2016-07-30 16:35:00

संत पापा ने धर्मसमाजियों से किया, सेवा हेतु पूर्ण समर्पण का आह्वान


क्राकॉव, शनिवार, 30 जुलाई 2016 (वीआर सेदोक): पोलैंड की प्रेरितिक यात्रा के चौथे दिन 30 जुलाई को, संत पापा फ्राँसिस ने संत पापा जॉन पौल द्वितीय को समर्पित तीर्थस्थल पर पुरोहितों, धर्मसमाजियों एवं गुरूकुल छात्रों के साथ ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, ″पास्का की संध्या जहाँ प्रेरित एक कमरे में एकत्रित थे दरवाजा बंद था। आठ दिनों बाद, शिष्य जब पुनः एकत्र हुए दरवाजा तब भी बंद था। येसु वहाँ प्रवेश कर उनके बीच खड़े हो गये तथा उन्हें शांति, पवित्र आत्मा और पापों की क्षमा प्रदान की। दूसरे शब्दों में उन्होंने ईश्वर की करुणा प्रदान किया। उसके बाद उन बंद दरवाजों के पीछे येसु की आवाज सुनाई पड़ी जो अपने चेलों से कह रहे थे, ″जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा है मैं तुम्हें भेजता हूँ।″ (21) 

संत पापा ने कहा कि येसु भेजते हैं। आरम्भ से ही वे चाहते हैं कि कलीसिया बढ़े, एक ऐसी कलीसिया का विस्तार हो जो बाहर निकलकर दुनिया में जाती है। वे इसे ऐसा ही चाहते हैं जैसा कि उन्होंने स्वयं किया। वे पिता द्वारा संसार में उस पर अधिकार करने के लिए नहीं भेजे गये थे अतः उन्होंने दास का रूप धारण किया (फिली.2:7), वे सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने (मार.10:45) तथा सुसमाचार का प्रचार करने आये थे (लूक.4:18) उसी तरह उनके शिष्य सभी युगों में भेजे गये हैं। यह एक विरोधाभास के समान है कि भय के कारण बंद शिष्यों को येसु मिशन के लिए बाहर भेजते हैं। वे चाहते हैं कि शिष्य दरवाजा खोलें तथा पवित्र आत्मा के साथ ईश्वर की क्षमा एवं शांति का प्रचार करने जायें।

संत पापा ने कहा, ″यह बुलावा हम सभी के लिए है। हम किस तरह इस बुलावे की प्रतिध्वनि को संत पापा जॉन पौल द्वितीय के अह्वान ‘द्वार खोलो’ में नहीं सुन सकते हैं? हमारे जीवन में एक पुरोहित अथवा समर्पित व्यक्ति के रूप में हम बहुधा बंद रहने के प्रलोभन में पड़ते हैं, भय से अथवा अपने आप में ही आराम की खोज के कारण। येसु हमें एक ऐसे रास्ते पर ले चलते हैं, जिससे होकर हम अपने आप से बाहर निकलते और उनके लिए अपने जीवन को अर्पित करते हैं।″ येसु हमारी अधूरी यात्रा, अधखुले द्वार तथा दो रास्तों पर चले वाले जीवन को पसंद नहीं करते हैं। वे हमें यात्रा के लिए बड़ी झोली नहीं ले जाने तथा सुरक्षा की अत्यधिक चिंता का परित्याग करने की सलाह देते हैं क्योंकि वे ही हमारे बल हैं।″ दूसरे शब्दों में, प्रेरित जो येसु के अति करीब थे उन्हीं की तरह जीने के लिए हम सभी बुलाये जाते हैं जो प्रेम, सेवा और तत्परता का जीवन है। यह एक ऐसा जीवन है जिसमें कोई बंद अथवा व्यक्तिगत चीजों के लिए स्थान नहीं है। जो लोग अपने सम्पूर्ण जीवन को येसु के लिए समर्पित करना चाहते हैं वे अपने लिए स्थान नहीं चुनते, वे वहीं जाते हैं जहाँ उन्हें भेजा जाता है, इस प्रकार, बुलाने वाले को बड़ी तत्परता के साथ जवाब देते हैं। वे खुद के लिए समय नहीं बचाते हैं। वे जिस घर में निवास करते हैं वह उनका नहीं होता क्योंकि कलीसिया और विश्व उनके मिशन हेतु खुली जगहें हैं। उनका धन है प्रभु को अपने जीवन के केंद्र में रखना तथा अपने लिए किसी भी चीज की खोज नहीं करना। वे चीजों से घिरे होने के संतोष से दूर भागते हैं। वे दुनियावी शक्ति की लड़खड़ाती नींव पर इमारत खड़ी नहीं करते और न ही सुसमाचार से समझौता करने वाले आराम को प्राप्त करना चाहते हैं। वे सुरक्षित भविष्य के निर्माण की योजना में समय नहीं गवाँते हैं जिससे ऐसा न हो कि एकाकी, उदास एवं हताश होकर वे अपने को स्वयं के संकीर्ण दीवारों के भीतर बंद कर लेने का खतरा न मोल लें। प्रभु में अपना आनन्द प्राप्त करते हुए वे सामान्य जीवन से संतुष्ट नहीं हो जाते किन्तु साक्ष्य प्रस्तुत करने एवं दूसरों तक पहुँचने की लालसा से प्रज्वलित होते हैं। वे खतरा मोल लेने से नहीं हिचकिचाते किन्तु पवित्र आत्मा द्वारा संचालित रास्ते के प्रति विश्वस्त होते तथा सुसमाचार प्रचार में आनन्द प्राप्त करते हैं।

