2016-09-08 11:46:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय (स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 75 एवं 76


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"न तो पूर्व से, न पश्चिम से और न मरुभूमि से उद्धार सम्भव है। ईश्वर ही न्यायकर्त्ता है; वह एक को नीचा दिखाता और दूसरे को ऊँचा उठाता है।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 75 वें भजन के सातवें और आठवें पदों में निहित शब्द। विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने इन पदों की विस्तृत व्याख्या की थी। वस्तुतः 75 वें भजन में ईश्वर को सृष्टिकर्त्ता एवं संसार का एकमात्र न्यायकर्त्ता घोषित किया गया है। यह भजन ईश्वर के अपूर्व कार्यों का बखान करता है। ईश्वर के अपूर्व कार्यों को देख लेने के बाद भजनकार उनमें अपने इस विश्वास की अभिव्यक्ति करता है कि ईश्वर ही मनुष्य को कष्टों एवं संकटों से बचानेवाले हैं। उद्धारकर्त्ता केवल प्रभु ईश्वर हैं और प्रभु ही निर्धारित समय आने पर भक्त का उद्धार करते हैं। इस भजन में मनुष्य को चेतावनी भी दी गई है कि वह अपने आप पर घमण्ड कदापि न करे क्योंकि ईश्वर की कृपा और उनकी अनुकम्पा के बिना वह कुछ भी कर सकने में समर्थ नहीं हो सकता है।

प्राचीन काल के अखाड़ों में खिलाड़ियों की मुठभेड़ में किसे मार डाला जाना और किसे ऊपर उठाया जाना था इसका फ़ैसला राजा पर निर्भर रहा करता था। राजा ही अपना अँगूठा ऊपर अथवा नीचे दिखाकर अपना निर्णय प्रकट करता था, उसी के सन्दर्भ में 75 वें भजन के आठवें पद में भजनकार "ऊँचा उठाना" शब्दवली का प्रयोग करता है और कहता है कि किसे मार डाला जाना और किसे ऊपर उठाया जाना यह ईश्वरीय न्याय पर ही निर्भर है। न्यायकर्त्ता प्रभु ईश्वर ही जानते हैं  कि किसे नीचा दिखाना है और किसे ऊपर उठाना। अस्तु, मनुष्य सदैव उन्हीं से प्रार्थना करे तथा उनके प्रति धन्यवाद अर्पित किया करे।

आगे, 75 वें भजन के नवें पद में भजनकार कहता हैः "तिक्त उफनती मदिरा से भरा, प्रभु के हाथ में एक प्याला है। वह उस में से उँडेलता है–पृथ्वी के सब दुष्ट जनों को उसे तलछट तक पीना है।" इस तथ्य की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि यह भजन 74 वें भजन में वर्णित कोलाहल का प्रतिनिधित्व करता है। भजनकार कहता है कि यदि मनुष्य मरुभूमि पर चिन्तन करेगा तो अवश्य ही उसका साक्षात्कार मानवीय अस्तित्व के भयावह पक्ष से होगा। यहाँ हम श्रोताओ को बता दें कि मरुभूमि जंगली जानवरों और सांपों, राक्षसों और जिन्नों का उजाड़ प्रदेश था और जब-जब उस युग के लोग मरुभूमि से गुज़रने के लिये बाध्य होते थे तब उनके मन में यही भय समाया रहता था कि वे उससे आगे निकल कर अपने मुकाम पर पहुँच पायेंगे या नहीं। इसीलिये भजनकार कहता है कि मरुभूमि से उद्धार केवल ईश्वर से प्रार्थना कर ही सम्भव हो सकता है। इस स्थल पर हमने आपको स्मरण दिलाया था कि सन्त योहन बपतिस्ता एवं स्वयं प्रभु येसु ख्रीस्त ने भी इसी प्रकार की मरुभूमि अथवा उजाड़ प्रदेशों में रहकर मनन-चिन्तन किया था तथा शैतान के प्रलोभनों को पराजित किया था।

