2016-08-04 16:25:00

ख्रीस्तीय एवं मुसलमान प्रार्थना में एक साथ, इस्लाम का भविष्य जिहादियों का सामना


मिलान, बृहस्पतिवार, 4 अगस्त 2016 (एशियान्यूज़): फ्राँसीसी धर्माध्यक्षीय सम्मेलन द्वारा मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों को रविवारीय ख्रीस्तयाग में भाग लेने हेतु निमंत्रण देने के पहल को इटली के धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने लागू कर दिया है जिसपर दोनों पक्षों में सकारात्मक और नकारात्मक एवं परस्पर विरोधी विचार छिड़ गयी है।

काथलिक कलीसिया के अंदर नकारात्मक आलोचनाएँ आ रही हैं जबकि मुस्लिम समुदाय में अजीब चुप्पी का माहौल है। कुछ लोग इस प्रयास में तटस्थ रहना चाहते हैं।

इधर कुछ काथलिक और मुस्लिम नेताओं ने सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रार्थना में एक साथ समय बीताने की आवश्यकता बतलायी है ताकि कट्टरपंथी और हठधर्मी दल को दूर किया जा सके जिन्होंने यूरोप, अमरीका एवं एशिया के कुछ देशों में हाल के दिनों में आक्रमण किया है विशेषकर, इस साल के जुलाई महीने में।  

इन हमलों में से ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी अल कायदा ने ली है जिसने न केवल अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की समस्या के लिए पश्चिम की कमजोरी को उजागर किया है किन्तु उसने राजनीतिक संस्थाओं की अदूरदर्शिता को भी प्रकट किया है जो उस सच्चाई को स्वीकार करना नहीं चाहते हैं कि इस्लामी आतंकवाद को उत्तरी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप, बाल्कन देशों एवं पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश जैसे एशियाई देशों से अनियंत्रित विस्थापन की समस्या से अलग नहीं किया जा सकता।

हमें समाचार पत्रों एवं विशेषज्ञों से मालूम होता है कि जिहाद वाद की शुरूआत, कुरान के वैचारिक और हिंसात्मक अध्ययन से होता है। उनके अनुसार यह अध्ययन ईश्वर के न्याय की प्रशंसा करता तथा मूर्ति पूजकों एवं सच्चे विश्वास को अस्वीकार करने वालों से बदला लेता है तथा उन्हें इस्लाम में सच्चे विश्वास को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए मार दिया जाना चाहिए।

यहाँ सभी मुसलमानों एवं भली इच्छा रखने वाले लोगों के लिए एक प्रश्न है कि क्या हम जिहादियों को इस्लाम धर्म के सच्चे अनुयायी मान सकते हैं? क्या वे उन सभी मुसलमानों के प्रतिनिधि हैं जिनका विश्वास अपने धर्म में पक्का है? क्या वे अपने धर्म को सच्चाई से जीते एवं हिंसा से घृणा करते हैं। हम उन्हें एक अविश्वासी कह सकते हैं क्योंकि एक विश्वासी ईश्वर को न्यायिक हत्या तक ही सीमित नहीं कर सकता है चाहे यह छोटे पैमाने पर हो अथवा बड़े। किन्तु हम उन्हें मुसलमान समझते हैं क्योंकि उन्होंने इस्लामी धर्म में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति की है, उसकी विचार धाराओं को अपनाया है वे कुरान पढ़ते एवं उसके अनुसार प्रार्थना भी करते हैं। वे अपने धर्म में एक पापी के समान हैं क्योंकि वे इस्लामिक धर्म और उसके नियमों के विरूद्ध चलते हैं वे इस्लामी धर्म का अपमान कर रहे हैं। वे अपने को मुसलमान मानते हैं किन्तु वे अपने धर्म की आधारभूत बातों के विरूद्ध जाते हैं। वास्तव में इस्लाम धर्म में बच्चों एवं धार्मिक लोगों की हत्या वर्जित है। पूजा स्थलों को नष्ट नहीं किया जा सकता है किन्तु ये लोग इन बातों की परवाह नहीं करते एवं हत्या द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति करना चाहते हैं और जिसको वे शहादत का नाम देते हैं।

वास्तव में यह कहना कि हम मृत्यु के लिए हैं जीवन के लिए नहीं यह इस्लामिक नहीं है। महिलाओं, वयोवृद्धों, निर्दोष लोगों एवं असहाय बच्चों की हत्या इस्लाम धर्म में शामिल नहीं है। पुरोहितों एवं इमाम की हत्या तथा गिरजाघरों एवं मस्जिदों को नष्ट करना भी इस्लाम धर्म से नहीं आता है। ये सभी चरमपंथी विचारधाराएँ हैं जो लोगों से अच्छाई को प्रोत्साहन देने एवं बुराई को अस्वीकार करने की मांग कर रहे हैं।

यही कारण है कि ख्रीस्तीयों एवं मुसलमानों तथा भली इच्छा रखने वाले लोगों का एक साथ आकर प्रार्थना करना महत्वपूर्ण है। धर्मों में निहित हिंसा को हतोत्साहित करना है जहाँ कुछ लोग हिंसा को जाम देने के लिए ईश्वर एवं धर्म को माध्यम बना रहे हैं। प्रार्थना करना आवश्यक है ताकि ईश्वर की दया एवं मानव के प्रति उनका प्रेम हृदयों में प्रवेश कर सके।

धर्माध्यक्षों ने कहा कि यही कार्य आज धर्मों के प्रतिनिधियों को करना है खासकर, मुस्लिम धर्मानुयायियों के प्रतिनिधियों को। वे अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करें, आध्यात्मिक रूप से, न कि मात्र शाब्दिक अर्थ को ध्यान में रखते हुए। पवित्र कुरान का अध्ययन उनकी मन को खोल दे ताकि वे दूसरों को भय की नजरों से नहीं किन्तु मानवीय एवं आध्यात्मिक विकास हेतु एक अवसर के रूप में देख सकें।








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