2016-06-30 10:36:00

पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, स्तोत्र ग्रन्थ भजन 73


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"तेरे सिवा स्वर्ग में मेरा कौन है? मैं तेरे सिवा पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता। मेरा शरीर और मेरा हृदय भले ही क्षीण हो जाये, किन्तु ईश्वर मेरी चट्टान है, सदा के लिये मेरा भाग्य है।" श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 73 वें भजन के 25 वें और 26 वें पदों के शब्द जिनमें भजनकार एक बार फिर प्रभु ईश्वर में अपने दृढ़ विश्वास की अभिव्यक्ति करता है।

पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत विगत सप्ताहों में हमने इस तथ्य पर मनन-चिन्तन किया कि जब हम नासमझ बनकर दुष्टों की सफलता के लिये ईश्वर पर दोष लगाने लग जाते हैँ तब हमारा व्यवहार विवेकहीन होता है, हम पशु के सदृश व्यवहार करने लग जाते हैं। हमारा हृदय दुःखी हो जाता है। हम शक के अन्धेरे में खो जाते हैं और ईश्वर द्वारा सृजित प्रकाश पर बुराई के अन्धकार की विजय को स्वीकारने लग जाते हैं।

बाद में दुष्ट का विनाश देखने पर पछताते हैं। हम पर यह प्रकट हो जाता है कि दुष्ट अथवा दुष्कर्मी अन्याय और अत्याचारों से जो पूँजी और धन दौलत जमा करते हैं वह सब की सब एक ही क्षण में धराशायी हो जाती है। जब हमारी समझ में आता है कि धोखेधड़ी और हिंसा से कमाया गया उनका धन, उनका सुख क्षणभंगुर है तब ही हम प्रभु ईश्वर के प्रति अभिमुख होते हैं और उनमें अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करते हैं।

इस तरह एक बार फिर प्रभु ईश्वर में हमारा विश्वास प्रबल हो जाता है। हम ईश्वर को अपना पथप्रदर्शक स्वीकार कर 73 वें भजन के रचयिता के सदृश कह उठते हैं:  "फिर भी मैं सदा तेरे साथ हूँ और तू मेरा दाहिना हाथ पकड़कर अपने परामर्श से मेरा पथप्रदर्शन करता है और बाद में मुझे अपनी महिमा में ले चलेगा।" इन शब्दों के उच्चार से भजनकार इस तथ्य पर बल देता है कि वह इस बात के प्रति सचेत है कि ईश्वर ही उसका दाहिना हाथ पकड़कर उसे अपनी महिमा में ले चलेंगे क्योंकि ईश्वर का प्रेम असीम है।

प्रभु ईश्वर के प्रेम का एहसास पा लेने के बाद ही 73 वें भजन के 25 वें और 26 वें पदों में भजनकार एक बार फिर प्रभु ईश्वर में अपने दृढ़ विश्वास की अभिव्यक्ति करता है। वह स्वतः को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देता, ईश इच्छा के आगे नतमस्तक हो जाता। जो कुछ है उसे ईश्वर की इच्छा मानकर धैर्यपूर्वक स्वीकार करता, अपने दायित्वों का निष्ठापूर्वक निर्वाह करता तथा अपनी प्रार्थनाओं द्वारा यह मंगलकामना करना कि सृष्टिकर्ता प्रभु ईश्वर के कार्य अनवरत जारी रहें तथा अनन्त काल तक बने रहें क्योंकि प्रभु के सिवाय भक्त का और कोई नहीं होता, कहता हैः "तेरे सिवा स्वर्ग में मेरा कौन है? मैं तेरे सिवा पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता। मेरा शरीर और मेरा हृदय भले ही क्षीण हो जाये, किन्तु ईश्वर मेरी चट्टान है, सदा के लिये मेरा भाग्य है।"

श्रोताओ, जीवन जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लेने वाले लोग भी प्रभु ईश्वर की इच्छा के आगे समर्पित लोग हैं। जो कुछ है उसी में सन्तोष कर लेना हालांकि सरल नहीं होता किन्तु जो नहीं है उसके लिये विलाप करते रहना और अनवरत शिकायत करते रहना भी उचित नहीं। यह व्यक्ति को कमज़ोर ही नहीं कायर भी बना देता है। उसके विश्वास को डाँवाडोल कर देता है। उसमें अवसाद की स्थिति को उत्पन्न कर देता तथा उसके और उसके संग रहनेवालों का जीवन दूभर कर देता देता। अस्तु, प्रभु की कृपा से जो कुछ हमें मिला है उसे हम सहर्ष स्वीकार करें तथा बात-बात पर शिकायत करने से दूर रहें तब ही हम अपने जीवन में सुख पा सकेंगे तथा अन्यों के लिये सुख और आनन्द का स्रोत बनेंगे।

आगे स्तोत्र ग्रन्थ के 73 वें भजन के अन्तिम दो पदों में भजनकार कहता हैः "जो तुझे त्याग देते हैं, वे नष्ट हो जायेंगे। जो तेरे साथ विश्वासघात करते हैं, तू उनका विनाश करता है। ईश्वर के साथ रहने में मेरा कल्याण है। मैं प्रभु ईश्वर की शरण आया हूँ। मैं तेरे सब कार्यों का बखान करूँगा।"

भजनकार का विचार स्पष्ट है कि जो लोग ईश्वर से दूर रहते हैं, ईश्वर के अस्तित्व में ही विश्वास नहीं करते वे ख़ुद अपने विनाश का कारण बनते हैं। भजनकार कहता है कि स्वेच्छा से वे स्वतः को ईश्वर से अलग कर लेते हैं जिसके फलस्वरूप अनन्त जीवन से भी अलग हो जाते हैं किन्तु मैं जानता हूँ ईश्वर के साथ रहने में ही मेरा कल्याण है और इसीलिये मैं प्रभु ईश्वर की शरण आया हूँ। वह स्वीकार करता है कि प्रभु ईश्वर के नियमों पर चलकर ही उसका जीवन सफल होगा तथा मुक्ति के पथ पर अग्रसर हो सकेगा। ईश्वर के नियम ही उसके जीवन को अर्थ प्रदान करते तथा उसे चट्टान के सदृश अटल रहने की शक्ति देते हैं। 

73 वें भजन का रचयिता राजा दाऊद के सदृश यह अनुभव प्राप्त करता है कि प्रभु ईश्वर ही उसकी शरण शिला और उसका आधार हैं। प्रभु ईश्वर ही उसका सर्वस्व हैं उनके सिवाय उसका और कोई नहीं। स्तोत्र  ग्रन्थ के 18 वें भजन के दूसरे पद में दाऊद के इन शब्दों को अभिव्यक्ति  मिली है: "ईश्वर ही मेरी चट्टान है, जहाँ मुझे शरण मिलती है। वही मेरी ढाल है, मेरा शक्तिशाली उद्धारकर्त्ता और आश्रयदाता है।" 








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