2016-01-15 10:32:00

प्रेरक मोतीः मठाधीश सन्त फरसी (निधन 650)


वाटिकन सिटी, 16 जनवरी सन् 2016

आयरी मठवासी जीवन की आधारशिला रखनेवाले, सन्त फौयलान एवं सन्त ऊलान के भाई, सन्त बीड की प्रशंसा के पात्र, फरसी का जन्म आयरलैण्ड के इनिसगुईया एन लो कार्री द्वीप पर एक कुलीन घराने में हुआ था। उच्च कुल के होने के साथ साथ सन्त फरसी सदगुणों के धनी भी थे।

प्रभु ईश्वर की पुकार सुन फरसी अपना घरबार छोड़कर धर्मग्रन्थ और ईशशास्त्र के अध्ययन के लिये निकल पड़े थे। आयरलैण्ड में मठवासी जीवन की आधारशिला रखते हुए उन्होंने राथमठ नामक जगह पर एक मठ की स्थापना की जिसमें समस्त आयरलैण्ड से मठवासी जीवन यापन के इच्छुक भर्ती हुए। आयरलैण्ड में लगभग 12 वर्षों तक मठ निर्माण एवं धर्मप्रचार कार्य के उपरान्त फरसी ने अपने भाइयों, सन्त फौयलान तथा सन्त ऊलान के संग, इंगलैण्ड का रुख किया। लगभग सन् 630 ई. में, उन्होंने इस्ट आंगलिया में, राजा सिगेबर्ट द्वारा दान में दी गई भूमि पर एक मठ की स्थापना की। बाद के वर्षों में फरसी अपनी प्रेरिताई आयरलैण्ड एवं इंगलैण्ड से आगे ले गये तथा फ्राँस में पेरिस के निकटवर्ती गौल, न्यूस्त्रिया तथा लान्यी में उन्होंने मठों की स्थापना की। इस कार्य में गौल के सम्राट क्लोविस द्वितीय ने फरसी की बहुत अधिक सहायता की। लान्यी में ही सन् 650 ई. में मठाधीश फरसी का निधन हो गया था।

सन्त फरसी को अपने जीवन काल में कई बार दिव्य दर्शन प्राप्त हुए। उनकी जीवनी लिखनेवाले सन्त बीड तथा एलफ्रिक जैसे लेखकों ने उनके आदर्श चरित्र की भूरि-भूरि प्रशंसा की है तथा बताया है कि कई बार सन्त फरसी भाव समाधि में चले जाते थे। इन्हीं भावसमाधियों के चलते सन्त फरसी काथलिक कलीसिया में विख्यात हो गये थे। बताया जाता है कि जब सन्त समाधि में लीन रहते थे तब उनका शरीर मृगी के रोगियों की तरह कड़ा हो जाता था। यहाँ तक कि उनके अनुयायी उन्हें मरा समझकर उनकी अन्तयेष्टि की तैयारी करने में लग जाते थे। इन भाव समाधियों के दौरान सन्त फरसी को मृत विश्वासियों की आत्माएँ नज़र आती थीं। उन खींचातानियों के दृश्य दिखते थे जो स्वर्ग की ओर अभिमुख आत्माओं और उन्हें रोकने की चेष्टा करनेवाले शैतानों की बीच होती थी। कभी कभी वे स्वर्गदूतों एवं नर्क की दुष्टात्माओं के बीच द्वन्द को देखते थे। आयरी मठवासी जीवन के संस्थापक मठाधीश सन्त फरसी का पर्व 16 जनवरी को मनाया जाता है।        

चिन्तनः "तुम सारे हृदय से प्रभु का भरोसा करो; अपनी बुद्धि पर निर्भर मत रहो। अपने सब कार्यों में उसका ध्यान रखो। वह तुम्हारा मार्ग प्रशस्त कर देगा।" (सूक्ति ग्रन्थ 3:5-6)। 








All the contents on this site are copyrighted ©.