2016-07-25 18:03:00

संत पापा का “हे हमारे पिता” पर संदेश


वाटिकन सिटी, सोमवार, 25 जुलाई 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में 24 जुलाई, रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ संत लूकस रचित सुसमाचार पर आधारित “प्रभु की प्रार्थना” पर अपना संदेश देते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एव बहनो, सुप्रभात।

इस रविवार का सुसमाचार येसु के एकान्त में प्रार्थना करने के द्वारा शुरू होती हैं। जब वे अपनी प्रार्थना समाप्त करते हैं तो उनके शिष्य उनसे कहते हैं, “प्रभु हमें भी प्रार्थना करना सिखलाईये।” और वे उनसे कहते हैं, “जब तुम प्रार्थना करते हो तो कहो, “हे पिता...” यह शब्द येसु के प्रार्थना का रहस्य और मुख्य विषय है क्योंकि हम स्वयं पिता के साथ उस विश्वसनीय वार्ता में प्रवेश नहीं कर सकते जिन्होंने हमें जीवन दिया है जो हमारे साथ रहते और जो हमारे जीवन को संचालित करते हैं।

 “हे पिता” के साथ येसु दो अनुग्रहों को जोड़ते हैं, “तेरा नाम पवित्र किया जावे, और तेरा राज्य आवे।” इस तरह येसु की प्रार्थना एक ख्रीस्तीय प्रार्थना है जहाँ हम सर्वप्रथम ईश्वर को अपने जीवन में प्राथमिकता देते हैं जो हम सबों में अपनी पवित्रता प्रदर्शित करते और हमारे जीवन में अपने प्रेमपूर्ण राज्य की स्थापना करते हैं।

संत पापा ने कहा कि “हे पिता हमारे” प्रार्थना में येसु हमें और तीन निवेदनों के बारे में शिक्षा देते हैं। वे तीन चीजें हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से जुड़ी हुई हैं, रोटी, क्षमा और परीक्षा में मदद। संत पापा ने जोर देते हुए कहा कि हम रोटी के बिना जीवित नहीं रह सकते, हम क्षमा के बिना जीवित नहीं रह सकते और हमारी परीक्षाओं में हम ईश्वरीय सहायता के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं। येसु हमें पिता से रोजी रोटी की याचना करने हेतु सिखलाते हैं जो हमारे लिए अत्यन्त जरूरी है। यह हमें जीवन प्रदान करता जिसके द्वारा हम इस पृथ्वी पर अपनी जीवन यात्रा कायम रखते हैं। उन्होंने कहा कि हमें हमारे पापों की क्षमा ईश्वर की ओर से मिलती है लेकिन इसके लिए हमें यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि हम सभी पापी हैं। इस तरह ईश्वरीय अनंत करुणा हमें अपने भाई-बहनों से मेल-मिलाप करने हेतु मदद करता है। संत पापा ने कहा कि यदि एक व्यक्ति अपने में क्षमा का अनुभव नहीं करता तो वह अपनी ओर से दूसरों पर दया और मेल-मिलाप के भाव कभी प्रदर्शित नहीं कर सकता है। यह सबसे पहले हमारे हृदयों में अपने को पापी स्वीकारने से शुरु होता है। और अंतिम निवेदन है कि “हमें परीक्षा में न डाल”। संत पापा ने कहा कि यह हमें हमारी परिस्थिति से वाकिफ करता है कि हम सदैव बुराई और भ्रष्टाचार के जंजालों से घिरे हुए हैं। उन्होंने कहा कि हम सबों को पता है कि एक परीक्षा क्या है।

