श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........
"हमें कोई चिन्ह नहीं दिखाया जाता, एक भी नबी शेष नहीं रहा। हममें कोई नहीं जानता कि कब तक ऐसा रहेगा? प्रभु! बैरी कब तक तेरी निन्दा करता रहेगा? क्या शत्रु तेरे नाम का उपहास करता रहेगा? तू क्यों अपना हाथ खींचता है? क्यों अपना दाहिना हाथ अपने सीने में छिपाता है?”
श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन के नवें, दसवें और ग्यारहवें पदों के शब्द। इससे पूर्व पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने इन्हीं पदों की व्याख्या की थी। 74 वें भजन का रचयिता इसराएली जाति के सन्दर्भ बिन्दु अर्थात् जैरूसालेम के मन्दिर के विनाश पर विलाप करता है। इस तथ्य का हम सिंहावलोकन कर चुके हैं कि ईश विरोधियों ने उन स्थलों का भी विनाश कर दिया था जहाँ सामुएल नबी तथा लेवी वंश के याजक ईश्वर विषयक बातों की व्याख्या किया करते थे।
जैरूसालेम के मन्दिर के अलावा उन्होंने यूदा के सभी गाँवों के प्रार्थनास्थलों को भी नष्ट दिया था क्योंकि उनका मकसद प्रभु याह्वे की भक्ति को पूर्णतया बन्द करना था। इसीलिये 74 वें भजन का रचयिता कराह उठता है: "हमें कोई चिन्ह नहीं दिखाया जाता, एक भी नबी शेष नहीं रहा। ... प्रभु! बैरी कब तक तेरी निन्दा करता रहेगा? क्या शत्रु तेरे नाम का उपहास करता रहेगा?" और फिर "तेरे बैरियों ने तेरे प्रार्थनागृह में शोर मचाया और वहाँ अपने विजयी झण्डे फहराये" 74 वें भजन के इन शब्दों से स्पष्ट है कि ईश्वर के शत्रु इस धरती पर नर्क बनाने में सफल हो गये थे। उनका ईश निन्दक कृत्य प्रभु के ही विरुद्ध नहीं था अपितु वह ईश इच्छा के भी विरुद्ध था। उन्होंने ईश्वर की अनन्त योजना को भंग करने का दुस्साहस किया था। भजनकार इसीलिये असमंजस में है। वह कहता है कि ईश्वर ने ऐसा होने ही क्यों दिया।
श्रोताओ, बहुत बार हम भी ऐसा स्थिति का सामना करते हैं। हमारी आँखों के समक्ष जब दुष्ट अपने कुकर्मों में सफल हो जाते हैं तब हमारे मन में भी इसी प्रकार के प्रश्न उठने लगते हैं। हम भी प्रश्न करने लग जाते हैं: ईश्वर ने उन्हें क्यों नहीं रोका? ईश्वर कहाँ थे जब दुष्ट विनाश का ताण्डव रच रहा था? मन्दिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों एवं गुरुद्वारों में घुसकर तोड़-फोड़ मचानेवाले क्योंकर सफल हो जाते हैं? क्यों वे ईश्वर में आस्थावान लोगों का उत्पीड़न करते हैं? वे मनुष्यों को मौत के घाट उतारते तथा सृष्टिकर्त्ता और सृजनहार ईश्वर का अपमान करते हैं किन्तु सफल होते चले जाते हैं, आख़िर क्यों? प्रभु चुप क्यों रहता है? आदि, आदि।
