2016-02-02 14:57:00

मानवता के लिए बड़ा खतरा परिवार का विनाश


चेबू, मंगलवार, 2 फरवरी 2016 (एशियान्यूज़): फिलीपींस के चेबू शहर में चल रहे अंतरराष्ट्रीय यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस का समापन 31 जनवरी को हो गया। कॉन्ग्रेस का समापन समारोही ख्रीस्तयाग द्वारा हुआ जिसके मुख्य अनुष्ठाता थे यंगोन के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल चार्ल्स मौंग बो।

उन्होंने कहा कि एशिया तथा अफ्रीका के ऐसे परिवार संघर्ष से जूझ रहे हैं जो ग़रीब तथा शोषित हैं क्योंकि धनी देशों ने नये प्रकार के परिवारों एवं नये प्रकार के माता-पिता पर विचार-विमर्श के कारण गरीबों एवं उपेक्षितों पर से अपना ध्यान हटा लिया है। उन्होंने कहा कि किसी परमाणु बम, आतंकवादी अथवा घातक खतरे से बढ़कर मानवता में एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है क्योंकि कई देशों ने क़ानून द्वारा परिवारों को नष्ट करने का रास्ता अपनाया है।

कॉन्ग्रेस की विषयवस्तु ‘ख्रीस्त हम में महिमा की आशा’ को केंद्र मानते हुए सुसमाचार एवं प्रेरिताई पर विचार-विमर्श करने का अवसर दिया गया न केवल एशिया किन्तु पूरे विश्व को ध्यान में रखते हुए।

प्रवचन में कार्डिनल ने उन लोगों की निंदा की जो जीवन की मौलिकता एवं पारिवारिक एकता के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं जबकि उन्होंने फिलीपीन्स वासियों की भूमिका की प्रशंसा की जो तीसरी सहस्राब्दी में सुसमाचार प्रचार के किरण बन गये हैं।

उन्होंने कहा, ″यूखरिस्त परिवार में बोया जाता तथा परिवार में ही विकसित होता है। परिवार ही पहला समुदाय है कलीसिया की ईकाई है। परिवार में प्रत्येक दिन एक मेज पर जमा होकर रोटी तोड़ी जाती है। यही कारण है कि परिवारों को बचाया जाना, प्रोत्साहित किया जाना तथा पोषित किया जाना चाहिए।″

उन्होंने संत पापा ने शब्दों का हवाला देते हुए कहा कि विगत तीन सालों से उनकी चिंता तीन मुख्य बातों पर रही है पर्यावरण के प्रति अन्याय, आर्थिक अन्याय तथा परिवार का विनाश। आज मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है परिवार के विनाश का। दुखद बात ये है कि ख्रीस्तीय परिवारों की समझ भी विवादास्पद हो गयी है।

कार्डिनल ने कहा कि कॉन्ग्रेस कृपा का महान अवसर रहा, जब लोगों ने एक साथ मिलकर  पेन्तेकोस्त का अनुभव किया। उन्होंने कहा कि यूखरिस्त हमारे संबंधों पर आधारित है। 

वाटिकन रेडियो की रिपोर्ट अनुसार संत पापा ने अपने वीडियो संदेश में अगले कॉन्ग्रेस की घोषणा की जो 2020 में हंगरी के बुढ़ापेस्ट में आयोजित किया जाएगा।

24 से 31 जनवरी तक चले सप्ताह भर के कॉन्ग्रेस में 70 देशों के करीब 15000 लोगों ने भाग लिया तथा 5000 बच्चों ने पहला परमप्रसाद ग्रहण किया।








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