पोलैण्ड, 30 शनिवार 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने पोलैण्ड की अपनी 5 दिवीसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान क्रकोवा में आयोजित विश्व युवा दिवस सम्मेलन के क्रूस रास्ते की धर्म विधि में भाग लिया और इसके अंत मैं विश्वासियों और युवाओं को संबोधित करते हुए कहा,
जब मैं भूखा था तुमने मुझे खिलाया, जब मैं प्यासा था तुमने मुझे पीने हेतु कुछ दिया, मैं जब परदेशी था तुमने मेरा स्वागत किया, मैं जब नंगा था तुमने मुझे पहनाया, मैं जब बीमार था तुमने मेरी सेवा की, जब मैं बंदी था तुम मुझ से मिलने आये। (मती. 25.35-36)
येसु के ये वचन हमारे उस सवाल के जवाब हैं जो बहुधा हमारे मन और दिल में उठते है, कि “ईश्वर कहाँ है?” यदि दुनिया में बुराई व्याप्त है लोग भूखे-प्यासे, परिवार विहीन, निर्वासित और प्रवासी जैसे स्थितियों का सामना करते हैं तो ईश्वर कहाँ है? जब निर्दोष लोग मारे जाते हैं हिंसा, आतंकी हमले और युद्ध के शिकार होते तो ईश्वर कहां रहते हैं? जब क्रूर बीमारी जो हमारे संबंध और प्रेम को तोड़ देती है तो ईश्वर कहाँ करते हैं? जब बच्चे अत्याचार और शोषित होते, भंयकर बीमारी के शिकारी होते हैं, लोगों के बीच में शंका और जब उनके दिल में संदेह की स्थिति उत्पन्न हो जाती तो ईश्वर कहाँ रहते हैं? संत पापा ने कहा कि मानव के इस सारे सवालों का जवाब नहीं है। हम सिर्फ येसु की ओर अपनी नजरे उठा कर उनसे पूछ सकते हैं। और येसु हमें उत्तर देते हुए कहते हैं, “ईश्वर उन सब परिस्थितियों में हैं।” येसु उनमें हैं, वे उनमें दुःख झेलते और हम प्रत्येक के साथ अपने को एक करते हैं। वे उन सारी घटनाओं में गहराई से जुड़े हुए हैं जिससे वे उन्हें “एक शरीर” का अंग बना सकें।
येसु ख्रीस्त कलवारी, “दुःख की राह” का चुनाव करते हुए स्वयं को हमारे उन भाई-बहनों के साथ जोड़ते हैं जो अपने जीवन में दुःख और कष्ट का अनुभव करते हैं। क्रूस मरण के द्वारा उन्होंने मानव के सभी शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और नैतिक दुःखों को अपने ऊपर लेकर अपने जीवन का प्रेमपूर्ण बलिदान पिता के हाथों में अर्पित कर दिया। क्रूस काठ को गले लगते हुए, येसु ने नग्नता, भूख-प्यास, अकेलापन, और लोगों के दर्द को हमेशा के लिए अपने ऊपर ले लिया। आज की रात हम येसु के साथ विशेष रुप से सीरिया के भाई-बहनों का आलिंगन करते हैं जो युद्ध के कारण बिखर गये हैं। हम भ्रातृत्व प्रेम और मित्रता में उनका अभिवादन और स्वागत करते हैं।
येसु के साथ कलवारी की यात्रा करते हुए हमने पुनः “करुणा के चौदह कार्यों” द्वारा येसु का अनुसरण करने का अनुभव किया है। इनके द्वारा हमें ईश्वर की दया के प्रति खुला रहने जहाँ हमें दूसरों की सराहना करने की कृपा मिलती हैं। दया और करुणा के बिना हम सब कुछ नहीं कर सकते हैं। संत पापा ने कहा कि आइए हम करुणा के प्रथम सात कार्यों पर चिंतन करें, भूखों को खिलाना, प्यासों को पिलाना, नंगों को पहनाना, गृह विहीनों को शरण देना, रोगियों और बंदियों से मिलना और मुरदों को दफनाना। हमें मुफ्त में मिला है और इसलिए हमें मुफ्त में देना है। हम क्रूसित येसु को उन लोगों में सेवा करने हेतु बुलाये गये हैं जो कष्टमय जीवन जी रहे हैं। हमें उनके पवित्र शरीर को उन लोगों में स्पर्श करना है जो जीवन की आवश्यक चीजों से वंचित भूखे-प्यासे हैं, नंगे और जेलों में हैं, बीमार और बेरोजगार हैं, वे प्रवासी और शरणार्थी जो सताये जाते हैं। उनके मध्य हम अपने ईश्वर को पाते, उनका स्पर्श करते हैं। येसु ने स्वयं हमें यह बतलाया है कि हमारा न्याय किस आधार पर किया जायेगा, जब तुम इन कामों को अपने छोटे से छोटे भाई या बहन हेतु करते हो तो तुम इसे मेरे लिए करते हो। (मती.25.31-46)
