वाटिकन सिटी, 12 जुलाई सन् 2016:
सन्त जॉन गॉलबेर्ट का जन्म, सन् 985 ई. के आस पास, इटली में फ्लोरेन्स के विसदोमीनी कुलीन परिवार में हुआ था। यद्यपि जॉन की शिक्षा-दीक्षा काथलिक स्कूलों में हुई थी तथापि, वे सांसारिक भोगविलासिता के प्रति आकर्षित थे। एक दर्दनाक घटना से उनका मनपरिवर्तन हुआ था। उनके भाई हुगो की हत्या कर दी गई थी। मिथ्याभिमानी जॉन ने इसका बदला लेना चाहा तथा तलवार लेकर फ्लोरेन्स के रास्तों पर निकल पड़े। उन्होंने हत्यारे को पहचाना तथा एक सकरी पगडण्डी तक उसका पीछा किया ताकि भाग न पाये। संयोग से वह दिन पुण्य शुक्रवार का दिन था। हत्यारा जॉन के समक्ष गिर पड़ा और गिड़गिड़ाकर क्रूसित प्रभु येसु की दुहाई देने लगा तथा क्षमा मांगने लगा। जॉन का दिल पसीज़ा और उन्होंने हत्यारे को छोड़ दिया।
भाई के हत्यारे को क्षमा करने के बाद जॉन सान मिनियातो स्थित बेनेडिक्टीन धर्मसमाज के गिरजाघर गये तथा क्रूस की प्रतिमा के समक्ष विलाप करने लगे। उन्होंने प्रार्थना की तथा अतीत के पापों की क्षमा मांगी। कहा जाता है कि जॉन गॉलहबेर्ट की प्रार्थना सुन क्रूस पर टंगी येसु की प्रतिमा ने सिर झुका लिया मानों प्रभु ख्रीस्त जॉन की उदारता को मान्यता दे रहे हों।
इस घटना के उपरान्त जॉन गॉलबेर्ट सान मिनियातो स्थित बेनेडिक्टीन धर्मसमाजी आश्रम में जीवन यापन करने लगे। सदगुणों में वे विकसित होते गये। यहाँ तक कि धर्मसमाज प्रमुख की मृत्यु पर उनके साथी धर्मसमाजियों ने प्रमुख पद पर उनकी नियुक्ति करना चाही किन्तु जॉन ने इस पद से इनकार कर दिया तथा आश्रम छोड़कर एकान्त की खोज में निकल पड़े।
इसी दौरान, इटली के तोस्काना प्रान्त में उनकी भेंट कमालदोली मठवासियों से हो गई। दो मठवासियों के संग उन्होंने वाल्ले ओम्ब्रोसा में एक मठ की स्थापना की जिसपर नोरच्या के सन्त बेनेडिक्ट द्वारा लिखे नियमों को लागू किया गया और इस प्रकार वालओम्ब्रोसा मठवासी धर्मसमाज की आधारशिला रखी गई। जॉन गौलबेर्ट एक विनम्र एवं अति उदारमना व्यक्ति थे। उदारता के कारण ही उन्होंने ऐसा नियम प्रस्तावित किया था कि यदि कोई निर्धन दरवाज़ा खटखटाये तो उसे खाली हाथ न लौटाया जाये। उन्होंने कई मठों की स्थापना की तथा अन्य अनेक का सुधार किया। धर्मविक्रय या धर्म को बिकनेवाली चीज़ बनाने वालों को भी उन्होंने आड़े हाथों लिया तथा उम्ब्रिया एवं तोस्काना के काथलिक समुदाय को इस दोष से मुक्त किया। 12 जुलाई सन् 1073 ई. को, 80 वर्ष की आयु में, जॉन गॉलबेर्ट का निधन हो गया। उनका पर्व 12 जुलाई को मनाया जाता है।
चिन्तनः "प्रभु पर श्रद्धा महिमा और गौरव, आनन्द और उल्लास की पराकाष्ठा है। प्रभु पर श्रद्धा हृदय में स्फूर्ति भरती और आनन्द, प्रसन्नता एवं दीर्घ जीवन प्रदान करती हैं। जो प्रभु पर श्रद्धा रखता है, उसका अन्त में भला होगा, वह अपनी मृत्यु के दिन धन्य माना जायेगा" (प्रवक्ता ग्रन्थ 1:11-13)।
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