2016-06-03 15:34:00

वाटिकन में पुरोहितों के लिए करुणा की जयन्ती समारोह


वाटिकन सिटी, शनिवार, 3 जून 2016 (वीआर सेदोक): ″येसु के परम पवित्र हृदय के महापर्व पर पुरोहितों की जयन्ती हमें निमंत्रण दे रहा है कि हम अपने हृदय में प्रवेश करें, जो प्रत्येक व्यक्ति का मूल एवं उसकी नींव है। हमारे प्रभावपूर्ण जीवन, हमारे शब्द एवं अंतःस्थल पर गौर करें।″ उक्त बात संत पापा फ्राँसिस ने पुरोहितों से कही।

पुरोहितों के लिए करूणा की जयन्ती के उपलक्ष्य में 3 जून को, येसु के पवित्रतम हृदय के महापर्व पर वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए संत पापा ने दो हृदयों पर चिंतन किया: भले चरवाहे का हृदय एवं एक पुरोहित के रूप में हमारा अपना हृदय।

उन्होंने भले चरवाहे के हृदय पर प्रकाश डालते हुए कहा, ″भले चरवाहे का हृदय न केवल एक ऐसा हृदय है जो हम पर दया करता किन्तु वह स्वयं करुणा है। उसी में पिता का प्रेम प्रज्वलित होता है वहीं हम स्वागत किये जाते तथा अपनी पहचान पाते हैं। हम यह निश्चित रूप से जानते हैं कि हम चुने गये और प्यार किया गये हैं। हृदय पर चिंतन करते हुए हम अपने पहले प्यार का स्मरण करते हैं, उस मधुर अनुभूति का अनुभव करते हैं जब प्रभु हमारे हृदय का स्पर्श करते हैं, हमारे जीवन के जाल को इस दुनिया रूपी सागर में फेंकने का आनन्द।″

संत पापा ने कहा कि भले चरवाहे का हृदय बतलाता है कि उनका प्रेम असीम है यह कभी समाप्त नहीं होता। हम उसमें उनके अनन्त बलिदान को देखते हैं, उनके निष्ठावान एवं विनीत प्रेम के स्रोत को पाते हैं जो हमें स्वतंत्र कर देता और जहाँ हम निरंतर येसु के प्रेम का एहसास करते हैं।

भले चरवाहे का हृदय उन लोगों तक पहुँचता है जो उनसे बहुत दूर हैं। हम इसमें उनके प्रेम की सबसे बड़ी कमजोरी को पाते हैं जो सभी का आलिंगन करना चाहता है।

संत पापा ने पुरोहितों को अपने हृदय पर गौर करने का निमंत्रण देते हुए कहा कि येसु के हृदय पर चिंतन करते हुए हमारे मन में पुरोहितीय जीवन का एक मौलिक सवाल उत्पन्न होता है, ″मेरा हृदय किस ओर संचालित है?″ उन्होंने कहा कि हमारी प्रेरिताई बहुधा कई योजनाओं एवं कार्यों से भरी होती है। इन सभी के बावजूद हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि मेरा हृदय किस पर लगा हुआ है तथा वह कौन सा खजाना है जिसे मैं पाना चाहता हूँ?

एक पुरोहित का हृदय प्रभु के प्रेम से छेदा गया है यही कारण है कि वह अपने आप की नहीं किन्तु ईश्वर तथा अपने भाई-बहनों की चिंता करता है। यह घबराने वाला नहीं है और न ही क्षणिक सनक से आकर्षित होता। यह क्षुद्र संतोष की खोज करने वाला हृदय भी नहीं है बल्कि प्रभु पर सुदृढ़ रहने वाला है। पवित्र आत्मा से संचालित, यह सभी के लिए उदार एवं भाई बहनों के लिए तत्पर हृदय है।

संत पापा ने नबी एजेकिएल के ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए कहा कि भला चरवाहा खोये हुए भेड़ को खोजने जाता, उसे वापस लाता एवं उसके कारण आनन्द मनाता है। उन्होंने कहा कि वह किसी जोखिम की परवाह किये बिना खोये हुए भेड़ की खोज में जाता है। वह कभी नहीं सोचता कि मैंने आज के लिए बहुत काम कर लिया है बाकी कल करूँगा। वह अपने लिए समय और स्थान की चिंता नहीं करता है। ख्रीस्त अपनी भेड़ों को प्यार करते और उन्हें जानते हैं। वे उनके लिए अपना जीवन अर्पित करते हैं। उसी तरह एक पुरोहित भी अपने लोगों के लिए अभिषिक्त किया गया है। अपनी योजनाओं का चुनाव करने के लिए नहीं किन्तु लोगों के करीब रहने के लिए। वह किसी की उपेक्षा नहीं कर सकता।

संत पापा ने कहा कि ईश्वर आनन्द से पूर्ण हैं। उनका आनन्द उड़ाव पुत्र के पश्चाताप करने एवं वापस आने पर उसको क्षमा करने से उत्पन्न होता है। येसु का आनन्द केवल अपना नहीं है किन्तु दूसरों के लिए, दूसरों के साथ है, प्रेम का सच्चा आनन्द है। संत पापा ने कहा कि एक पुरोहित का आनन्द भी ऐसा ही है। प्रार्थना द्वारा वह ईश्वर की सहानुभूति को प्राप्त करता है तथा यह अनुभव करता है कि ईश्वर के प्रेम से बढ़कर कोई बड़ी शक्ति नहीं है। वह ईश्वर के हृदय के करीब रहकर आंतरिक शांति का अनुभव करता तथा करुणा का माध्यम बनता है। दुःख उनके लिए शोक का कारण नहीं किन्तु राह पर एक कदम है। कड़वाहट से वह कोसों दूर रहता क्योंकि वह ईश्वर के विनीत हृदय के साथ एक चरवाहा है।

संत पापा ने पुरोहितों को सम्बोधित कर स्मरण दिलाया कि हर युखरिस्त बलिदान में वे अपनी पहचान करे कि वे चरवाहे हैं तथा येसु के शब्दों को अपनाते हुए उनके समान अपने बदन और लोहू अर्पित करें। उन्होंने कहा कि पुरोहितों के जीवन का यही अर्थ है और इसके द्वारा वे प्रतिदिन अपने पुरोहितीय जीवन की प्रतिज्ञा को नवीकृत करें।

 








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