वाटिकन सिटी, शनिवार, 11 जून 2016 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में शनिवार 11 जून को संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन वेधशाला द्वारा आयोजित ग्रीष्म कोर्स के आयोजकों, शिक्षकों एवं प्रतिभागियों से मुलाकात की।
वाटिकन वेधशाला की स्थापना संत पापा लेवो 13वें ने सन् 1891 ई. में ″सच्चाई एवं ठोस विज्ञान, मानव या ईश्वरीय″ को कलीसिया का समर्थन देने हेतु की थी। वर्षों तक वेधशाला ने नये वैज्ञानिक उपकरण के उपयोग द्वारा इसके वास्तविक मकसद को पूरा करने का प्रयास किया है, साथ ही साथ अन्य अनुसंधान केंद्रों के साथ वार्ता एवं सहयोग का माध्यम रहा है।
संत पापा ने वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु ग्रीष्म कालीन कोर्स में भाग ले रहे 45 लोगों से कहा कि उनकी उपस्थिति एक चिन्ह है जो विभिन्न संस्कृतियों एवं धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों द्वारा उपयोग किये जा रहे विश्व, ईश्वर की सृष्टि तथा इसमें मानव के स्थान को समझने की लालसा को दर्शाता है। संत पापा ने कहा, ″हम सभी एक ही आसमान के नीचे जीते हैं। हम सभी संसार में प्रकट सौंदर्य तथा आकाश की निकायों और पदार्थों से प्रभावित होते हैं। इस तरह हम सभी उस सच्चाई की खोज करना चाहते हैं कि यह अनोखा ब्रहमाण्ड किस तरह संचालित है और इस खोज द्वारा हम सृष्टिकर्ता ईश्वर के करीब पहुँचते हैं।
विदित हो कि यह पाँचवाँ समर कोर्स है जिसमें सौर मंडल एवं अन्य जगहों में जल के विद्यामान होने पर अध्ययन किया जा रहा है। संत पापा ने कहा, ″हम सभी पृथ्वी पर जीवन, मानवजाति तथा हमारे कार्यों में पानी के महत्व से परिचित हैं।″ उन्होंने कहा कि पानी का कोई भी स्रोत चाहे वह बड़ा हो या छोटा अथवा किसी भी रूप में क्यों न हो, हमें अपने ताकत और सरलता से प्रभावित करता है। महान सभ्यताओं का आरंभ नदी और जल उपलब्ध स्थलों पर ही हुआ है और आधुनिक युग में भी मानव जाति, धनी एवं ग़रीब सभी के लिए यह न्याय का मुद्दा है।
संत पापा ने प्रतिभागियों को लम्बे अनुसंधान कार्यों में भी आनन्द बनाये रखने की सलाह देते हुए कहा, ″वैज्ञानिक अनुसंधान यद्यपि महान समर्पण की मांग करता है और कभी-कभी लम्बी अवधि की मांग करता है यह उनके लिए आनन्द का विषय बन सकता है।″ उन्होंने शुभकामनाएँ दी कि वे अपने कामों में सदा आंतरिक आनन्द का अनुभव करें एवं अध्ययन के परिणाम को विनम्रता एवं भ्रातृ प्रेम से एक-दूसरे को बांटें।
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