2016-07-12 15:15:00

धर्माध्यक्षों की चाह, धर्म आधारित कानून समाप्ति के पहले वार्ता हो


कोच्चि, मंगलवार,12 जुलाई 2016 (ऊका समाचार): भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षों ने सरकार से धार्मिक निजी कानूनों के स्थान में समान नागरिक कानून को सूत्रबद्ध करने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर सभी धर्मों को शामिल करने के लिए कहा है।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष कार्डीनल बसेलिओस क्लीमिस ने 9 जुलाई को एक बयान में कहा, "भारत की एकता की रक्षा सुदृढ़तापूर्वक की जानी चाहिए। समान नागरिक संहिता पर विचार- विमर्श संविधान द्वारा सुनिश्चित स्वतंत्रता के आधार पर और विभिन्न धार्मिक समूहों की भावनाओं को चोट पहुंचाए बिना किया जाना चाहिए।" 

सम्मेलन के अध्यक्ष कार्डीनल क्लीमिस ने उपरोक्त बयान उस समय दिया जब संघीय सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने भारतीय विधि आयोग से धर्म आधारित कोड के स्थान में एक समान नागरिक संहिता लागू करने के तरीकों की तलाश करने के लिए पूछा।

भारत में औपनिवेशिक काल से चली आ रही विश्वास पर आधारित व्यक्तिगत कानून को मोदी के समर्थक भारतीय जनता पार्टी और अन्य हिन्दू संगठन खत्म करने का पक्ष में हैं । हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने के लिए अलग कानून हैं। हालांकि सिख, बौद्ध और जैन हिन्दुओं द्वारा लागू कानूनों का पालन करते हैं।

कार्डिनल ने कहा कि काथलिक धर्माध्यक्ष पूरे देश के अन्य ख्रीस्तीय नेताओं के साथ मिलपर एक संयुक्त ख्रीस्तीय प्रतिक्रिया को सरकार के आगे पेश करेंगे।

पिछले हफ्ते, सीरो मलाबार कलीसिया के प्रमुख, कार्डिनल जॉर्ज अलेंचेरी ने मीडिया से कहा कि काथलिक कलीसिया मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत करती है। समान नागरिक संहिता से देश को एकजुट करने में मदद मिलेगी।

कार्डिनल क्लीमिस ने ऊका समाचार से कहा कि कार्डिनल जॉर्ज अलेंचेरी कार्डिनल ने भी वार्तालाप और परामर्श की आवश्यकता पर बल दिया था लेकिन मीडिया रिपोर्टों ने इसे नजरअंदाज कर दिया था। यही कारण है कि हमने फिर से इसे रेखांकित करने की जरूरत महसूस की।"

उन्होंने कहा, "भारत का संविधान सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को स्वीकार करने की स्वतंत्रता और प्रचार करने की अनुमति देता है कोई भी कानून इस मौलिक स्वतंत्रता को खत्म नहीं कर सकता है।"








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