2016-08-04 16:31:00

दोमेनिकन धर्मसमाज के प्रतिनिधियों से संत पापा ने की मुलाकात


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 4 अगस्त 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 4 अगस्त को, वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में दोमिनिकन धर्मसमाज की आमसभा के 70 प्रतिभागियों से मुलाकात की।

संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा, ″यह वर्ष दोमिनिकन धर्मसमाज के लिए खास है क्योंकि वे संत पापा होनोरियुस तृतीया द्वारा प्रदत्त पहचान की आठ सौवी जयन्ती मना रहे हैं।″ संत पापा ने उनके द्वारा कलीसिया की विशेष सेवा एवं इसकी स्थापना से लेकर आज तक परमधर्मपीठ को दिया गया उदार सहयोग के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।

संत पापा ने कहा, ″ईश्वर ने संत दोमनिक को बुलाया ताकि उपदेश देने की प्रेरिताई के लिए एक धर्मसमाज की स्थापना हो सके, जिसे येसु ने अपने चेलों को सौंपा था। यह ईश वचन ही है जो हमारे अंदर जलता तथा सभी लोगों के लिए ख्रीस्त का प्रचार करने हेतु हमें प्रेरित करता है।″ संत पापा ने धर्मसमाज के संस्थापक के वचनों की याद दिलाते हुए कहा कि उनके संस्थापक ने चिंतन करने एवं शिक्षा देने को आधार माना है। हमें सुसमाचार को ग्रहण करना है ताकि दूसरों को सुसमाचार बांट सकें। ईश्वर से संयुक्ति के बिना उपदेश भले ही पूर्ण, उत्तेजक और अत्यन्त प्रशंसनीय हो किन्तु हृदय को स्पर्श नहीं कर सकता जिसे वास्तव में, परिवर्तन की आवश्यकता होती है।

संत पापा ने कहा कि वे ईश वचन को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करें। जिसके लिए सच्चाई के प्रति विश्वस्त रहने एवं सुसमाचार का साहसपूर्वक साक्ष्य देने की आवश्यकता होती है। साक्ष्य शिक्षा का रूप लेता है यह इतना ठोस और आकर्षक होता है कि कोई भी इससे उदासीन नहीं हो सकता। यह सुसमाचार का आनन्द प्रदान करता है कि हम ईश्वर द्वारा प्रेम किये गये हैं तथा उनके असीम दया के पात्र हैं।

संत पापा ने संत दोमनिक की दूसरी शिक्षा की याद दिलायी जिसमें वे अपने सदस्यों को खाली पाँव उपदेश देने भेजते थे जो हमें जलती झाड़ी का स्मरण दिलाता है जहाँ ईश्वर ने मूसा से कहा था अपने पैरों से जूते निकाल लो क्योंकि यह स्थान जहाँ तुम खड़े हो पवित्र है। उन्होंने कहा कि एक अच्छे उपदेशक को यह ख्याल रखना चाहिए कि वह पवित्र भूमि में खड़ा है क्योंकि जो वचन वह लेकर चलता है वह पवित्र है, साथ ही श्रोताओं को भी न केवल वचन की आवश्यकता है किन्तु विश्वास के साक्ष्य की भी।

संत पापा ने कहा कि उपदेशक एवं साक्ष्य के बीच प्रेमपूर्ण संबंध होना चाहिए नहीं तो उन पर सवाल उठ सकते हैं। संत दोमनिक के जीवन में आरम्भिक दिनों में दो संदेह था उसने उसके सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित किया उन्होंने कहा, ″मैं किस तरह मृत चर्म के साथ अध्ययन कर सकता हूँ जबकि ख्रीस्त का मांस पीड़ित है।″ संत पापा ने कहा कि ख्रीस्त का शरीर जिंदा है और दुःख सह रहा है। ग़रीबों की पुकार हमें यह समझने मदद करती है कि येसु का लोगों के प्रति गहन सहानुभूति थी। उन्होंने कहा कि आज के स्त्री एवं पुरूष ईश्वर के प्यासे हैं। वे ख्रीस्त के जीवित शरीर हैं जो कह रहा है मैं प्यासा हूँ। भ्रातृ प्रेम एवं कोमलता के लिए। यह हमें चुनौती दे रहा है। संत पापा ने इस पर चिंतन करने की सलाह दी। हम जितना अधिक लोगों की प्यास बूझाने का प्रयास करेंगे प्रेम एवं करुणा द्वारा उतना ही अधिक सच्चाई के संदेश वाहक बनेंगे।

संत पापा ने सभी सदस्यों को संत दोमनिक के पदचिन्हों पर चलकर धर्मसमाज की विशिष्टता के अनुसार कलीसिया की सेवा करने का प्रोत्साहन दिया। उन्होंने उन्हें आशा बनाये रखने का परामर्श दिया क्योंकि ईश्वर सभी चीजों का नवीनीकरण करते हैं।








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