2016-07-19 13:34:00

मार थोमा कलीसिया द्वारा याजक वर्ग के दाह संस्कार को अनुमोदन


तिरुवनंतपुरम, मंगलवार,19 जुलाई 2016 (ऊकान): एक अभूतपूर्व कदम के तहत मार थोमा सीरियाई कलीसिया ने शहरों में दफनाने के लिए स्थान की कमी की वजह से अपने याजकों के दाह संस्कार की अनुमति दे दी है।

तिरुवनंतपुरम महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष जोसेफ मार थोमा ने अपने याजकों और उनके परिवार की अंत्येष्टि के उपयोग में लाए गये कब्रों और मेहराबों के संबंध में कलीसिया के सभी पल्लियों को भेजे गये अपने पत्र में लिखा कि याजकों को दाह संस्कार की अनुमति दे दी गई है। अब तक, कलीसिया केवल कुछ लोकधर्मियों के पूर्व अनुरोध पर उनके दाह संस्कार की अनुमति देती थी।

परिपत्र में कहा गया है कि महाधर्माध्यक्ष और धर्माध्यक्षों को याजकों का पार्थिव शरीर उनके पूर्व अनुरोध के अनुसार या एक इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने की अनुमति देने का अधिकार है।

हालांकि, पल्ली में दफन की धर्मविधि पूरा होने के बाद ही दाह संस्कार की अनुमति दी जा सकती है। दाह संस्कार के बाद अवशेष को या तो परिवार के मेहराब में या व्यक्तिगत मेहराब में दफना दिया जाना चाहिए।

इसके अलावा, कलीसिया की धर्मसभा ने फैसला किया है कि विदेश में भी पार्थीव शरीर को दाह संस्कार करने की अनुमति दी जा सकती है।

महाधर्माध्यक्ष जोसेफ मार थोमा ने कहा, “शहरों में दफनाने के लिए स्थान की कमी की वजह से दाह संस्कार की अनुमति दे दी है। आज कई लोग गांवों को छोड़ शहरों में बस रहे हैं, इसमें याजकवर्ग भी शामिल हैं। कभी कभी शहर की पल्लियों में दफनाने हेतु स्थान उपलब्ध कराने के लिए बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।"

धर्माध्यक्ष जोसेफ मार बारनाबास ने कहा कि कुछ साल पहले एक पुरोहित का सिंगापूर में दाह संस्कार किया गया था क्योंकि सिंगापूर की सरकार ने सिर्फ दाह संस्कार की अनुमति दी थी।

मार बारनाबास ने कहा, “ख्रीस्तीयों का मानना था कि पार्थीव शरीर का दाह संस्कार नहीं होना चाहिए क्योंकि यह पुनर्जीवित किया जाएगा। आज उनके सोच में परिवर्तन हो रहा है। पार्थीव शरीर भले ही राख हो गया हो पर ईश्वर इसे फिर से जीवित कर सकते हैं।"








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