2016-04-20 12:59:00

सरकारी पैनल ने मध्य प्रदेश के कलीसियाई नेताओं को किया परेशान


भोपाल, बुधवार 20 अप्रैल 2016 (ऊकान):  मध्यप्रदेश के कलीसियाई नेताओं ने एक आधिकारिक पैनल द्वारा राज्य के अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त शैक्षिक संस्थानों के पुनर्मूल्यांकन की सिफारिश को  प्रदेश की सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी की चाल और ईसाई विरोधी कार्यक्रम का हिस्सा बताया है।

धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा हेतु सरकार द्वारा नियुक्त राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने पिछले सप्ताह सरकार से अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त शैक्षिक संस्थानों के प्रमाण पत्र के जांच करने की सिफारिश की है।

कलीसियाई नेताओं ने कहा कि आयोग की सिफारिश उनके स्कूलों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता में कटौती के उद्देश्य से की गई है जिन्हें धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक संस्थानों को स्थापित करने और चलाने के लिए संवैधानिक गारंटी दी गई है और प्रमाणित अल्पसंख्यक संस्थाओं को अपने कर्मचारियों की नियुक्तियों और छात्रों के दाखिले में स्वायत्तता प्राप्त है।

भोपाल के महाधर्माध्यक्ष लेओ कोरनेलियो ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग की सिफारिश की खबर पर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए कहा,“यह कदम  राज्य में शिक्षा के स्तर को रोकने और  ईसाई विरोधी कार्यक्रम के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है।"

क्षेत्रीय धर्माध्यक्षीय परिषद के प्रवक्ता फादर मरिया स्टीफन ने कहा,"यह बहुत ही निराशाजनक बात है कि अल्पसंख्यक पैनल ने राज्य सरकार को अल्पसंख्यकों के खिलाफ रिपोर्ट दी है। अल्पसंख्यक आयोग अल्पसंख्यक संस्थानों की रक्षा करने और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए है लेकिन वह अपने कर्तव्य में नाकाम रहा हैं। "

ईसाई और मुस्लिम नेताओं का कहना है कि यह सरकार द्वारा मौन समर्थन प्राप्त, कट्टरपंथी हिंदूओं का गुप्त रुप से आयोजित हिंसा है। सन् 2003 से मध्य प्रदेश से हिंदू चरमपंथियों द्वारा समर्थित भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है। इन वर्षों में अल्पसंख्यक ईसाइयों और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के कई मामले देखे गये हैं।

राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सचिव निसार अहमद ने ऊका समाचार से कहा कि आयोग ने अल्पसंख्यक अधिकार प्रमाण पत्र देने में भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के उद्देश्य से सिफारिश की है।

अहमद ने कहा कि निजी स्वामित्व और प्रबंधन स्कूलों में उस इलाके के 25 प्रतिशत गरीब छात्रों को दाखिला मिलना चाहिए और सरकार उनके लिए भुगतान करेगी लेकिन बहुत से ऐसे स्कूल गरीब छात्रों को स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी संस्था की शिक्षा का स्तर नीचे गिर जाएगा।

फादर स्टीफन ने कहा कि वे अहमद के स्पष्टीकरण से असंतुष्ट हैं।








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