2016-07-13 17:12:00

मध्यपूर्वी देशों की परिस्थिति पर एक खुले वाद-विवाद में वाटिकन पर्यवेक्षक का वक्तव्य


संयुक्त राष्ट्र, बुधवार, 13 जुलाई 2016 (वीआर सेदोक): अमरीका में वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक एवं प्रेरितिक राजदूत महाधर्माध्यक्ष बेर्नादेत्तो औज़ा ने फिलीस्तीनी प्रश्न एवं मध्यपूर्वी देशों की परिस्थिति पर एक खुले वाद-विवाद में कहा कि दशकों की वार्ता के बावजूद फिलीस्तीनी राज्य के निर्माण के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है।

उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ″फिलीस्तीन का प्रश्न अनसुलझा पड़ा है जो इस्राएल एवं फिलीस्तीन दोनों देशों के लिए संतोष  दे रहा है। संयुक्तराष्ट्र महासभा द्वारा स्वीकार किये जाने के बाद करीब 69 साल बाद भी संकल्प 181 अधूरा है। दशकों की वार्ता के बावजूद फिलीस्तीनी राज्य के निर्माण के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है। ऐसा लगता है कि इस्राएल-फिलीस्तीन के बीच संघर्ष के अंत का समय अभी बाकी है।″

उन्होंने कहा कि वाटिकन इन बातों को चिह्नित करने से नहीं चूक सकता क्योंकि दो देशों के बीच समझौता एक उत्तम प्रतिज्ञा है। जब तक दोनों देश एक-दूसरे के साथ चलने, मेल-मिलाप करने तथा आपसी समझौता एवं आपसी सम्प्रभुता के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पहचानने में असहमत होंगे, स्थायी शांति दूर ही रहेगी तथा सुरक्षा भ्रम में बना रहेगा। वास्तव में, इन दोनों देशों में नवीनता लाने की आवश्यकता है क्योंकि अपने दिल की गहराई में वे शांति और सुरक्षा से बढ़कर कोई दूसरी चीज की चाह नहीं रखते।

औजा ने सीरिया की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि सीरिया में वहाँ के लोगों के लिए अब भी अकथनीय दुःख जारी है जो मारे जा रहे हैं, बम के नीचे भयभीत जीवन जीने के लिए मजबूर हैं अथवा पलायन कर रहे हैं। उन्होंने सभा को सम्बोधित कर कहा कि वे अत्याचार के शिकार ख्रीस्तीयों, यजिदियों तथा सीरिया और ईराक के अल्पसंख्यकों पर ध्यान दें। 

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि परमधर्मपीठ इस बात पर विश्वास नहीं करती है कि शांति प्रक्रिया केवल औपचारिक वार्ता पर निर्भर है। वाटिकन पर्यवेक्षक ने विश्वास पर आधारित अनौपचारिक वार्ता की भूमिका को प्रोत्साहन दिया।








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