ने अपने के यूदा में प्रकट किया।" यह इसलिये कि पवित्र नगर जैरूसालेम की रक्षा के लिये यूदा में प्रभु ईश्वर की आराधना की जाती थी, उन्हें भेंट अर्पित की जाती थी। इस बात की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि स्तोत्र ग्रन्थ का 76 वाँ भजन नबी इसायाह के युग में लगभग वर्ष 701 ईसा.पूर्व. उस समय रचा गया था जब ईश्वर की दया से यूदा अस्सूर के राजा सेनहेरीब को पराजित कर पाया था। लोग ईश्वर की वन्दना करते रहे थे, उनसे रक्षा के लिये प्रार्थना करते रहे थे और उसी के परिणामस्वरूप जो कुछ यूदा में हुआ यानि कि सेनहेरीब की पराजय मनुष्य का कार्य न होकर प्रभु ईश्वर का प्रताप सिद्ध हुआ।

इस सन्दर्भ में हमने बाईबिल धर्मग्रन्थ के प्राचीन व्यवस्थान में निहित राजाओं के दूसरे ग्रन्थ के 19 वें अध्याय के कुछ अंशों का पाठ किया था जिसमें ईश्वर अपनी प्रजा से कहते हैं कि उन्होंने अस्सूर के राजा सेनहेरीब के विषय में उनकी प्रार्थना सुनी थी और अपने लोगों को आश्वासन दिया था कि अस्सूर का राजा उनके नगर में प्रवेश नहीं कर पायेगा क्योंकि प्रभु अपने नाम और अपने सेवक दाऊद के कारण इस नगर को बचा कर सुरक्षित रखेंगे।

भजनकार कहता हैः "सालेम में उसका शिविर है और सियोन में उसका निवास।" यहाँ सालेम शब्द जैरूसालेम के लिये प्रयुक्त हुआ है। जब सम्पूर्ण इस्राएल से तीर्थयात्री गाते-बजाते, ईश्वर की स्तुति करते जिस स्थल पर पहुँचे उन्होंने उसे "सालेम" नाम से पुकारा। यही सालेम आज का पवित्र नगर जैरूसालेम है। अस्सूर के राजा सेनहेरीब को पराजित कर प्रभु ईश्वर ने सालेम यानि जैरूसालेम को अपने पवित्र नगर रूप में पुनः प्रतिष्ठापित किया। उस नगर में उन्होंने अपने शिविर और अपने निवास की पुनर्पुष्टि की जो हमारे पूर्वज अब्राहम के काल से ईश्वर का पवित्र निवास कहलाता था।

श्रोताओ, बाईबिल आचार्यों के अनुसार सालेम का अर्थ जैरूसालेम के साथ-साथ शालोम अर्थात् "शांति" भी है, इसीलिये जैरूसालेम या सियोन को "शांति" का नगर कहा गया है। यह वही स्थल है जहाँ प्रभु ईश्वर ने लोगों पर अत्याचार करनेवाले आततायी अस्सूर के राजा को पराजित कर धनुष के बाणों को, शस्त्रों को, ढाल और तलवार को खण्ड-खण्ड कर दिया था और इसी नगर को चिरकाल के लिये शांति का, मुक्ति का तथा नवजीवन के नगर रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। इसीलिये 76 वें भजन के चार से लेकर आठ तक के पदों में ईश प्रजा प्रभु का गुणगान करती हुई कहती हैः "प्रभु! तू शक्तिशाली और प्रतापी है, शत्रुओं से लूटा हुआ माल पहाड़-जैसा ऊँचा है। शूरवीर चिरनिद्रा में सो गये। उन सब योद्धाओं का बाहूबल नष्ट हो गया। याकूब के ईश्वर! तेरी धमकी सुनकर रथ और युद्धाश्व निष्प्राण हो गये। तू आतंकित करता है। जब तेरा क्रोध भड़क उठता है, तो तेरे सामने कौन टिक सकता है?    