संत पापा ने प्रवचन में दूसरी बिन्दु के रूप में प्रेरित थॉमस के विश्वास पर प्रकाश डाला जो येसु पर विश्वास करने में आनाकानी कर रहा था किन्तु बाद में उनपर पूरा विश्वास किया। उन्होंने कहा, ″अपने संदेह और समझने के प्रयास में, वह जिद्दी प्रतीत होता है किन्तु वह हमारे ही समान थे। उनमें आकर्षण था। अनजाने ही उसने हमें एक महान उपहार प्रदान किया, हमें ईश्वर के करीब लाया क्योंकि ईश्वर उनकी खोज करने वालों से अपने को नहीं छिपाते हैं। येसु थॉमस को अपनी महिमामय घावों को दिखला कर उसे ईश्वर की कोमलता का स्पर्श कराते हैं जो मानवता के प्रेम के खातिर उठाये गये दुःख का ज्वलंत चिन्ह है।

हमारे लिए जो हम उनके शिष्य हैं यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने को प्रभु के करीब रखें तथा पूर्ण आस्था एवं भरोसा के साथ अपना सर्वस्व उन्हें अर्पित करें। जैसा कि येसु ने संत पौस्तीना से कहा था। येसु प्रसन्न होते हैं जब हम अपना सब कुछ उन्हें बतलाते हैं। वे हमारे जीवन से ऊबते नहीं, जिसके बारे उन्हें पहले ही सब कुछ मालूम है वे हमारे जीवन की घटनाओं को प्रकट करने के लिए हमारा इंतजार करते हैं। यही ईश्वर को खोजने का रास्ता है। प्रार्थना द्वारा हमारा हृदय पारदर्शी होता और हमारी समस्याओं, संघर्ष एवं बाधाओं को उन्हें समर्पित करने में भय का अनुभव नहीं होता है। येसु का हृदय उदारता द्वारा जीता जा सकता है। ऐसा हृदय जो अपनी कमजोरियों को स्वीकार कर सकता एवं उसके लिए पश्चाताप करता है, वह उन पर भरोसा रखकर निश्चय ही ईश्वर की दया को प्राप्त कर सकता है।

