2016-01-13 15:50:00

प्रभु “करुणामय” हैं।


वाटिकन सिटी, बुधवार 13 नवम्बर 2016, (सेदोक, वी. आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, पौल षष्टम् के सभागार में  जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को इतालवी भाषा में  संबोधित करते हुए कहा-

अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात,

आज हम अपनी धर्मशिक्षा ईश्वरीय करूणा पर शुरू करते हैं जो धर्मग्रंथ पर आधारित है। ईश्वर की करूणा को जानने हेतु आइये हम पुराने विधान से उनकी शिक्षा को सुने जो हमें येसु को पूर्णरूपेण समझने हेतु तैयार करता और मदद देता हैं जिनमें पिता की सम्पूर्ण करूणा व्यक्त होती हैं।

धर्मग्रंथ में प्रभु को “करूणामय ईश्वर” के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यही उनका नाम हैं जिसके द्वारा वे अपने को हमारे लिए प्रकट करते हैं, कहा जाये तो हम उन्हें सुनते और उनके हृदय को देखते हैं। वह स्वयं जैसे कि निर्गमन ग्रंथ कहता है, अपने को मूसा को प्रकट करते हुए कहते हैं, “प्रभु, प्रभु एक करूणामय तथा कृपालु ईश्वर है। वह देर से क्रोध करता और अनुकम्पा तथा सत्यप्रतिज्ञता का धनी है।” (नि.34.6) धर्मग्रंथ के दूसरे स्थान पर इन वचनों को हम दूसरे रूप में पाते हैं जहाँ ईश्वर की दया और प्यार पर बल दिया गया हैं जो क्षमा करते हुए नहीं थकते। (उत्प.4.2, जोएल.2.13 स्त्रो.86.15,103.8) आइये हम एक-एक कर इन शब्दों को देखें जो ईश्वर के बारे में कहते हैं।

प्रभु “करुणामय” हैं। यह शब्द एक कोमल मनोभाव को जाग्रित करता है जैसे माता अपने सुपुत्र के लिए करती हो। वास्तव में ईब्रानी शब्द जिसका प्रयोग धर्मग्रन्थ में किया गया है उसका संदर्भ कोख या गर्भ से है। अतः यह चित्रण ईश्वर के उस ममतामय रूप को दिखलाता है जहाँ एक माता अपने बच्चे को गोद में उठा लेती है जब बच्चा उसके प्यार, सुरक्षा, सहायता की कामना करता है। वह सारी चीजें, यहाँ तक की अपने आप को भी देने को तैयार हो जाती है। प्रेम इसलिए अच्छे अर्थ में “आन्तरांग” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

इसके बाद लिखा गया है कि प्रभु प्रेममय हैं, कहने का अर्थ है वे कृपा और प्रेम से भरपूर हैं जो कमजोरों और गरीबों की ओर झुकते हैं। वे हमेशा हमारा स्वागत करते, हमें समझते और हमें क्षमा करने को तैयार हैं। वे उस पिता के समान हैं जिसका जिक्र प्रेरित संत लूकस अपने अध्याय 15. पद संख्या 11 से 32 में करते हैं। एक पिता जो क्रोध में नबालिक बच्चे हेतु अपने को बन्द नहीं करते लेकिन उसकी राह देखते हैं और वे दौड़ कर उससे मिलने जाते और उसे गले लगा लेते हैं। वे उसे अपनी गलतियों को स्वीकरने तक नहीं छोड़ते इतना महान है उनका प्यार और खुशी जब वे उसे वापस पाते हैं, तब वह अपने बड़े बेटे को बुलाने जाते हैं जो क्रोध के कारण पारिवारिक खुशी में शामिल होना नहीं चाहता। वह पुत्र जो घर में रहा, पुत्र से अधिक नौकर की माफिज जीवन जीया, पिता उसकी ओर भी झुकते और हृदय खोलते हुए घर में प्रवेश करने का अग्रह करते हैं क्योंकि करूणा के जश्न में कोई भी न छूटे।

