वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 3 जून 2016 (सेदोक) संत पापा फ्रांसिस ने करुणा के जयन्ती वर्ष में विश्वभर के पुरोहितों के लिए जयन्ती के उपलक्ष्य में रोम स्थित संत पौल महागिरजाघर में आध्यात्मिक साधना की अगुवाई करते हुए “येसु की मधुर सुगंध और करुणा की ज्योति” पर अपना तृतीय मनन-चिंतन प्रस्तुत किया।
उनके चिंतन का केन्द्र बिन्दु “करुणा के कार्य” थे जिस पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “दयावान होना” केवल “जीवन का एक मार्ग नहीं” लेकिन “जीवन का एक मात्र मार्ग हैं” इसके सिवाय पुरोहित बनने हेतु और कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
येसु और व्यभिचारिणी स्त्री के साक्षात्कार पर ध्यान आकर्षित करते हुए संत पापा ने अपने व्याख्यान में कहा कि येसु कहते हैं, “जाओ और फिर पाप नहीं करना” जो भविष्य में उनकी आज्ञा पालन की बात का जिक्र करता है जिससे वह एक नई जिन्दगी की शुरूआत कर सकें और “प्रेम के मार्ग” पर चल सके। यह करुणा की संवेदनशीलता है। संत पापा ने कहा, “यह प्रेम से बीते दिनों को देखता और भविष्य में आगे बढ़ने हेतु प्रोत्साहन देता है।” पापस्वीकार संस्कार की ओर ध्यान आकृर्षित करते हुए संत पापा ने कहा, “लोग पापस्वीकार करने आते क्योंकि वे पश्चातापी हैं। वे अपने जीवन में परिवर्तन लाना चाहते हैं।”
अपने चिंतन के दौरान संत पापा ने पुरोहितों को निमंत्रण देते हुए कहा, “आप लोगों की स्थिति से प्रभावित हूँ, जो कभी-कभी हमारे जीवन का भी अंग है, मानव कमजोरी, पाप और अजेय स्थितियाँ। उन्होंने आगे कहा,“हमें येसु की तरह बनने की जरूरत हैं जो लोगों को और उनकी परिस्थितियों और तकलीफों को देखकर द्रवित हो जाते थे।”
FR. Sanjay SJ
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