2016-02-05 08:40:00

प्रेरक मोतीः सन्त आगथा (निधन लगभग 251 ई.)


वाटिकन सिटी, 05 फरवरी सन् 2015

05 फरवरी को काथलिक कलीसिया सन्त आगथा का पर्व मनाती है। आगथा का जन्म इटली के सिसली द्वीप में हुआ था तथा इसी द्वीप में उन्होंने शहादत प्राप्त की थी। सन्त आगथा के कार्यों का ब्यौरा लैटिन एवं यूनानी दोनों भाषाओं में उपलब्ध हैं जिनके अनुसार सिसली द्वीप के एक कुलीन एवं सम्पन्न परिवार में आगथा का जन्म हुआ था। बाल्यकाल से ही उनकी रुचि प्रार्थना, मौन एवं आध्यात्मिक चिन्तन में थी जिसके चलते उन्होंने कौमार्य व्रत ले रखा था।

क्विन्तियन नामक राज्य की सभा का एक सदस्य उनसे विवाह करना चाहता था किन्तु आगथा के मना करने पर उसने ख्रीस्तीयों पर अत्याचार आरम्भ कर दिया था। उसने ईसाइयों के विरुद्ध राजाज्ञा का भय दिखाया तथा आगथा को राज़ी करने की चेष्टा की। आगथा गिरफ्तार कर ली गई किन्तु क्विन्तियन से विवाह करने पर राज़ी नहीं हुई। ख़ुद को आततायियों के चँगुल में फँसा देखकर वह प्रार्थना करने लगी। यह देखकर क्विन्तियन आग बबूला हो उठा तथा उसने आगथा को आफ्रोदोसिया नामक एक कुलटा के हवाले कर दिया जो अपनी छः बेटियों के साथ एक वेश्यालय चलाती थी। आगथा ने प्रार्थना में मन लगाकर इस नर्क को भी सहन किया किन्तु अपनी शुद्धता एवं पवित्रता पर आँच नहीं आने दी।

क्विन्तियन ने अब उत्पीड़न के अन्य तरीके खोजे तथा आगथा पर देशद्रोह का आरोप लगाकर अदालत के समक्ष पेश कर दिया। न्यायकर्त्ता के समक्ष भी आगथा ने येसु में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति की जिससे न्यायकर्त्ता भी क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने आगथा को पीटने तथा क़ैद में डालने का आदेश दे दिया। मुकद्दमा चलता रहा तथा कारावास में आगथा को कड़ी शारीरिक यन्त्रणाएँ मिलती रही। इन यातनाओं को वे धैर्यपूर्वक झेलती रही। दुष्ट क्विन्तियन ने उन्हें भोजन एवं किसी प्रकार की दवा देने से भी मना कर रखा था किन्तु आगथा का विश्वास टस से मस नहीं हुआ। उत्पीड़न के चरम पर आगथा ने सन्त पेत्रुस के दर्शन प्राप्त किये जिन्होंने उन्हें सान्तवना दी। आगथा का धैर्य एवं उनका अटूट विश्वास क्विन्तियन के लिये असह्य बन गया था इसलिये उस दुष्ट ने उनके वक्ष कटवा डाले। इस घोर यन्त्रणा को सहते हुए आगथा ने ईश्वर से इस तरह प्रार्थना करते हुए संसार से विदा लीः "मेरे सृष्टिकर्त्ता ईश्वर, आपने पालने से लेकर आज तक मेरी सदैव रक्षा की है। दुनियाबी प्रेम से मुझे अलग रखकर धैर्यपूर्वक सबकुछ सहने का सामर्थ्य दिया है। अब आप मेरी आत्मा को ग्रहण कर लें" और उन्होंने प्राण त्याग दिये।

आरम्भिक ख्रीस्तीय कलाकारों ने सन्त के कटे वक्ष को थाल में रखे चित्रित किया था। मध्ययुग में लोग इन वक्षों को भूल से रोटियाँ समझने लगे थे। इसी से सन्त आगथा के पर्व के दिन रोटियों को आशीष देने का रिवाज़ चल निकला था। इसके अतिरिक्त, सिसली के निवासी एतना ज्वालामुखी के प्रकोप से बचने के लिये सन्त आगथा से प्रार्थना करते थे इसलिये आगथा को आगजनी से बचानेवाली संरक्षिका घोषित किया गया है। फिर, चूँकि, आगजनी की सूचना घण्टा बजाकर दी जाती है इसलिये घंटे बजानेवालों ने भी सन्त आगथा को अपनी संरक्षिका चुना है। रोम में छठवीं शताब्दी के दो गिरजाघर हैं जो सन्त आगथा को समर्पित हैं। पवित्र कुँवारी मरियम को छोड़कर जिन सात धर्मी महिलाओं का नाम ख्रीस्तयाग के प्रतिष्ठाखण्ड में लिया जाता है उनमें सन्त आगथा भी शामिल हैं। सन्त आगथा ने लगभग सन् 251 ई. में शहादत प्राप्त की थी। शहीद सन्त आगथा का पर्व 05 फरवरी को मनाया जाता है।        

चिन्तनः "दुष्टों के मार्ग में प्रवेश मत करो; कुकर्मियों के पथ पर मत चलो। उस से दूर रहो, उस पर पैर मत रखो; उस से कतरा कर आगे बढ़ो। वे पाप किये बिना सोने नहीं जाते। यदि उन्होंने किसी को पथभ्रष्ट नहीं किया, तो उन्हे नींद नहीं आती। वे अधर्म की रोटी खाते और हिंसा की मदिरा पीते हैं। धर्मियों का मार्ग प्रभात के प्रकाश-जैसा है, जो दोपहर तक क्रमशः बढ़ता जाता है; किन्तु विधर्मियों का मार्ग अन्धकारमय है। उन्हें पता नहीं कि वे किस चीज से ठोकर खायेंगे" (सूक्ति ग्रन्थ 4:14-19)।








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