संत पापा ने हमारे प्रति येसु की मांग पर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, ″येसु हमसे किस चीज की मांग करते हैं। उन्होंने कहा कि वे उन हृदयों की चाह रखते हैं जो सचमुच समर्पित हैं जो उनकी क्षमाशीलता से जीवन प्राप्त करते हैं ताकि करुणा के साथ इसे अपने भाई बहनों को बांट सकें। येसु चाहते हैं कि हम खुले हों और दुर्बलों के प्रति कोमलता का बर्ताव करें, हम ऐसा हृदय कभी न बनायें जो कठोर हो। येसु विनम्र एवं पारदर्शी हृदय पसंद करते हैं जो कलीसिया द्वारा नियुक्त अगुवों का विरोध नहीं करते। शिष्य यह प्रश्न करने से नहीं हिचकिचाते हैं कि उनके त्याग के बदले उन्हें क्या मिलेगा। एक विश्वस्त शिष्य लगातार सतर्क आत्म-परीक्षण करता है, यह जानते हुए कि हृदय को प्रतिदिन प्रशिक्षित किया जाना है। अंततः संत थॉमस ने अपने उत्साह द्वारा न केवल पुनर्जीवित ख्रीस्त पर विश्वास किया किन्तु येसु में अपने जीवन के सबसे बड़े खजाने प्रभु को प्राप्त किया तथा कहा, ″मेरे प्रभु मेरे ईश्वर।″ हम इन सुन्दर शब्दों को प्रार्थना के रूप में प्रतिदिन ले सकते हैं और प्रभु से कह सकते हैं कि मात्र आप ही मेरे खजाने हैं, एक मात्र रास्ता जिस पर मैं चल सकता हूँ, मेरे जीवन के आधार एवं मेरे सर्वस्व।

संत पापा ने धर्मसमाजियों की प्रेरिताई की याद दिलाते हुए कहा कि सुसमाचार में येसु के और बहुत सारे चमत्कारों को वर्णित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि दया के उनके महान चमत्कार के बाद, किसी अन्य चमत्कार को जोड़ने की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी, एक चुनौती रह गयी है, अब भी चमत्कार के लिए स्थान हैं जिसे हमें पूरा करना है अर्थात् जिन्होंने प्रेम की आत्मा को ग्रहण किया है तथा करुणा का प्रचार करने के लिए बुलाये गये हैं। यह कहा जा सकता है कि ईश करुणा की जीवित किताब को लगातार पढ़ा जाना चाहिए जहाँ कई रिक्त स्थान अब भी हैं। यह एक खुली किताब है जिस पर दया के कार्यों द्वारा उसी शैली में लिखने के लिए हम सभी बुलाये जाते हैं। संत पापा ने प्रश्न किया, आपकी किताब के पृष्ट कैसे हैं, क्या वे रिक्त हैं? ईश्वर की माता हमारी सहायता करे जिन्होंने ईश वचन को अपने जीवन में पूर्णतया धारण किया। वे हमारे लिए प्रार्थना करें ताकि हम सुसमाचार के जीवित लेखक बन सकें। करुणा की माता हमें शिक्षा दे कि हम हमारे भाई बहनों में येसु के घावों की अच्छी देखभाल कर सकें जो दूर चले गये हैं, बीमार हैं एवं शरणार्थी हैं क्योंकि उनकी सेवा द्वारा हम ख्रीस्त के शरीर को सम्मान प्रदान करते हैं। संत पापा ने माता मरियम की मध्यस्थता द्वारा प्रार्थना की ताकि हम विश्वासियों की सेवा में अपने को पूर्ण रूपेन समर्पित कर सकें।

संत पापा ने सभी को उनकी बुलाहट का स्मरण दिलाते हुए कहा, ″हम प्रत्येक अपने हृदय में ईश्वर की दया की किताब का एक व्यक्तिगत पृष्ट धारण करते हैं। यह हमारी बुलाहट की कहानी है, प्रेम की पुकार जो हमें आकर्षित करता है तथा हमारे जीवन को परिवर्तित कर देता है। हमें सब कुछ का त्याग कर अपना अनुसरण करने की प्रेरणा देता है। आज हम उनकी बुलाहट को पुनः याद करें जो हर प्रतिरोध और हमारे थकावट से अधिक शक्तिशाली है। संत पापा ने सभी धर्मसमाजियों को परामर्श दिया कि हम ईश्वर द्वारा प्राप्त बुलाहट के वरदान के लिए उन्हें धन्यवाद दें जिन्होंने हमें प्रेरित संत थॉमस की तरह नाम लेकर बुलाया है तथा उनके प्रेम की पुस्तक में आगे लिखने हेतु कृपा प्रदान की है। 








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