2016-05-12 16:51:00

कार्डिनल परोलिन की लातविया यात्रा, लातवियाई भाषा में ″लाओदातो सी″ का विमोचन


लातविया, बृहस्पतिवार, 12 मई 2016 (वीआर सेदोक): वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने 12 मई को लातविया की यात्रा के दौरान संत पापा फ्राँसिस के प्रेरितिक पत्र ″लाओदातो सी″ की लातवियाई भाषा में अनुवाद का विमोचन किया।

उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, ″प्रेरितिक पत्र जो ‘आम गृह’ की देखभाल पर आधारित है उसका प्रकाशन 24 मई 2015 में पेंतेकोस्त महापर्व के दिन हुआ था जब कलीसिया में पवित्र आत्मा को ग्रहण करने के बाद कलीसिया के प्रकटीकरण की यादगारी मनायी जाती है।″    

कलीसिया की धर्मशिक्षा बतलाती है कि ख्रीस्त ने जिस राज्य का प्रचार किया, उसका द्वार सभी विश्वासियों के लिए खुला है तथा उसमें प्रवेश पाने हेतु पवित्र आत्मा सहायता करता है।  

कार्डिनल ने अपने संदेश में प्रेरितों पर पवित्र आत्मा के उतरने पर चिंतन करते हुए ‘घर’ शब्द पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ″उस घर में जहाँ वे एकत्र थे गूँज उठा।″ उन्होंने कहा कि संत पापा के प्रेरितिक पत्र के शीर्षक में जिस ‘घर’ शब्द का प्रयोग किया है वह हमारे आम घर को दर्शाता है।

कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने प्रेरित चरित के प्रकाश में, तीन मुख्य बिन्दुओं को रखते हुए विश्व पत्र लाओदातो सी के महत्व पर प्रकाश डाला: आम घर, जागरूकता में वृद्धि द्वारा व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेना तथा पूरक सिद्धांत के सामूहिक आयाम पर हमारी जिम्मेदारी को बढ़ाना।

उन्होंने कहा कि पृथ्वी एक घर है जिसमें मानव निवास करता है जो अब बुरी तरह से क्षति ग्रस्त हो चुका है जिसे न केवल पर्यावरण के रूप में किन्तु सामाजिक, सांस्कृतिक एवं कई अन्य रूपों में स्पष्ट देखा जा सकता है। मानव अस्तित्व चार चीजों पर जुड़ा है, ईश्वर, पड़ोसी, अपने आप तथा प्रकृति पर। उन्होंने कहा कि आज मानव इस संबंध को पहचानने में असफल हो गया है जो विनाश का प्रमुख कारण है। लाओदातो सी के पहले अध्याय में ही इस बात की ओर ध्यान खींचा गया है कि हमारे आम घर की स्थिति क्या हो रही है और उसकी रक्षा हेतु आह्वान किया गया है।

विश्व प्रेरितिक पत्र में व्यक्तिगत जिम्मेदारी के प्रति जागरूकता होने तथा उदासीनता से ऊपर उठने पर भी जोर दिया गया है। ताकि हम अपने जीवन के उद्देश्य एवं अर्थ को साकार कर सकें।

तीसरी बिन्दु पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि लाओदातो सी में दर्शाया गया है कि पर्यावरण संकट नैतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संकट द्वारा उत्पन्न होती है अतः हम सभी को आंतरिक परिवर्तन की आवश्यकता है। ताकि हम अपने दैनिक जीवन में अपनी गल़तियों, पापों, अवगुणों तथा उपेक्षाओं को देख सकें जिसके लिए पश्चाताप एवं मन-परिवर्तन की आवश्यकता है। इस प्रकार, हम समस्त विश्व के रक्षक बनेंगे। उन्होंने कहा कि इन सभी के लिए व्यक्तिगत समर्पण की आवश्यकता है किन्तु यह पर्याप्त नहीं है इसे समूह में भी फैलाना जाना जरूरी है।

अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति जागरूकता का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति को फेंकने अथवा नष्ट करने की संस्कृति से दूर रखना तथा समाज की रक्षा हेतु एक गंभीर संस्कृति को प्रोत्साहन देना।

विदित हो कि संत पापा फ्राँसिस के प्रेरितिक पत्र ‘लाओदातो सी’ को विश्व के कई अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।

 








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