2016-06-18 15:58:00

पश्चाताप पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, शनिवार, 18 जून 2016 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर  प्राँगण में संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 18 जून को, करुणा के पवित्र वर्ष हेतु आमदर्शन समारोह का नेतृत्व किया तथा अपनी धर्मशिक्षा माला जारी की।

हज़ारों की संख्या में उपस्थित विश्वासियों को संदेश देते हुए संत पापा ने जी उठे ख्रीस्त द्वारा एम्माउस के रास्ते पर दर्शन देकर शिष्यों को दी गयी पश्चाताप एवं पापों की क्षमा के उपदेश को दुनिया में प्रचार किये जाने पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा, ″पश्चाताप और पापों की क्षमा, ईश्वर की करुणा के दो विशेष पहलू हैं।″ संत पापा ने आज की धर्मशिक्षा माला में इन दोनों सदगुणों में से एक ‘पश्चाताप’ पर चिंतन केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि यह सम्पूर्ण बाईबिल में निहित है, खासकर, नबियों की शिक्षा में, जो लोगों को निरंतर प्रभु की ओर लौटने का निमंत्रण देती है, उनसे क्षमा मांगने तथा जीवन शैली को बदलने का आग्रह करती है।

नबियों के अनुसार पश्चाताप का अर्थ है दिशा-परिवर्तन एवं प्रभु की ओर लौटना, इस निश्चितता पर भरोसा रखना कि वे हमें प्यार करते हैं तथा उनका प्रेम सदा निष्ठावान है। येसु ने पश्चाताप शब्द को अपनी शिक्षा का प्रथम शब्द बनाया। ″पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।″ (मार.1:15) इसी घोषणा के साथ लोगों के लिए ख्रीस्त सुसमाचार में विद्यामान हैं। वे लोगों से आग्रह करते हैं कि पिता द्वारा मानवजाति को दिए गये वचन की तरह वे उनके वचन को स्वीकार करें। नबियों की शिक्षा की तुलना में येसु पश्चाताप की अधिक आंतरिक पहलू पर जोर देते हैं।

संत पापा ने कहा कि येसु जब पश्चाताप की बात करते हैं तो वे लोगों का न्याय नहीं करते बल्कि उनके करीब रहने, मानव परिस्थिति को समझने तथा उन लोगों के प्रति दया भाव रखने की बात करते हैं जिन्हें मन-परिवर्तन की आवश्यकता है ताकि सभी कोई मुक्ति इतिहास में सहभागी हो सकें। अपने व्यवहार से येसु लोगों के हृदय की गहराई को छूते, उन्हें ईश्वर के प्रेम की ओर आकर्षित करते तथा उनके जीवन में परिवर्तन लाने का आग्रह करते हैं। संत पापा ने कहा कि सच्चा पश्चाताप तब होता है जब हम कृपा को स्वीकार करते हैं। हम कई बार परिवर्तन की आवश्यकता महसूस करते हैं जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। संत पापा ने लोगों को परामर्श दिया कि वे प्रभु के बुलावे को सुनें तथा अपने लिए किसी प्रकार के दीवार का निर्माण न करें क्योंकि जब हम उनकी दया के लिए अपने आप को खोलते हैं तब हमें सच्चा जीवन एवं सच्चा आनन्द प्राप्त होता है।








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