वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 18 मार्च 2016, (सेदोक) संत पापा ने नवदीक्षार्थी-शिक्षा समुदाय को सुसमाचार पर आधारित तीन शब्द. सामुदायिकता, महिमा और संसार पर अपना संदेश दिया।
सामुदायिकता के संदर्भ में उन्होंने कहा कि येसु पिता से एकता हेतु प्रार्थना करते हैं कि हम सभी एक सूत्र में पिरोये जाये जैसे वे और पिता एक हैं। अपने दुःखभोग के पहले यह उनकी अभिलाषा रही। सामुदायिकता कलीसिया हेतु अनिवार्य है। ईश्वर और मनुष्यों का शत्रु शैतान सुसमाचार के प्रचार में बाधा है। वह हमारे बीच विभाजन लाने की कोशिश करता है। वह एक विभाजक है जो हम में यह विचार लाने की कोशिश करता हैं कि हम दूसरों से अच्छे है और इस तरह अनिष्ट की शुरूआत होती है।
संत पापा ने कहा कि आप ने बपतिस्मा की में नये जीवन की कृपाएँ पाई हैं और प्रत्येक
कृपा ईश्वर की सामुदायिकता हेतु एक वरदान है। कृपा का विखण्डन तब होता है जब हम अपने
में शेखी बघारते या अपने को बन्द कर लेते हैं। हमें इन्हें नम्र और आज्ञाकारी बनकर बनाये
रखना है। यदि हम ऐसा करते हैं तो पवित्र आत्मा हम में क्रियाशील रहते हैं जैसे वह माता
मरियम के साथ थे और इस तरह हम कलीसिया को जीवित रखते हैं।
संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि कलीसिया हमारी माता है और हम उनके बच्चें
अपनी माता के प्रतिरूप दिखते हैं। बपतिस्मा के द्वारा हम अगल-अगल नहीं वरन् दुनिया में
एक समुदाय के रूप में रहने हेतु बुलाये गये हैं। येसु ने हमारे लिए कलीसिया की स्थापना
नहीं की वरन् हमें कलीसिया के रूप में स्थापित किया है। इस तरह कलीसिया के रूप में हम
जीवन वचन ग्रहण करते, हमें पापों से मुक्ति मिलती जिसे हम अपने घरों को ले जाते हैं।
हम पवित्र आत्मा से जुड़े हुए हैं जो संजीवन जल प्रदान करता है। आप इस श्रोत से अपनी
प्यास बुझायें और एक दूसरे की, विशेषकर, जो कमजोर हैं उनकी नम्रता और सम्मानपूर्वक देखरेख
करें।
महिमा के बारे में संत पापा ने कहा कि अपने दुःखभोग के पहले येसु ने इसकी चर्चा की और
कहा कि वे क्रूस पर महिमान्वित होंगे। यह दुनिया की महिमा से भिन्न हैं यह प्यार है जो
चमकता और प्रसारित होता है। यह विरोधाभासी महिमा है जो लाभ रहित है जहाँ शोरगुल, तालियाँ
नहीं है। यह वर्षा के जल के समान है, वायु के समान जिसे हम सांस के रूप में लेते हैं,
एक छोटे बीच के समान जो गुप्त रूप में बढ़ता और फल देता है।
दुनिया के बारे में संत पापा ने कहा कि ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उन्होंने
अपने बेटे येसु ख्रीस्त को हमारे लिए भेजा, यह यही दिखाता हैं कि वे संसार को और लोगों
को जिसे उन्होंने बनय़ा है प्यार करते हैं अतः आप बच्चों को जिनसे आप मिलते हैं अपना प्यार
दिखायें । भिन्न संस्कृति, भाषा और रीति रिवाजों का सम्मान करें और उन्हें पहचाने जिससे
पवित्र आत्म कृपाओं के बीज स्वरूप बढ़ाते हैं।
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