2016-08-22 16:28:00

धर्मविधि मनाते हुए हमारी नजरें येसु और उनके करुणावान चेहरे पर हो


वाटिकन सिटी, सोमवार, 22 अगस्त 2016 (वीआर सेदोक): 67वें राष्ट्रीय धर्मविधि सप्ताह को संत पापा फ्राँसिस ने एक संदेश प्रेषित कर शुभकामनाएँ अर्पित की।

संत पापा की ओर से कास्तेलानेता के धर्माध्यक्ष क्लौदियो मनियागो को लिखे पत्र में वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने कहा, ″67वें राष्ट्रीय धर्मविधि सप्ताह, जो इस वर्ष उम्ब्रिया के रहस्यमय और शांत शहर गुब्बियो में आयोजित किया गया है संत पापा सहर्ष आप सभी को शुभकामनाओं का अपना संदेश भेजते हैं।″  

स्थान के चुनाव की प्रेरणा सन् 1600 ई. में संत पापा इनोसेंट प्रथम द्वारा गुब्बियो के धर्माध्यक्ष दिचेंतियुस को लिखे पत्र द्वारा ली गयी है जो करुणा के असाधारण जयन्ती वर्ष हेतु उपयुक्त है जिसमें कहा गया है, ″कई विषयवस्तुओं में एक खास जो हमारे द्वारा ध्यान दिये जाने के लिए महत्वपूर्ण है: पास्का में पश्चतापियों का मेल-मिलाप।″  

अतः राष्ट्रीय धर्मविधि सप्ताह में पुरानी विषयवस्तु पर पुनः अवलोकन करते हुए ″धर्मविधि करुणा का एक स्थान ″ पर चिंतन किया जाएगा जिसका स्पष्ट इरादा है जयन्ती वर्ष में इटली की कलीसिया के रास्ते पर एक विशेष योगदान। जब हम प्रत्येक धर्मविधि को मनाते हैं हमारी नजरें येसु और उनके करुणावान चेहरे पर हों ताकि हम त्रिएक ईश्वर के प्रेम को देख सकें। जो येसु के सम्पूर्ण जीवन के द्वारा प्रकट किया गया है। उनके द्वारा सबकुछ करुणा के बारे ही बताता है।

करुणा की कृपा विशेष रूप से मेल-मिलाप संस्कार में प्रकाशित होती है। पिता की करूणा बंद नहीं है क्योंकि यह लोगों के नवीकृत किये जाने तथा उस कृपा को अनुभव करने की शक्ति द्वारा प्रमाणित होता है। यह उस विश्वास पर आधारित है कि व्यक्ति क्षमा किया जाता है ताकि वह क्षमा करे। यह किसी भी परिस्थिति में क्षमाशीलता का साक्ष्य दे। यही एक कर्तव्य है जिसके लिए हम बुलाये गये हैं विशेषकर, जहाँ बहुत सारे लोग बंद हो चुके हैं वे आंतरिक आनन्द की पुनः खोज करें तथा शांति को प्राप्त कर सकें।

संत पापा ने कहा कि इस तरह मेल-मिलाप संस्कार के अनुष्ठान को न केवल एक द्वार के रूप में देखा जाए जहाँ से बाहर निकले हुए लोग पुनः प्रवेश कर सकें किन्तु देहली के रूप में सभी मानव जाति के लिए खुला हो जिसमें वे दया प्राप्त कर सकें।

संत पापा ने आशा व्यक्त की है कि धर्मविधि सप्ताह कलीसियाई जीवन के स्रोत एवं पराकाष्ठा के प्रति समझ को प्रगाढ़ बनायेगा तथा उन्हें करुणा से भर देगा ताकि वे सुसमाचार द्वारा निरंतर अपने को निर्मित कर सके।  








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