2016-09-07 15:41:00

संत पापा ने धर्मशिक्षा माला में करुणा के वाहक बनने का आहृवान किया


वाटिकन सिटी, बुधवार 07 सितम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत प्रेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

हमने संत मत्ती के सुसमाचार से पाठ सुना जो हमें येसु ख्रीस्त के रहस्य में और अधिक गहराई से प्रवेश करने हेतु मदद करता है जिससे हम उनकी करुणा और दया को अपने जीवन में अंगीकृत कर सकें। इस परिदृश्य में योहन बपतिस्ता अपने चेलों को इस सवाल के साथ येसु के पास भेजते हैं, “क्या वे वही हैं जो आने वाले थे या वे और किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें?” योहन बपतिस्ता अधीरता से मुक्तिदाता का इंतजार करते और वे अपनी शिक्षा में उनका जिक्र करते हुए कहते हैं कि वे एक न्यायकर्ता की तरह आयेंगे जो ईश्वर के राज्य की स्थापना की पहल करते हुए लोगों को उनके अच्छे और बुरे कर्मों का फल प्रदान करेंगे। उन्होंने यह कहते हुए उपदेश दिया, “अब पेड़ की जड़ों पर कुल्हाड़ा लग चुका है। जो पेड़ अच्छा फल नहीं देता, वह काटा और आग में झोंक दिया जायेगा।” (मत्ती.3.10) लेकिन येसु अपने प्रेरितिक कार्यों की शुरुआत एकदम अगल रूप में करते हैं, अतः योहन यह जानना चाहते हैं कि क्या वही आने वाले मसीह हैं यह वे किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें।

येसु का योहन के शिष्यों को दिया गया जवाब देखने और सुनने में सीधा उत्तर नहीं लगता है क्योंकि येसु कहते हैं, “जाओ, तुम जो सुनते और देखते हो, उसे योहन को बता दो, अंधे देखते हैं, लंगडे चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है और धन्य है वह, जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठता है।” (मत्ती.11.4-5) यहाँ हम येसु के विचारों को स्पष्ट रुप से देखते हैं। वे कहते हैं कि पिता की करुणा जिसका अनुभव हम अपने जीवन में करते हैं हमें सांत्वना और मुक्ति प्रदान करती है और यही ईश्वर का न्याय है। अंधे, लंगडे, कोढ़ी, बहरे अपने जीवन में चंगाई प्राप्त करते हुए समाज में एक सम्मान जनक जिन्दगी प्राप्त करते हैं। वे अपनी बीमारी के कारण समाज से पृथक नहीं किये जाते हैं। मृतक जिलाये जाते हैं जबकि ग़रीबों को सुसमाचार का संदेश सुनाया जाता है। ये येसु के कार्य हैं जो पिता के मुक्तिदायी कार्यो को साक्षात रुप में प्रकट करते हैं।

इसके द्वारा कलीसिया को यही संदेश मिलता है कि पिता ने अपने बेटे येसु ख्रीस्त को दुनिया में इसलिए नहीं भेजा कि वे पापियों को सज़ा दें और दुष्टों का सर्वनाश करें, वरन् उन्हें पश्चाताप का संदेश दें जिससे वे ईश्वर की दिव्य निशानियों को देख कर उनकी ओर वापस लौट सकें, जैसा कि स्तोत्र कहता है, “प्रभु यदि तू हमारे अपराधों को याद रखेगा, तो कौन टिका रहेगा? तू पापों को क्षमा करता है इसलिए लोग तुझ पर श्रद्धा रखते हैं।” (स्तो.130.3-4)

योहन बपतिस्ता के उपदेश का मुख्य बिन्दु न्याय है जो येसु के करुणामय कार्यों द्वारा परिलक्षित होता है। इस तरह अग्रदूत का संदेश येसु के कामों को देख आश्चर्य में परिणत हो जाता है। हम यहाँ येसु के वचनों को समझते हैं जो कहता है कि धन्य है वह जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठता है। यहाँ विश्वास का उठना एक “अवरोध” को दिखलाता है और येसु इसके विरूद्ध हमें सचेत करते हैं। येसु के करुणामय कार्यों को देख कर भी हमारा उन पर से विश्वास उठना, हमारी समझ में मुक्तिदाता के एक मिथ्या रुप को दिखलाता है।

लोग आज भी ईश्वर के इस झूठे रूप को अपने में धारण करते हैं जो उनके जीवन में ईश्वर की सच्ची उपस्थित से दूर कर देती है। कुछ लोगों में विश्वास की यह चाह ईश्वर को एक सीमित दायरे में बाँध कर रख देती हैं क्योंकि वे अपने ही इच्छाओं में खोये रहते हैं। ईश्वर द्वारा प्रकट रहस्य भी उनके मन दिल को परिवर्तित नहीं करता। कुछ हैं जो ईश्वर को मूर्ति समान देखते हैं जिसका नाम ले कर वे अपने विचारों को सत्य प्रमाणित करते तथा घृणा और हिंसा फैलाते हैं। कुछ हैं जो ईश्वर को मनोवैज्ञानिक आश्रय के रुप में देखते हैं जो केवल अपने आप में विश्वास करना है। कुछ हैं जो ईश्वर को मात्र एक अच्छे शिक्षक की तरह देखते जो नौतिक शिक्षा देते हैं। और कुछ हैं जो विशुद्ध रुप में येसु पर विश्वास करते जो दुनिया और विश्व को बदल सकते हैं। आइए हम पिता से निवेदन करे कि वे हमें अपनी बाधाओं से ऊपर उठ कर अपने रहस्यमय प्रेम में विश्वास करने की कृपा प्रदान करें जिससे हम उनकी करुणा के वाहक बन सकें।

और इतना कहने के बाद संत पापा ने सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया और उन्हें करुणा की जयन्ती वर्ष की मंगलकामनाएँ अर्पित की और अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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