2016-08-08 16:11:00

टैक्स बिल पर काथलिक कलीसिया की चिंता


नई दिल्ली, सोमवार, 8 अगस्त 2016 (ऊकान): कलीसियाई अधिकारियों ने कर प्रणाली में एकरूपता लाने की भारत की नई नीति पर चिंता जतायी है तथा कहा है कि इस नीति को देश के लाखों ग़रीबों पर भार डाले बिना लागू किया जाना चाहिए।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के महासचिव माननीय थेओदोर मसकारेनहास ने ऊका समाचार से कहा, ″अधिकतर सुधार कार्य धनी एवं उन लोगों को ध्यान में रखकर किया जाता है जिन्हें एहसान प्राप्त है।″  

उन्होंने कहा कि 3 अगस्त को भारतीय संसद के उच्च सदन ने वस्तु एवं सेवा कर विधेयक पारित किया। कानून जिसका उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं पर एक व्यापक टैक्स लागू करना है, संघीय और राज्य सरकारों द्वारा अलग से लगाया गया कर है। कानून एक आम राष्ट्रीय बाजार की सुविधा और एक संवैधानिक संशोधन की जरूरत को संसद में पारित करने के लिए सुगमता प्रदान करता है।

कुछ सरकारी अधिकारियों का दावा है कि नया बिल वस्तुओं की कीमत कम कर देगा किन्तु महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि हम इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे जब तक कि हम इसे जमीनी स्तर पर न देख लें।

धर्माध्यक्ष ने कहा कि सार्वजनिक धन के मामले में हम किसी भी राजनीतिक पार्टी पर विश्वास नहीं करते हैं। हमारा प्रमुख चिंता है कि इस बिल के कारण ग़रीबों को कष्ट झेलना न पड़े।   

दिल्ली के महाधर्माध्यक्ष अनिल कुटो ने कहा, ″इस बिल के पारित किये जाने पर तथा समाज के गरीब तबक़े के लोगों पर इसके प्रभाव को लेकर मैं अति चिंतित हूँ।″ मीडिया वालों का कहना है कि बिल उद्योग और निर्यात को मदद देगा।

सरकारी आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत की 1.2 अरब आबादी में से सरकार को मात्र 1 प्रतिशत जनता आयकर चुकाती है जबकि ग़रीबों समेत हर कोई चीजों को खरीदते समय कुछ न कुछ कर अवश्य चुकाते हैं। भारतीय सामाजिक संस्थान के महानिदेशक जेस्विट फादर डेनजिल फेरनांडिस ने कहा कि बिल का दुष्प्रभाव धनियों से अधिक ग़रीबों पर पड़ेगा क्योंकि धनियों के लिए जो वस्तुएँ सस्ती होती हैं उन वस्तुओं को भी गरीब नहीं खरीद सकते हैं।

उन्होंने कहा कि बिल ऑटोमोबाइल तथा रेस्टोरेंट के भोजन आदि की कीमत को सस्ता करेगा जो कि ग़रीबों के लिए नहीं होता है, इस प्रकार बिल ग़रीबों से अधिक धनियों के लिए हितकर है।








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