श्रोताओ, 76 वें बजन के इन शब्दों से भजनकार यह स्पष्ट करना चाहता है कि भले ही लूटा हुआ माल पहाड़ जैसा ही क्यों हो प्रभु के प्रताप के आगे सबकुछ धराशायी हो जाता है जैसे अस्सूर राजा के सैनिक निष्चेत पड़े रह गये थे। वस्तुतः, पापी व्यक्ति के लिये प्रभु का क्रोध भयंकर है। वह ईश्वर के न्याय को सहन नहीं कर पाता है क्योंकि ईश्वर बुराई की शक्तियों के बीच से शालोम को, शांति को बाहर निकाल लाते हैं जैसा कि 74 वें भजन में भक्त प्रार्थना करता हैः "ईश्वर, तू आदिकाल से मेरा राजा है और पृथ्वी पर लोगों का उद्धार करता आ रहा है... दिन तेरा है, रात भी तेरी है। तूने चन्द्रमा और सूर्य को स्थापित किया। तूने पृथ्वी के सीमान्तों को निर्धारित किया।"

सच तो यह है कि 76 वें भजन का रचयिता पाँचवे पद में यानि "प्रभु! तू शक्तिशाली और प्रतापी है, शत्रुओं से लूटा हुआ माल पहाड़-जैसा ऊँचा है" शब्दों में उसके अपने दिनों से लगभग 500 साल पहले घटी निर्गमन ग्रन्थ की घटना का स्मरण कर रहा था जिसमें प्रभु ईश्वर ने मिस्र के फराऊन एवं उसके योद्धाओं से इस्राएली लोगों की रक्षा की थी। अब ईश्वर सेनहेरीब और उसके योद्धाओं से यूदा की रक्षा कर रहे थे। श्रोताओ, कहने का तात्पर्य यह कि प्रभु ईश्वर अपने लोगों की सदैव सुधि लेते हैं। वे दीन-हीन लोगों की प्रार्थना को कभी नहीं ठुकराते तथा आततायियों के दमन चक्र से उनकी रक्षा करते हैं इसलिये हम भी प्रभु ईश्वर पर भरोसा रख, शुद्ध हृदय से उन्हें धन्य मनायें, उनका स्तुतिगान करें तथा सबकुछ के लिये उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया करें। ईश्वर प्रतापी विजेता हैं, उनमें अपने विश्वास को सुदृढ़ करते हुए हम ईश आदेशों के अनुकूल जीवन यापन करें।

आगे 76 वें भजन के नवें एवं दसवें पदों में भी भजनकार इसी विचार को जारी रखते हुए कहता हैः "ईश्वर! जब तू न्याय करने और दीन-दुखियों का उद्धार करने उठा, जब तूने स्वर्ग में अपना निर्णय सुनाया, तो पृथ्वी भयभीत होकर शांत हो गयी।" श्रोताओ, ईश्वर का न्याय तब-तब प्रकट हुआ जब-जब ईश प्रजा ने उन्हें पुकारा। फराऊन के अत्याचारों से त्रस्त जब इस्राएली प्रजा ने ईश्वर को पुकारा तब ईश्वर की महिमा प्रकट हुई। अस्सूरी राजा सेनहेरीब ने जब लोगों को प्रताड़ित किया तब ईश्वर यूदा में प्रकट हुए इसी कारण बाईबिल पंडित मानते हैं कि बुराई इसीलिये उभरी कि प्रभु ईश्वर की महिमा पृथ्वी के सीमान्तों तक छा जाये। प्रभु येसु ख्रीस्त के दुखभोग के विषय में भी सन्त पेत्रुस के अधरों से निकले शब्दों को हम प्रेरित चरित ग्रन्थ के दूसरे अध्याय के 23 वें पद में इस प्रकार सुनते हैं: "वह ईश्वर के विधान तथा पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाये गये और आप लोगों ने विधर्मियों के हाथों उन्हें क्रूस पर मरवा डाला। किन्तु ईश्वर ने मृत्यु के बन्धन खोलकर उन्हें पुनर्जीवित किया।"








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