ईश्वर की इस करूणा को यह भी कहा गया है कि यह “देर से क्रोध” करता शाब्दिक रूप में “लम्बी सांस” अर्थात लम्बी धैर्य की सांस और सहनशीलता है। ईश्वर जानते हैं कि कैसी प्रतीक्षा करनी है, उनके राह देखने के क्षण अधीर व्यक्ति के समान नहीं है। वे उस ज्ञानी किसान के समान हैं जो जंगली बीज के पौधों के साथ अच्छे बीजों को बढ़ने देता है।(मती.13. 24-30)  

और अंत में प्रभु यह घोषित करते हैं, वे प्यार में महान और सत्यप्रतिज्ञा हैं। कितना मनोरम हैं ईश्वर की यह परिभाषा। ये सारी चीजें यही घोषित करती हैं कि ईश्वर बड़े और शक्तिशाली हैं लेकिन उनका यह आकार और शक्ति प्यार में व्यक्त होता है जहाँ हम कितने छोटे और अयोग्य है। इस “प्रेम” शब्द का अर्थ स्नेह, कृपा और अच्छाई है। यह प्रेम है जो पहले स्थान पर आता है जो मनुष्य के गुणों पर निर्भर नहीं करता लेकिन यह ईश्वर की बड़ी उदारता है। यह ईश्वरीय चिंता है जिसे कोई भी चीज नहीं रोक सकती, यहाँ तक की पाप भी नहीं क्योंकि वे पाप के पार जाना, बुराई पर विजय पाना और उसे क्षमा देना जानते हैं।

“निष्ठा” जिसकी कोई सीमा नहीं है अन्तिम शब्द है जिससे प्रभु मूसा को प्रकट करते हैं। ईश्वर की सत्यप्रतिज्ञता हमेशा बनी रहती है क्योंकि प्रभु रखवाले हैं जो नहीं सोते वरन जीवन देने हेतु  हमेशा हमारी देख रेख करते हैं, जैसा की स्त्रोत कहता है,

“वह तुम्हारे पैर फिसलने न दे, तुम्हारा रक्षक न सोये। इस्राएल का रक्षक न तो सोता और न ही झपकी लेता है। प्रभु तुम्हें हर बुराई से बचायेगा। वह तुम्हारी आत्मा की रक्षा करेगा। जहाँ कहीं भी तुम जाओगे, प्रभु तुम्हारी रक्षा करेगा, अभी और अनन्त काल तक।” (स्त्रो.121,3-4.7-8).
 

ईश्वर हमेशा सम्पूर्ण विश्वास के पात्र हैं। उनकी मजबूत और सुदृढ़ उपस्थिति हमारे जीवन में बनी रहती है। यह हमारे विश्वास की निश्चितता है। अतः करूणा के जयन्ती वर्ष में आइये हम अपना सर्वस्व उन्हें अर्पित करें और उनके प्रेम में इस खुशी का अनुभव करें कि “प्रभु एक करूणामय तथा कृपालु ईश्वर हैं। वह देर से क्रोध करता और अनुकम्पा तथा सत्यप्रतिज्ञता का धनी है।”

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सब विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा,
मैं अंग्रेजी बोलने वाले तीर्थयात्रियों और आगंतुकों आयरलैंड, फिनलैंड और संयुक्त राज्य आमरीका के तीर्थयात्रा मंडली सहित, आज के आमदर्शन समारोह में भाग लेने आये आप सब का स्वागत करता हूँ। कलीसिया में करूणा की जयंती आप सब के लिए उत्सव, दया और आध्यात्मिक नवीकरण का क्षण हो। ईश्वर आपको और आप के परिवार को अपनी आशीष, खुशी और शांति से भर दे।

इस सभा को अन्त करने के पहले जहाँ हमने ईश्वर की करूणा पर चिंतन किया, मैं आप सबको कल ईस्तामबुल में हुए आक्रमण से पीड़ित जनों के लिए प्रार्थना करने का निमंत्रण देता हूँ। करूणामय ईश्वर मृतकों को अनन्त शांति, घालयों के परिवारों को सामाजिक एकता में बनें रहने और आक्रमणकारियों को मन परिवर्तन की कृपा प्रदान करें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सब को अपना प्रेरितिक आर्शीवाद दिया।








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