करुणा के शारीरिक कामों के बाद हमें आध्यात्मिक कामों पर मनन करें, संदिग्ध लोगों को परामर्श, अज्ञानियों को शिक्षा, पापियों को फटकार, दुःखियों को सांत्वना, पापों की क्षमा, गलतियों का धैर्य पूर्ण सहन, जीवितों और मृतकों हेतु प्रार्थना। शारीरिक रुप से परित्यक्त लोगों और पापियों का जो आध्यात्मिक रुप से कष्ट का सामना करते हैं उनका स्वागत करना हम ख्रीस्तीयों की विश्वसनीयता को खतरे में डाल देती है। यह हमारी सोच में है लेकिन व्यवहारिकता में ऐसा नहीं होता है।
मानवता को आज आप जैसे युवा लोगों की जरूरत है जो अपना जीवन आधा-आधा जीना नहीं चाहते वरन् अपने को दूसरे भाई-बहनों की सेवा हेतु जो गरीब और अतिसंवेदनशील हैं, स्वतंत्रतापूर्वक पूर्णता निछावर कर देते हैं जैसे कि येसु ख्रीस्त ने मानव मुक्ति हेतु अपने को पूर्णरूपेण समर्पित कर दिया। बुराई की उपस्थित में जहाँ दुःख और पाप व्याप्त हैं येसु के शिष्य का एक मात्र प्रतिउत्तर येसु के अनुसरण में स्वयं का समर्पण, यहाँ तक की अपने जीवन की आहुति है जो सेवा के भाव को दिखलाता है। जब तक हम जो अपने को ख्रीस्तीय कहते हैं सेवा का जीवन व्यतीत नहीं करते तो हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। हम अपने जीवन के द्वारा येसु को अस्वीकार करते हैं।
प्रिय मित्रों आज की शाम येसु हमें और एक बार पुनः दूसरों की सेवा हेतु आगे आने को कहते हैं। वे मानवता की सेवा हेतु अपने कामों को मूर्त रूप देने का आहृवान करते हैं। वह आप को अपनी करुणा और प्रेम की निशानी बनने को कहते हैं। आपके प्रेरितिक कामों को करने हेतु वे स्वयं के समर्पण और बलिदान को दिखलाते हैं। यह क्रूस का रास्ता है। क्रूस का रास्ता निष्ठा का रास्ता है जहाँ हमें अपने जीवन के दैनिक नाटकीय परिस्थितियों में भी अंतिम समय तक येसु का अनुसरण करना है। यह हमें जीवन के मार्ग में असफलतों, बाधाओं और अकेलापन से भयभीत नहीं करता क्योंकि येसु हमारे हृदयों को अपनी पूर्णता से भरते हैं। क्रूस का मार्ग स्वयं ईश्वर के जीवन का मार्ग है उनके करने का तरीका जहाँ येसु जीवन के विभाजन, अन्याय और भ्रष्टाचार को हमारे सामने पेश करते हैं।
क्रूस का रास्ता दुःख द्वारा खुशी प्राप्त करने की कार्यप्रणाली नहीं है बल्कि यह पाप, बुराई मृत्यु पर विजय हासिल करने का एक मात्र माध्यम है जो हमें येसु के महिमामय पुनरुत्थान और अनंत जीवन की एक नये क्षितिज की ओर ले चलती है। यह आशा का मार्ग है जो हमें भविष्य की ओर ले चलती है। वे जो उदारता और विश्वास में इस मार्ग का चुनाव करते वे मानवता को भविष्य की आशा से भर देते हैं। वे आशा का बीज का बोते हैं और मैं आप सबों से गुजारिश करता हूँ कि आप आशा का बीज बोयें।
संत पापा ने युवाओं से कहा कि पुण्य शुक्रवार के उस दिन बहुत सारे शिष्य हताश और उदास हो करे अपने घरों को चले गये। दूसरे अन्य स्थानों के लिए कूच कर गये जिससे वे क्रूस को भुला सकें। मैं आप सबों से पूछना चाहता हूँ जिसका जवाब आप शांत भाव से अपने दिल की गहराई में दें, आज की शाम आप कैसे अपने घरों को, अपने निवास स्थल जहाँ आप रहते हैं जाना चाहेंगे? आज शाम आप अपने मनोभावों, अपने विचारों में रहने हेतु कैसे जाना चाहते हैं? पूरी दुनिया हमें देख रही है। इन सारी चुनौती भरे सवालों का जवाब आप सबों को अपने आप में देना है।
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