2016-09-05 15:57:00

संत तेरेसा पवित्रता की ज्योतिपुंज


वाटिकन सिटी, सोमवार, 05 सितम्बर 2016 (सेदोक) वाटिकन राज्य के सचिव कार्डिनल पियेत्रो परोलीन ने मिशनरी ऑफ चौरिटी धर्मसमाज की संस्थापिका मदर तेरेसा की संत घोषणा के उपरान्त सोमवार 05 सितम्बर 2016 को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में धन्यवादी यूख्रारिस्त बलिदान अर्पित करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि वे हमारे लिए पवित्रता की ज्योतिपुंज हैं।
उन्होंने कहा कि हम अपनी खुशी को दिल में संजोये हुए ईश्वर के द्वारा दिये गये उपहार कोलकाता की संत मदर तेरेसा हेतु ईश्वर का धन्यवाद अदा करने के लिए संत प्रेत्रुस के प्रांगण में पुनः जमा हुए हैं। हम ईश्वर को कोलकता की संत तेरेसा के साहसिक विश्वास की अभिव्यक्ति हेतु धन्यवाद देते हैं जिसने द्वारा ईश्वर ने अपनी कलीसिया को फलप्रद बनाया और अपने लोगों हेतु अपने प्रेम का निश्चित प्रमाण प्रस्तुत किया है।

संत तेरेसा के लिए प्रार्थना में निरंतरता कार्यो की शक्ति बनी जिसके द्वारा हमें ईश्वर के प्रेम और सेवा का अद्भुत साक्ष्य मिला जिसे उन्होंने मुख्यतः गरीब, परित्यक्त और असहाय लोगों हेतु किया। यह हमें अपने जीवन को ईश्वर के अच्छे शिष्यों की तरह जीने हेतु प्रेरित करता है।
वह कहा करती थी, “मैं ईश्वर के हाथों में एक लेखनी की माफिक हूँ।” इसी छोटी लेखनी द्वारा प्रेम, करुणा और संवेदना की कविता गरीबों और दीन-दुःखियों हेतु लिखी गई जिनके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया था।
यह तथ्य इस बात का उजागर करता है कि उन्हें “बुलाहट के मध्य एक बुलाहट” मिली जब सन् 1946 में वे अपनी आध्यात्मिक साधना हेतु यात्रा कर रही थीं। “मैंने अपनी आंखें दुःखियों के लिए खोला और अपने बुलावे का मर्म गहराई से समझा।” मुझे ऐसे प्रतीक हुआ कि ईश्वर मुझे अपने शांतिमय धर्मसमाज से बाहर निकले को कह रहे हैं जिससे मैं गलियों के गरीबों की सेवा कर सकूँ। यह एक सुझाव, प्रस्तावना या निमंत्रण नहीं वरन् यह एक आज्ञा थी।

मदर तेरेसा ने दुःखियों के लिए हमारी आँखों को खोल दिया। उन्होंने उन्हें करुणामय भाव से आलिंगन किया क्योंकि उनके दुःखों को देख कर वह द्रवित हो जाती मानों येसु का हृदय छेदित किया जा रहा हो। संत पापा ने जयन्ती वर्ष की घोषणा में लिखा था, “हम उदासीनता के शिकार न हों जो हमें शर्मिदा करती, जो हमारी संवेदना को नम कर देती है और हमें भलाई के कार्य करने से रोकती है, बल्कि हमें दुनिया की तकलीफें, हमारे भाई-बहनों के व्यक्तिगत मर्यादा के जख्म के प्रति अपनी आंखें खोलने की जरूरत है, हम उनकी सहायता के रूदन सुन कर उत्तेजित हों। हमारे हाथ उन्हें सहारा देने हेतु उठें क्योंकि उन्हें हमारी उपस्थिति, मित्रता और भाईचारे का सुकून मिलता है।
कर्डिनल ने कहा, “लेकिन मदर तेरेसा के जीवन का रहस्य क्या है?” यह निश्चय ही रहस्य नहीं है क्योंकि हमने सुसमाचार में इसे घोषित किया है। “मैं तुम से कहता हूँ जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों के लिए किया, तुमने वह मेरे लिये किया। (मती. 25.40)

मदर तेरेसा ने गरीबों में ईश्वर के चेहरे को पाया, “जो हमारे लिए दीन-हीन बन गये जिससे हम उनकी निर्धनता से धनी बन सकें।” अतः उन्होंने अपने जीवन को ग़रीबों के लिए खोला और उन्हें शर्तहीन स्नेह दिखलाया। ईश्वर का प्रेम हमें प्रेरित करता है और इस प्रेम में वह करुणा की प्रदीप्त निशानी बन गयीं। संत पापा ने उनके संत घोषणा समारोह में कहा था, “करुणा उनके लिए “नमक” की तरह बन गया जिसके द्वारा उनके कामों में मिठास भर गये। उनके कार्य “दीपक” की तरह अंधकार में उनके लिए रोशनी बन गयी जिनकी आँखों में अपने दुःखों को व्यक्त करने हेतु आँसू की बूंदें भी नहीं थीं।” वह येसु के प्रेम से जगमागती थी जिसे उन्होंने अपनी प्रार्थनाओं, पवित्र संस्कार की आराधना और यूख्रारीस्त में अनुभव किया था। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन सदैव यूख्रारीस्त से पोषित हो यदि हम येसु को रोटी के रुप में न देख पायें तो हमारी मुलाकात उनसे गरीबों में हो।

