2016-08-30 11:36:00

ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के शिकार लोगों को न्याय मिलने में टालमटोल


नई दिल्ली, मंगलवार, 30 अगस्त 2016 (ऊका समाचार): ओडिशा के कन्धामाल ज़िले में ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा की आठवीं बरसी पर, 27 अगस्त को, पोस्टर एवं बैनर हाथों में लिये दस हज़ार से अधिक लोगों ने हिंसा के शिकार लोगों के लिये न्याय की मांग की।

2008 की ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा में कन्धामाल ज़िले के 600 गाँव तबाह हो गये तथा कम से कम 100 लोगों की जानें चली गई थीं। इनमें कई बच्चे, महिलाएँ, वयोवृद्ध एवं विकलांग लोग भी शामिल थे।

हिंसा के दौर में हिन्दु चरमपंथियों ने लगभग 350 ख्रीस्तीय गिरजाघरों एवं प्रार्थनालयों तथा साढ़े छः हज़ार मकानों में लूट मचाई थी तथा उन्हें आग के हवाले कर दिया था। कई जगहों से बलात्कार की ख़बरें भी मिली थी जिनमें एक काथलिक धर्मबहन का भी शील हरण किया गया था। हिंसा के परिणामस्वरूप 56,000 से अधिक लोग बेघर हो गये थे तथा अन्यत्र शरण लेने पर बाध्य हुए थे।

ग़ौरतलब है कि 23 अगस्त, 2008 को 85 वर्षीय हिन्दु नेता स्वामी लक्षमणानन्द की हत्या कर दी गई थी। हालांकि, ओडिशा के माओवादियों ने हिन्दु नेता की हत्या की ज़िम्मेदारी ली थी किन्तु हिन्दु चरमपंथियों ने ख्रीस्तीयों पर हत्या का आरोप लगाकर उनपर हिंसा ढाई गई थी। 23 अगस्त के बाद शुरू हिंसा की लहर कम से कम चार माहों तक चलती रही थी। इससे पूर्व 2007 में भी ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हिंसा की वारदातें हुई थी।

27 अगस्त के प्रदर्शन में भाग लेनेवाले काथलिक पुरोहित फादर सन्तोष दिगाल ने ऊका समाचार से कहा, "लोग अभी भी भयभीत हैं क्योंकि दक्षिण पंथी हिन्दु दलों की धमकियाँ कम नहीं हुई हैं। उनके दिलों से घृणा समाप्त नहीं हुई है।"

उन्होंने कहा, ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को सुरक्षा प्रदान करना राज्य सरकार का दायित्व है किन्तु "वास्तविकता एवं अपेक्षाएं दो भिन्न-भिन्न बातें हैं।"

प्रदर्शनकारियों ने हिंसा के प्रकरणों के पुनराम्भ तथा निष्पक्ष पुलिस अधिकारियों एवं अभियोक्ताओं द्वारा पूर्ण एवं स्वतंत्र जाँच पड़ताल की मांग की।

कन्धामाल में हिंसा से पीड़ित लोगों के पक्ष में काम कर रहे फादर अजय सिंह ने कहा कि राज्य सरकार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये हाल के निर्णय को लागू करना चाहिये जिसमें हिंसा के शिकार बने लोगों की अतिरिक्त क्षतिपूर्ति की बात की गई है।

02 अगस्त को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा की साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार बने लोगों को दी गई क्षतिपूर्ति को "अपर्याप्त" बताया था।   

फादर अजय सिंह के अनुसार आग के हवाले किये गये गिरजाघरों एवं लोकोपकारी संगठनों के कार्यालयों में कम से कम 40 को क्षतिपूर्ति की सूची में नहीं रखा गया है। उन्होंने कहा कि परिस्थिति क्षोभनीय है तथा हिंसा के शिकार बने लोग अभी भी पुनर्वास शिविरों में जीवन यापन को बाध्य हैं।








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