2016-02-26 15:21:00

संत पापा का परमधर्मापीठय “कोर ओनुम” अन्तराष्ट्रीय सम्मेलन के नाम संदेश


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 26 फरवरी 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने संत पापा बेनेदिक्त 16वें के प्रथम विश्व प्रत्र “देयुस कारितास एस्त” की दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर परमधर्मापीठय समिति “कोर ओनुम” के तत्वाधान में “ उदारता का कभी अंत न होगा” विषय पर एक अन्तराष्ट्रीय सम्मेलन के प्रतिभागियों को अपना संदेश दिया।

उन्होंने कहा कि संत पापा बेनेदिक्त का प्रथम विश्व प्रत्र कलीसिया का सम्पूर्ण इतिहास देखने के में हमारी मदद करता है जो प्रेम का इतिहास है। यह ईश्वर के प्रेम की कहनी है। यह कलीसिया और हम सभी की कहानी हैं जिसे हमने ईश्वर से पाया है और जिसे दुनिया में हमें ले जाने की जरुरत है। दया के काम जरूरतमंद लोगों को, हमारी अन्तरआत्मा की सांत्वना हेतु, केवल दान देना नहीं है। “यह दूसरों की ओर प्रेम भरी सतर्कता की नजरों से देखना है।(ए.ग. 199) “जो दूसरों को हमारे साथ एक करता है।” संत पापा ने कहा कि प्रेम कलीसिया के जीवन का केन्द्रविन्दु है और संत तेरेसा के शब्दों में यह सचमुच कलीसिया का हृदय है। प्रेम हमारे लिए पहली और सबसे बड़ी आज्ञा है। “अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करो। अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।” (मकु.12.30-31)

 

वर्तमान जयन्ती वर्ष हमें अपने इस विश्वास को घोषित करने का निमत्रंण देता है कि ईश्वर प्रेम  हैं। ईश्वर प्रेम में मनुष्यो के साथ जुड़ते हैं और यद्यपि वह ईश्वर से दूर चला जाता ईश्वर उससे दूर नहीं जाते लेकिन उसके पीछे जाते हैं। ईश्वर का यह प्रेम और दया हमारे लिए उनके शरीरधारण में प्रकट किया गया है। विश्व पत्र में हम पढ़ते हैं “येसु का हृदय हमें देखता है”। हृदय देखता हैं कि कहाँ प्यार की जरूरत है और वह उसी के अनुरूप काम करता है। (30) इस तरह प्रेम और करूणा आपस में एक दूसरे से संयुक्त हैं क्योंकि ये ईश्वर के काम करने के तरीके हैं उनकी पहचान और उनका नाम है।

विश्व पत्र का पहला भाग हमें ईश्वर के चेहरे की याद दिलाता है। ईश्वर कौन हैं जिसे हम येसु ख्रीस्त में पा सकते हैं? कितना निष्ठावान और असिमित है उनका प्यार? इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे। (यो. 15. 13) हमारा प्यार, एकता और चीजों को दूसरों के साथ बाँटना येसु के प्यार में प्रतिबिंबित होता हैं। उन्होंने बिना थके हमारे ऊपर अपने प्यार की वर्षा की है और दुनिया में उस प्यार का साक्ष्य देने हेतु हमें निमत्रंण दिया गया है अतः हमें अपने किसी कामों को शुरू करने से पहले ईश्वर के प्रेम पर दृष्टि डालना है क्योंकि वहाँ से अपने भाई-बहनों की सेवा करना हम सीखते हैं। मेदीयाभाल्स कहते हैं, “जहाँ प्रेम हैं वहाँ देखने की क्षमा व्याप्त है।” हम केवल ईश्वर के प्यार में बने रहकर हमारे निकट रहने वालों को समझ सकते और प्यार कर सकते हैं।

विश्व प्रत्र का दूसरा भाग जिस पर मैं जोर देना चहूँगा, हमें याद दिलाता है कि इस प्रेम को अधिकाधिक कलीसिया के जीवन से प्रतिबिंबित होना चाहिए। मेरी अभिलाषा यही है कि हम अपने कामों के द्वारा यह दिखलाये कि ईश्वर कैसे मनुष्यों को प्यार करते हैं। हमारे प्रेरितिक कार्य महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये गरीबों को सम्मानजनक जीवन जीने हेतु मदद करते हैं। हमारे काम वचनों से नहीं वरन ठोस रूप से प्रेमपूर्ण कामों के द्वारा व्यक्त किये जायें जिससे हर व्यक्ति ईश्वर के प्यार का अनुभव करे और अनन्त जीवन को प्राप्त कर सकें। मैं आप सब का धन्यवाद अदा करता हूँ जो कलीसिया के प्रेरितिक कार्य हेतु समर्पित हैं। मेरी यह हृर्दिक इच्छा है कि इस जयन्ती वर्ष में हम सब करूणा के कामों को सम्पादित करते हुए ईश्वर के प्रेम का अनुभव अपने जीवन में कर सकें। करुणा के जीवन को जीने का अर्थ येसु के प्यार को जीना है। इस तरह हम एक साथ मिलकर कलीसिया के कामों में हाथ बाँटते हैं और प्रेम का आदान-प्रदान करते हैं जिसे ईश्वर हमें दूसरों के साथ बाँटने हेतु कहते हैं।








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