2016-03-07 16:22:00

विश्वास की आवाजें, बालिकाओं की शिक्षा न की वधू


वाटिकन सिटी, सोमवार 07 मार्च 2016 (सेदोक) रोम के वाटिकन में अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 08 मार्च को दो केनियाई छात्राएँ और एक भारतीय सलेसियन पुरोहित वर्ष 2016 “विश्वास की आवाजें” में अपना वक्तव्य पेश करेंगे।

हर साल पूरे विश्व के करीब 15 लाख लड़कियों का बाल्यावस्था में ही विवाह कर दिया जाता है लेकिन शिक्षा वह मूलभूत चीज हैं जिसके द्वारा लड़कियों और उनके परिवारों की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में सुधार लाया जा रहा है। एमबीए के विद्यर्थी, केनिया की कौरोलिन और जूड ने बलताया कि वे किस तरह बाल्यावस्था में विवाह किये जाने की परिस्थिति से बच निकले और अपने पढ़ाई और अरमानों को पंख दिये हैं।

केनिया के नुडुकू की 21 वर्षीय कौरोनिल के कहा कि 14 वर्ष की उम्र में उसे दो विकल्प दिये गये विवाह या बाल मजदूरी। लेकिन बाल्यवस्था में विवाहित अपनी बहनों की “दयनीय दशा” देख चुकी कैरोलिन ने यह दृढ़ निश्चय किया की वह उनके राह नहीं चलेगी। अतः उनसे नौरोबी जाना तय किया जिससे वह अपनी पढ़ाई जारी रख सकें।

उसी प्रकार एमबीए कर रही जूड ओयांगो ने भी बतलाया कि अपने पिता की मृत्यु के बाद उन्हें गरीबी के दौर से गुजरा पड़ा और उस पर शादी हेतु दबाव डाला गया। कलीसिया और मित्रों की ओर से सहायता मिलने के कारण वह अपनी पढ़ाई जारी रख पायी। वह दूसरी लड़कियों के लिए एक आदर्श बना चहती हैं जिसे वे उनका अनुसरण कर सकें।

जबकि सलेसियन धर्मसमाज के फादर मेनमपरमपल्ली ने बतलाया कि वे उत्तर पूर्वी भारत और भूटान के आदिवासी बलिकाओं की शिक्षा हेतु विगत 48 वर्षो से कार्यरत हैं। वे डॉन बोस्को द्वारा संचालित करीब 300 विद्यालयों और 25 महाविद्यालयों हेतु सहयोग राशि संग्रहित करते हैं। अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में लड़कियों को हेय की दृष्टि से देखा जाता और उन्हें शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता हैं। उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पाता बल्कि उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ता है जिसके कारण वे अपनी पूरी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाती हैं।








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