श्रोताओ, इन सवालों का जवाब ईश भक्त को विश्वास द्वारा ही मिल सकता है। ईश भक्त का विश्वास और ईश्वर में उसकी दृढ़ आस्था उसे यह समझने का विवेक प्रदान करती है कि इस संसार में बुराई एवं भलाई दोनों का अस्तित्व है। कुछ लोग बुराई का रास्ता अपना लेते हैं क्योंकि पहले-पहल यह सरल और सहज प्रतीत होता है किन्तु बाद में व्यक्ति बुराई का गुलाम बन जाता है तथा दुष्कर्मों के लिये बाध्य होता है। दुष्टता एवं बुराई की दासता से बचने का एकमात्र तरीका है, भले कर्मों द्वारा ईश्वर में अपने विश्वास को पोषित करना। ऐसा कर ही व्यक्ति सच्चे सुख का आनन्द उठा सकेगा, ऐसा कर ही वह अपने जीवन में सन्तुष्टि एवं आत्मतृप्ति का अनुभव कर सकेगा। ऐसा कर ही ईश्वर के न्याय को पहचान पायेगा तथा उनकी असीम दया और कृपा का पात्र बन पायेगा।
आगे 74 वें भजन के 12 से लेकर 17 तक के पदों में धर्मपरायण व्यक्ति ईश्वर के अभूतपूर्व कार्यों का स्मरण करता है, वह कहता हैः "ईश्वर! तू आदिकाल से मेरा राजा है और पृथ्वी पर लोगों का उद्धार करता आ रहा है। तूने अपने सामर्थ्य से समुद्र को विभाजित किया और जल में मगर-मच्छों के सिर टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तूने लिव्यातन के सिर तोड़ डाले और उसे समुद्र के जन्तुओं को खिलाया। तूने झरनें और जलधाराएँ बहायीं और सदा बहनेवाली नदियों को सुखाया। दिन तेरा है, रात भी तेरी है। तूने चन्द्रमा और सूर्य को स्थापित किया। तूने पृथ्वी के सीमान्तों को निर्धारित किया। तूने ग्रीष्म और शीतकाल बनाया।"
इन पदों द्वारा भजनकार पीछे मुड़कर इतिहास पर दृष्टि डालता है। वह याद करता है कि बुराई की शक्तियों को ईश्वर ने सदैव पराजित किया है। वे ही इस्राएली जाति को मिस्र की दासता से मुक्त कराकर प्रतिज्ञात देश तक ले आये थे। ईश्वर के सामर्थ्य से ही लाल सागर विभाजित हुआ था और ईश प्रजा समुद्र पार कर पाई थी जबकि आततायियों के आने तक समुद्र फिर भर गया था तथा उसके जल में, मगर-मच्छ यानि अपने घोड़ों सहित मिस्र के अहंकारी जलमग्न हो गये थे।
वस्तुतः, श्रोताओ, सृष्टि के आरम्भिक बिन्दु से लेकर आज तक प्रभु ईश्वर क्रियाशील हैं। उनके सामर्थ्य से ही पृथ्वी की रचना हो सकी क्योंकि उन्होंने लिव्यातन अर्थात् शैतान को परास्त कर दिया था। सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने बुराई पर भलाई को विजय दिलाई थी और अब भी यह सिलसिला जारी है। ईश्वर के सामर्थ्य से ही प्रकाश हुआ और उसे अन्धकार से अलग किया जा सका। अथाह गर्त से ईश्वर मनुष्यों के भलाई को सींचकर ले आये थे ताकि मनुष्य सुखपूर्वक अपना जीवन यापन कर सके तथा प्राप्त कृपाओं के प्रभु का गुणगान किया करे। मनुष्य की भलाई के लिये प्रभु ईश्वर अथाह गर्त से अराजकता अथवा कोलाहल नहीं अपितु बहते जल की धाराओं का वरदान ले आये थे। उत्पत्ति ग्रन्थ के अनुसार ईश्वर ने "दिन और रात को अलग कर देने के लिये आकाश में नक्षत्रों की रचना की, उन्होंने दो प्रधान नक्षत्र बनाये दिन के लिये बड़ा और रात के लिये छोटा और तारे भी। वे पृथ्वी को प्रकाश देने के लिये आकाश में जगमगाते रहे। इस तरह, श्रोताओ! 74 वें भजन का रचयिता इतिहास के आरम्भ से लेकर उसके अपने दिनों तक प्रभु ईश्वर के महान कार्यों को याद करता है तथा उनकी महिमा का बखान करता है।
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