स्तोत्र ग्रन्थ के 75 वें भजन के अन्तिम पदों में भजनकार ईश्वर की स्तुति करता है तथा स्तुति करने का कारण बताता है। वह एक विश्वासी, धर्मपरायण और सत्यनिष्ठ व्यक्ति है जिसने ईश्वरीय क्षमा का सुखद अनुभव पाया है, वह एक नवीकृत, ताज़गी से भरा और आनन्दमय व्यक्ति है और इसी के फलस्वरूप वह साहसपूर्वक कहता हैः "मैं सदा इसकी घोषणा करता रहूँगा, मैं याकूब के ईश्वर की स्तुति करूँगा। मैं सब दुष्टों का सिर झुकाऊँगा, किन्तु धर्मी का सिर ऊँचा उठाया जायेगा।" 

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 76 वें भजन पर दृष्टिपात करें। इस भजन में प्रतापी ईश्वर की वन्दना की गई है। इसके प्रथम चार पद इस प्रकार हैं: "ईश्वर ने अपने के यूदा में प्रकट किया। उसका नाम इस्राएल में महान है। सालेम में उसका शिविर है और सियोन में उसका निवास। उसने वहाँ धनुष के बाणों को, शस्त्रों को, ढाल और तलवार को खण्ड-खण्ड कर दिया।" 

पवित्र नगर की रक्षा के लिये यूदा में प्रभु ईश्वर की आराधना की जाती थी। इसीलिये भजनकार कहता है, "ईश्वर ने अपने के यूदा में प्रकट किया।" बाईबिल आचार्यों का मानना है कि स्तोत्र ग्रन्थ का 76 वाँ भजन नबी इसायाह के युग में लगभग वर्ष 701 ईसा.पूर्व. उस समय रचा गया था जब ईश्वर की दया से यूदा अस्सूर के राजा सेनहेरीब को पराजित कर पाया था। लॉर्ड बायरन ने अपनी एक रचना में इसका ज़िक्र किया है, इसमें कवि अपने शब्दों को कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त करते हैं, "अस्सिरियाई राजा प्रभु की चरागाह पर भेड़ियों की तरह टूट पड़ा था। उसके प्यादों ने बैंगनी एवं स्वर्ण वर्ण के परिधान धारण कर रखे थे और उनकी तलवारें गलीलियाई सागर में झिलमिलाते पानी में दिखनेवाले तारों के सदृश चमक रही थीं किन्तु ईश्वर की एक झलक पड़ने पर उनकी तलवारों की चमक जाती रही थी।" 

श्रोताओ, यूदा में जो कुछ हुआ वह मनुष्य का कार्य न होकर प्रभु ईश्वर का प्रताप था। इसकी कहानी हम राजाओं के दूसरे ग्रन्थ में पढ़ सकते हैं। इस ग्रन्थ के 19 वें अध्याय के 20 वें और 21 वें पदों में लिखा हैः "उस समय आमोस के पुत्र इसायाह ने हिज़किया के पास यह कहला भेजा, "प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है: मैंने अस्सूर के राजा सेनहेरीब के विषय में तुम्हारी प्रार्थना सुनी है। सेनहेरीब के विरुद्ध प्रभु का कहना इस प्रकार है – सियोन की कुँवारी पुत्री तुम्हारा तिरस्कार और उपहास करती है। येरूसालेम की पुत्री तुम्हारे पीठ पीछे सिर हिलाती है। तुमने किसकी निन्दा और अपमान किया है? तुमने किसके विरुद्ध आवाज़ उठायी है? तुमने किसकी ओर अहंकार से आँखें उठाई हैं? इस्राएल के परम पावन ईश्वर के विरुद्ध?" फिर, इसी अध्याय के 30 से लेकर 34 तक के पदों में इसायह के श्रीमुख से हम इन शब्दों को सुनते हैं: "अस्सूर के राजा के विषय में प्रभु यह कहता है: वह इस नगर में प्रवेश नहीं करेगा। वह इस पर एक बाण भी नहीं छोड़ेगा। वह ढाल लेकर उसके पास नहीं फटकेगा और उसकी मोरचाबन्दी नहीं करेगा। वह जिस रास्ते से आया है उसी रास्ते से लौट जायेगा। वह इस नगर में प्रवेश नहीं करेगा, यह प्रभु की वाणी है। मैं अपने नाम और अपने सेवक दाऊद के कारण यह नगर बचा कर सुरक्षित रखूँगा।"








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