2016-01-21 15:48:00

तीर्थस्थल प्रभु से मुलाकात करने का महत्वपूर्ण स्थान


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 21 जनवरी 2016 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित पौल षष्ठम सभागार में बृहस्पतिवार 21 जनवरी को संत पापा फ्राँसिस ने तीर्थयात्रा के आयोजकों एवं तीर्थस्थलों में सेवारत 3,000 अधिकारियों से मुलाकात कर कहा कि तीर्थयात्रा ईश प्रजा के विश्वास की सुन्दर अभिव्यक्ति है तथा पीढ़ियों की भक्ति का उत्तम साक्ष्य है जिन्होंने धन्य कुँवारी मरियम  एवं संतों की मध्यस्थता द्वारा प्रार्थना करने पर विश्वास किया।

संत पापा ने कहा कि यह सुसमाचार प्रचार का एक अच्छा तरीका है जिसे निरंतर बढ़ाया जाना एवं महत्व दिया जाना चाहिए। वास्तव में, हमारे पूर्वजों ने इस गहरी आध्यात्मिकता को जीया।

संत पापा ने तीर्थयात्रा में व्यक्तिगत आध्यात्मिकता पर ध्यान देने का परामर्श देते हुए कहा कि जो लोग तीर्थयात्रा व्यक्तिगत नहीं किन्तु दल में जाते हैं उनमें एक गलती होती है क्योंकि तीर्थयात्री अपने साथ अपने जीवन की दास्ताँ, विश्वास, सुख और दुःख लेकर चलता है। प्रत्येक तीर्थयात्री के दिल में अपने लिए एक खास प्रार्थना होती है। बाईबिल में निहित अन्ना का हृदय संतान प्राप्ति की चाह के कारण शिलोह के मंदिर में उदासी से प्रार्थना में लीन था। अन्ना की तरह तीर्थ स्थलों पर कई लोग क्रूस अथवा माता मरियम की प्रतिमा पर नजर गड़ाये प्रार्थना में लीन रहते हैं।

संत पापा ने कहा कि तीर्थस्थल प्रभु से मुलाकात करने तथा उनकी करुणा को प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण स्थान हैं।

संत पापा ने हमारे जीवन में ‘स्वागत’ शब्द की महत्ता बतलाते हुए कहा कि प्रभु प्रतिदिन उन सभी का स्वागत करते हैं जो उनके पास आते हैं विशेषकर, बीमार, पापी तथा हाशिये पर जीवन यापन करने वाले लोग। प्रभु कहते हैं, जो तुम्हारा स्वागत करता है वह मेरा स्वागत करता और जो कोई मेरा स्वागत करता है वह पिता का स्वागत करता है जिसने मुझे भेजा है। (मती. 10: 40) जकेयुस ने जब अपने घर में येसु का स्वागत किया तब उसका जीवन बदल गया क्योंकि उसने येसु द्वारा स्वागत किये जाने का अनुभव किया।

संत पापा ने उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर कहा कि जब लोग तीर्थस्थल पर आते हैं तो वे थके-मांदे, भूखे-प्यासे और बीमार स्थिति में होते हैं अतः उन्हें आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों तरह से स्वागत की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि वहाँ आये हुए सभी लोग ईश्वर की खोज में आते हैं अतः किसी की अवहेलना किये बिना सभी का स्वागत किया जाना चाहिए। प्रत्येक तीर्थयात्री जब वहाँ से वापस लौटे तो वह आनन्द, समझदारी और प्रेम का अनुभव लेकर वापस जा सके तथा उसमें जीने की आशा जगह। संत पापा ने सभी सदस्यों को इस जयन्ती वर्ष को आनन्द एवं विश्वास से मनाने तथा उनके कार्यों को करुणा एवं आध्यात्मिकता की सेवा के रूप में पूरा करने की सलाह दी।








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