2016-06-11 17:20:00

संत पापा ने विकलांग लोगों को सम्बोधित किया


वाटिकन सिटी, शनिवार, 11 जून 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 11 जून को वाटिकन स्थित पौल षष्ठम सभागार में, इताली काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के तत्वावधान में संचालित, शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए धर्मशिक्षा कार्यालय की 25वीं वर्षगाँठ के अवसर पर 650 प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

उन्हें सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, ″वर्षगाँठ प्रोत्साहन देता है कि वे अपने समर्पण को नवीकृत करें, यह सुनिश्चित करें कि विकलांग व्यक्ति पल्लियों, संस्थाओं तथा कलीसियाई संगठनों में पूरी तरह स्वागत किये जा सकें।″

संत पापा ने इस प्रेरिताई में उनके समर्पण एवं उत्साह के लिए धन्यवाद देते हुए सलाह दी कि वे विकलांग व्यक्ति के विश्वास की शिक्षणीयता के प्रति सचेत, गंभीर तथा समुदाय में उसकी सक्रिय सहभागिता को स्वीकार करने हेतु सदैव तैयार रहें।

संत पापा ने उनकी प्रेरिताई के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस प्रशिक्षण द्वारा व्यक्ति न केवल ख्रीस्त के साथ मुलाकात का अनुभव करता किन्तु दूसरों के लिए साक्ष्य भी प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि यद्यपि कलीसिया में शारीरिक रूप से विकलांग अथवा मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के प्रति स्वागत की भावना रखी जाती है तथापि, हमारे समुदायों में पूर्ण समापेशी भावना अभी भी लाया नहीं जा सकी है। जिसके लिए न केवल तकनीकी और विशेष कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है बल्कि यह पहचानने एवं स्वीकार करने की आवश्यकता है कि हर व्यक्ति अद्वितीय और बेजोड़ है। इस कार्य में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण है जो न केवल उन्हें स्वीकार करता किन्तु प्रोत्साहन और समर्थन भी देता है। संत पापा ने ख्रीस्तीय समुदाय की तुलना एक परिवार से की जो पीड़ितों के प्रति सहानुभूति रखता, जहाँ निराश व्यक्ति समझे जाने एवं अपनी प्रतिष्ठा का सम्मान किये जाने का अनुभव करता है।

संत पापा ने विकलांग लोगों की संस्कारों में सहभागिता पर ध्यान देने की बात करते हुए कहा कि हमें यह स्पष्ट जानना चाहिए कि वे भी संस्कारीय जीवन के लिए पूर्ण रूप से बुलाये गये हैं यहाँ तक कि गंभीर मानसिक बीमारी से ग्रस्त होने पर भी। यह दुःखद है कि कभी- कभी उन पर संदेह किया जाता अथवा उन्हें रोका जाता है। 

संत पापा ने कहा कि संस्कार एक वरदान है। धर्मविधि को मानसिक रूप से समझने के बजाय व्यक्तिगत एवं कलीसियाई समुदाय में जीया जाना चाहिए। इस प्रकार, ख्रीस्तीय समुदाय कार्य करने के लिए बुलाया जाता है जिससे कि बपतिस्मा प्राप्त सभी लोग ख्रीस्त का अनुभव कर सकें। अतः समुदाय की यह भी जिम्मेदारी है कि वह विकलांग व्यक्तियों का ख्याल रखे। संत पापा ने कलीसियाई समुदाय से आग्रह किया कि वह विकलांग लोगों को धर्मविधि में भाग लेने एवं कलीसिया के अन्य गतिविधियों में शामिल होने का बराबर ध्यान रखे। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक विकसित मानसिकता की आवश्यकता है जो पूर्वाग्रह, उपेक्षा तथा हाशिये पर रखे जाने की भावना से मुक्त, भाईचारा की भावना को प्रोत्साहन देते हुए उसे भिन्न मूल्यों के रूप में सम्मान प्रदान कर सके।








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