2016-02-10 12:02:00

करुणा के मिशनरी ईश्वर की क्षमा के साक्षी बनें, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, बुधवार, 10 फरवरी 2016 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने करुणा के मिशनरी पुरोहितों से आग्रह किया है कि वे ईश्वरीय प्रेम एवं ईश्वर की क्षमा के जीवन्त साक्षी बनें।

रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में मंगलवार सन्ध्या सन्त पापा ने करुणा के मिशनरियों से मुलाकात कर उन्हें अपना सन्देश प्रदान किया। करुणा को समर्पित जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में विश्व के 1,142 काथलिक पुरोहितों को क्षमा दान की विशिष्ट प्रेरिताई सौंपी गई है जिनमें से 726 पुरोहित, मंगलवार को, उपस्थित थे। 

सन्त पापा ने पुरोहितों से कहा, "करुणा के मिशनरी होने का अर्थ है उस ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना जो आपको सौंपी गई है और वह है अपने जीवन द्वारा ईश्वर के प्रेम, उनकी दया एवं क्षमा के साक्षी बनना।"

उन्होंने कहा कि करुणा के मिशनरियों का आह्वान किया जाता है कि सबसे पहले वे कलीसिया के मातृत्व के बारे में चर्चा करें। उन्होंने कहा, "कलीसिया माता है क्योंकि वह अनवरत विश्वास में सन्तानों को जन्म देती रहती है। कलीसिया माता है क्योंकि वह विश्वास को पोषित करती है तथा कलीसिया माता है क्योंकि वह मनपरिवर्तन द्वारा नवजीवन का प्रजनन करती और ईश्वरीय क्षमा को अर्पित करती है।"

सन्त पापा ने पुरोहितों से कहा कि वे पश्चातापी मनुष्य के हृदय में झाँकें तथा क्षमा पाने की उसकी इच्छा को पहचानें जो ईश कृपा का फल है।

उन्होंने कहा, "पापक्षमा पाने की आशा के साथ व्यक्ति अपने बुरे कर्मों को स्वीकार करता तथा अपने हृदय को ईश्वर के प्रति अभिमुख करता है।" सन्त पापा ने कहा, "यह इच्छा उस क्षण तीव्र हो जाती है जब व्यक्ति मन से अपने जीवन में परिवर्तन की कामना करता तथा भविष्य में पाप न करने का प्रण करता है। यह वह क्षण है जब हम ईश्वर की दया में भरोसा करते और यह विश्वास करते हैं हमें समझा जायेगा, क्षमा कर दिया जायेगा तथा समर्थन दिया जायेगा।"

इस बात की ओर सन्त पापा ने ध्यान आकर्षित कराया कि अपने पाप स्वीकार करना सरल काम नहीं है, प्रायः यह लज्जा का विषय बन जाता इसलिये पापमोचकों का दायित्व है कि वे पापस्वीकार के इच्छुक व्यक्ति के प्रति सम्मान प्रदर्शित करें और यह न भूलें कि उनके समक्ष पाप नहीं बल्कि क्षमा की याचना करनेवाला पश्चातापी पापी प्रस्तुत है।" 








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