उन्होंने इस बात का भी अनुभव किया कि गरीबी का एक रुप प्रेम का अभाव है जहाँ हम नकार दिये जाते, दूसरों के द्वारा घृणा किये जाते हैं। यह ग़रीबी हमारे देशों में व्याप्त है। लोगों के पास सारी चीजें उपलब्ध हैं लेकिन उनका आन्तरिक खालीपन, उनके जीवन को बोझिल बनाता जिसके कारण वे परित्यक्त अनुभव करते जो उनमें बेचैनी उत्पन्न करती और उन्हें अशांत कर देती है।
जीवन की इस स्थिति ने अजन्म शिशुओं के जीवन को खतरे में डाल दिया है। बच्चे अपने में जीवन की एक परियोजना को लेकर आते हैं जिसे हमें स्वीकारने और समझने की आवश्यकता है जिससे वे हमारी तरह समाज का एक अंग बन सकें। ईश्वर हमारे द्वारा अपने प्रेमपूर्ण कामों को पूरा करना चाहते हैं। अतः संत मदर तेरेसा ने साहसपूर्वक शिशुओं के जीवन की सुरक्षा का बीड़ा उठाया।
उनके जीवन में हम करुणा के साहसिक कार्य और सुसमाचार की सच्चाई का समिश्रण पाते हैं। उनका यह समर्पण सदैव प्रर्थनामय जीवन से प्रेरित रहा जिसके कारण उन्होंने मानवता हेतु कार्य करने में कभी थकान का अनुभव नहीं किया। उन्होंने अपने सारे कामों को प्रेम से प्रेरित हो कर नम्रता और दीनता में पूरा किया।
11 दिसम्बर सन् 1979 को ओस्लो में अपने नोबल पुरस्कार प्राप्ति के दौरान उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, “हमारे लिए यह अनुभव करना अति महत्वपूर्ण है कि सच्चा प्रेम तकलीफ दायक होता है। येसु को अपना प्रेम प्रदर्शित करने में हमें दर्द का अनुभव होता है।” उन्होंने पुरस्कार हेतु धन्यवाद अदा करते हुए कहा, “मैं नहीं चाहती कि आप मझे अत्यधिक दें लेकिन मैं चाहती हूँ आप के देने में दर्द की अनुभूति हो।” 
कार्डिनल ने कहा कि उनके इन शब्दों में हम जीवन की गहराई में प्रवेश करते और उस गहराई में ईश्वर के अनमोल प्रेम का अनुभव करते हैं। ईश्वर ने अपने इसी प्रेम के कारण हमें अपना सब कुछ दे दिया। प्रेम में ईश्वर के लिए किये गये कार्य दिल में एक दर्द की अनुभूति ले कर आता है क्योंकि अपने किये गये कामों के कारण हम दूसरों के लिए टीका-टिप्पणी का कारण बनते हैं जो कि मानवीय कमजोरी और उनके पापों को दिखलाता है।
मदर तेरेसा की दूसरी आध्यात्मिक बातें जो हमें उनके पत्र “द डार्क नाईट ऑफ फेथ” के द्वारा ज्ञात होता है जिसे उन्होंने अपने आध्यात्मिक संचालक को लिखा। उन्हें अपने निःस्वार्थ कामों और प्रार्थनाओ के बावजूद ईश्वर से अत्यधिक दूरी और उनके मौन धारण का अनुभव हुआ, जैसे कि येसु ख्रीस्त ने क्रूस के काठ में अनुभव किया था और अपने पिता से कहा था, “मेरे ईश्वर, मेरे ईश्वर तुने मुझे क्यों छोड़ दिया है।” (मत्ती, 27.26)
क्रूस से येसु के द्वारा उच्चरित सात वाक्यों में से एक “मैं प्यासा हूँ” जिसे उन्होंने अपने धर्म समाज के सभी घरों में अंकित करना चाहा। यह प्यास निर्मल और शुद्ध जल की है, यह प्यास आत्मों की भूख और प्यास है जहाँ वे ईश्वर को पाने की चाह रखते हैं। यह वही प्यास थी जिसने मदर तेरेसा को लोगों की सेवा हेतु प्रेरित किया जिसके द्वारा उन्होंने ईश्वर की महिमा और स्तुति की। अपने किये गये कामों के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार और अन्य उपहार मिले विशेष कर उनका धर्मसमाज जिसके द्वारा उनकी धर्मबहनें मानवता की सेवा करना जारी रखी हैं। अब वे स्वर्ग में मरियम, ईश्वर की माँ और संतों के साथ विद्यमान हैं जहाँ उन्हें सर्वोतम् पुरस्कार मिला है जो दुनिया के शुरू से ही उनके लिए तैयार किया गया था।
जब उनकी मृत्यु 5 सितम्बर 1997 को हुई, तो थोड़े क्षण के लिए ऐसा लगा मानो कोलकाता शहर अंधकारमय हो गया हो। उनकी मृत्यु पर स्वर्ग हमें यह कहती जान पड़ी देखो तुम्हारे लिए एक नई ज्योति का उदय हुए है। अब अधिकारिक रुप में संत घोषणा के उपरान्त वे अपनी पवित्रता में और अधिक देदीप्यमान हैं। सुसमाचार की यह अनंत ज्योति हमारी सांसारिक तीर्थयात्रा की कठिनइयों में ज्योतिपुंज बनें। संत मदर तेरेसा सदैव हमारे लिए प्रार्थना करे। 








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