2016-09-05 15:49:00

संत घोषणा के पूर्व कार्डिनल अमातो से द्वारा कहे गये शब्द


वाटिकन सिटी, सोमवार, 05 सितम्बर 2016 (वी आर सेदोक): मदर तेरेसा की संत घोषणा के पूर्व परमधर्मपीठीय संत प्रकरण परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल अंजेलो अमातो ने नये संत के बारे में एक संक्षिप्त जीवनी प्रस्तुत की।

उन्होंने कहा कि इस दीन धर्मबहन को उनके मातृतुल्य प्रेम के कारण दुनिया उन्हें ‘मदर तेरेसा’ पुकारती थी। उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण येसु ख्रीस्त का अनुसरण एक भले समारी के समान किया। उनके दिल में लोगों के प्रति आत्मीयता के भाव भरे हुए थे, विशेष कर, उनके लिए जो दुःख में पड़े थे और समाज में हाशिये पर जीवन यापन करते थे। अपने जीवन और व्यवहार द्वारा उन्होंने उन्हें ईश्वरीय प्रेम का एहसास कराया।

संत तेरेसा की जीवनी के बारे में एक संक्षिप्त विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोपजे के अल्बानियाई परिवार में हुआ था। अपने युवा अवस्था से ही वे अपनी पल्ली के कामों में बढ़ चढ़ तक हिस्सा लेती थी। मिशनरी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने लोरेटो की धन्य कुंवारी मरियम धर्मसंघ में एक पोस्टुलन्ट के रुप में प्रवेश किया। अपने नवशिष्यालय के अंत में उन्हें भारत के दार्जलिंग शहर भेजा गया जहाँ उन्होंने अपने प्रथम व्रत के साथ ही अपना नाम तेरेसा रखा। उन्होंने एक शिक्षिका के रुप में संत मेरी बंगाली मध्य विद्यालय कोलकाता के निकट 17 वर्षों तक अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।

कोलकता से दर्जलिंग की रेल यात्रा के दौरान उन्हें अपनी बुलाहट के मध्य एक बुलाहट की अनुभूति हुई जहाँ उन्हें एक धर्मसमाज की स्थापना करने की प्रकाशना मिली ताकि वे क्रूसित येसु के अनंत प्यास को बुझाने हेतु ग़रीबों की आत्मा मुक्ति के लिए प्रेमपूर्ण कार्य कर सकें।

इस तरह उन्होंने मिशनरी सिस्टर्स ऑफ चैरिटी धर्मसमाज की स्थापना की तथा बाद में धर्मबन्धु के लिए मिशनरी ब्रादर्स ऑफ चैरिटी के अलावे, लोकधर्मियों के संघ और पुरोहितों के लिए एक अन्य संस्था की भी स्थापना की।

उन्होंने अपने जीवन में बिना किसी जाति, धर्म और वर्ग का भेदभाव किये जरूरतमंद लोगों के लिए अपने करुणामय कार्यों के माध्यम से सुसमाचार के प्रचार हेतु अपने जीवन को समर्पित कर दिया। अपने जीवन के हर पहल में पवित्र मिस्सा बलिदान, परमप्रसाद की आराधना, प्रार्थना और प्रेम में बल प्राप्त किया तथा ग़रीबों में येसु की सेवा की।

उनके साहसिक प्रेरितिक साक्ष्य कलीसिया के अधिकारियों के लिए सराहना का विषय है जिसके लिए सन् 1979 ई. में उन्हें नोबल पुरस्कार से नबाजा गया।

शारीरिक रुप से थकी लेकिन आध्यात्मिक रुप से मजबूत वे 5 सितम्बर 1997 को अपने में बृहद, अदम्य और अंखण्ड धर्मिकता की सुगंध को धारण किये प्रभु में सो गई।

Fr. Sanjay SJ








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