प्रार्थना के बारे में येसु अपनी शिक्षा को दो दृष्टान्तों के द्वारा स्पष्ट करते हैं जहाँ वे एक मित्र का दूसरे मित्र के साथ अपने व्यवहार और एक पिता का अपने बच्चे के प्रति व्यवहार के बारे में बतलाते हैं। इन दोनों के द्वारा येसु हमें ईश्वर जो कि पिता हैं उनपर पूर्ण विश्वास करने की शिक्षा देते हैं। वे हमारी सभी जरूरत की चीजों को अच्छी तरह जानते हैं फिर भी वे चाहते हैं कि हम साहस और अध्यवसाय हो कर उन्हें ईश्वर के सामने रखें क्योंकि ऐसा करने में हम उनके मुक्ति विधान के कार्य में सहभागी होते हैं। संत पापा ने कहा कि प्रार्थना प्रथम और मुख्य “कार्य का साधना” है जो हमारे हाथों में है। उन्होंने कहा कि अपनी प्रार्थनाओं को निरन्तर उनके समक्ष रखने से हम उन्हें विश्वस्त नहीं करते लेकिन यह हमारे विश्वास और धैर्य को मजबूती प्रदान करता है जिसके द्वारा हम ईश्वर की ओर से उन चीजों को पाने हेतु संघर्षशील बने रहते हैं जो सचमुच हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। ईश्वर के साथ मिल कर हम जीवन की आवश्यक चीजों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहते हैं।

इन चीजों में एक चीज जो हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है जिसे येसु सुसमाचार में हमें बतलाते हैं लेकिन उसकी याचना हम विरले ही ईश्वर से करते हैं और वह है पवित्र आत्मा। संत पापा ने कहा कि हम प्रार्थना करें “मुझे पवित्र आत्मा प्रदान कर।” येसु कहते हैं, “यदि तुम बुरे हो कर भी अपने लोगों को अच्छी चीजें प्रदान करते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता मांगने पर तुम्हें पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा।” संत पापा ने जोर देते हुए कहा कि हमें ईश्वर से अपने जीवन हेतु पवित्र आत्मा मांगने की आवश्यकता है। उन्होंने विश्वासी समुदाय को प्रश्न करते हुए कहा लेकिन क्यों हमें पवित्र आत्मा की जरूरत है? क्योंकि हम अपना जीवन अच्छी तरह जी सकें, विवेक और प्रेम का जीवन जीते हुए ईश्वर की इच्छा को पूरी कर सकें। उन्होंने कहा कि यह कितनी सुन्दर प्रार्थना है कि हम इस सप्ताह पिता से पवित्र आत्मा की मांग करें, “पिता हमें पवित्र आत्मा प्रदान कर।” माता मरिया हमें इसका साक्ष्य देतीं हैं क्योंकि वे पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थीं। वे हमारे लिए निवेदन करें कि हम येसु के द्वारा पिता से संयुक्त रह सकें और सांसारिक जीवन नहीं वरन् पवित्र आत्मा के सानिध्य में सुसमाचार के अनुरूप जीवन व्यतीत कर सकें।

इतना कहने के बात संत पापा ने विश्वासी समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा ने कहा कि इस वक्त हमारा हृदय आतंकी और हिंसा की घटनाओं से मर्माहत है जिसमें अनेक लोग मारे गये और घायल हुए हैं। मैं जर्मनी के म्युनिक  और अफगानिस्तान के काबुल की घटनाओं की याद करता हूँ जहाँ निर्दोष लोग मारे गये हैं। हम मृतकों और घायलों के प्रियजनों के साथ हैं। उन्होंने कहा कि मैं आप सभों को प्रार्थना करने हेतु निमंत्रण देता हूँ जिससे ईश्वर मुश्किलों का निदान और भ्रातृत्व की भावना प्रेरित करे। शांति और सुरक्षा की कठिनाइयाँ जितनी दुर्गम और धूमिल लगती हैं हमें उतना अधिक प्रार्थना करने की जरूरत है। इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ मौन प्रार्थना के बाद दूत संवाद प्रार्थना का पाठ किया और फिर इटली, ब्राजील, रोम और तुरीनो से साईकिल में आये युवाओं का अभिवादन करते हुए सबों को अपनी रविवारीय शुभकामनाएँ अर्पित की।








All the contents on this site are copyrighted ©.