2016-01-06 11:09:00

प्रभु प्रकाश महापर्व पर सन्त पापा फ्रांसिस ने कहा


वाटिकन सिटीः बुधवार, 6 जनवरी 2015 (सेदोक): 25 दिसम्बर को प्रभु ख्रीस्त की जयन्ती मना लेने के 12 दिन बाद ख्रीस्तीय धर्मानुयायी छः जनवरी को ऐपिफनी, प्रभु प्रकाश का महापर्व अथवा तीन राजाओं का महापर्व मनाते हैं। ऐपिफनी का अर्थ है किसी चीज़ को दर्शनीय बनाना, किसी को प्रकाशित करना या किसी के विषय में लोगों को ज्ञान कराना। यह महापर्व सुदूर पूर्व से, तारे के इशारे पर बेथलेहेम पहुँचे तीन विद्धानों द्वारा शिशु येसु के दर्शन के स्मरणार्थ मनाया जाता है।

प्रभु प्रकाश महापर्व के उपलक्ष्य में सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महामन्दिर में महायाग अर्पित किया। ख्रीस्तयाग प्रवचन में उन्होंने प्रभु प्रकाश यानि विश्व के समक्ष प्रभु के प्रकटीकरण के रहस्य पर प्रकाश डाला, उन्होंने कहाः

"पवित्र नगर जैरूसालेम को सम्बोधित नबी इसायाह के शब्द हमारा आह्वान करते हैं कि हम अपनी संकीर्णताओं से बाहर निकले, अपने आप से बाहर आयें तथा उस प्रकाश के वैभव को पहचानें जो हमारे अस्तित्व को आलोकित करता है, जैसा कि इसायाह के ग्रन्थ के 60 वें अध्याय के पहले पद में लिखा हैः "उठकर प्रकाशमान हो जा!  क्योंकि तेरी ज्योति आ रही है, और प्रभु ईश्वर की महिमा तुझपर उदित हो रही है।" सन्त पापा ने कहा, "तेरी ज्योति" प्रभु ईश्वर की महिमा है। कलीसिया इस भ्रम में नहीं रह सकती कि वह अपने ही प्रकाश से चमक रही है। एक बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति द्वारा सन्त एम्ब्रोस इसका स्मरण दिलाते हैं, कलीसिया को चन्द्रमा का रूपक बताकर कहते हैं: वास्तव में कलीसिया चन्द्रमा के ही सदृश है (...) (वह) अपने ख़ुद के प्रकाश से नहीं चमकती अपितु ख्रीस्त के प्रकाश से चमकती है। न्याय के सूर्य से वह अपनी चमक अर्जित करती है और इसीलिये वह कह सकती हैः "वह मैं नहीं हूँ जो जीवित है बल्कि ख्रीस्त मुझमें जीवित हैं" (Exameron, चतुर्थ 8, 32)।  ख्रीस्त ही अन्धकार में चमकनेवाली ज्योति हैं। उस हद तक कि कलीसिया उनमें आश्रय पाती, उस अनुपात में जिसमें वह ख़ुद को उनसे आलोकित होने देती है और व्यक्तियों एवं लोगों के जीवन को आलोकित करने में सक्षम बनती है। यही कारण है कि कलीसिया के आचार्यों ने कलीसिया में "मिसतेरियुम लूने" अर्थात् चन्द्रमा के रहस्य को पहचाना।"  

सन्त पापा ने आगे कहाः "हमें जो बुलाहट मिली है उसका योग्य रीति से प्रत्युत्तर प्रदान करने के लिये हमें इस ज्योति की नितान्त आवश्यकता है। सुसमाचार की उदघोषणा करना बहुत से विकल्पों का कोई एक विकल्प नहीं है जिसे हम चुन सकें और न ही यह कोई पेशा है। कलीसिया के लिये मिशनरी होने का अर्थ धर्मप्राचर नहीं है; कलीसिया के लिये मिशनरी होने का अर्थ है अपने यथार्थ स्वभाव को अभिव्यक्त करना और वह है ईश्वर की ज्योति को ग्रहण कर उसे प्रतिबिम्बित करना।  इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है। मिशन उसकी बुलाहट है। कितने अधिक लोग इस मिशनरी समर्पण के लिये हमारी ओर देखते हैं क्योंकि उन्हें ख्रीस्त की ज़रूरत है। ईश्वर के मुखमण्डल के दर्शन करने की ज़रूरत है।" 

उन्होंने कहा, "सन्त मत्ती रचित सुसमाचार में उल्लिखित ज्ञानी पुरुष इस तथ्य के जीवन्त प्रमाण हैं कि सत्य के बीज सर्वत्र उपस्थित हैं, क्योंकि वे सृष्टिकर्त्ता का वरदान हैं जो सभी को उन्हें भले और विश्वसनीय पिता रूप में स्वीकार करने के लिये आमंत्रित करते हैं। ज्ञानी पुरुष, ईश्वर के घर में स्वागत-सत्कार पाने वाले सम्पूर्ण विश्व के स्त्री पुरुषों का प्रतिनिधित्व करते हैं। येसु के समक्ष, नस्ल, भाषा और संस्कृति के सभी भेदभाव विलुप्त हो जाते हैं: उस शिशु में सम्पूर्ण मानवजाति अपनी एकता की पुनर्खोज करती है। कलीसिया का दायित्व है कि वह प्रत्येक स्त्री और प्रत्येक पुरुष में विद्यमान ईश्वर की चाह को देखे और उसे स्पष्ट रूप से प्रकट करे। तीन ज्ञानी पुरुषों के समान ही हमारे युग में भी असंख्य लोग "बेचैन मन" को लिये जी रहे हैं, जो कोई निश्चित्त जवाब पाये बिना अनवरत सवाल किये जा रहा है।  वे भी उस तारे की बाट जोह रहे हैं जो उन्हें बेथलेहेम का रास्ता दिखा सके।"    

सन्त पापा ने कहा, "आकाश में कितने तारे हैं! और फिर भी ज्ञानी पुरुषों ने एक नये और अलग तारे का अनुसरण किया, जो उनके लिये अन्य तारों से अधिक चमक रहा था। दीर्घकाल से उन्होंने अपने सवालों का जवाब पाने के लिये आकाशमण्डल के महाग्रन्थ को टटोला था और अब अन्ततः, प्रकाश उनके समक्ष प्रकट हुआ था। तारे ने उन्हें रूपान्तरित कर दिया। उसने उन्हें उनकी दैनिक चिन्ताओं को भूलने और तुरन्त यात्रा पर निकल पड़ने के लिये बाध्य कर दिया। अपने अन्तरमन की गहराई में उन्होंने एक आवाज़ सुनी जिसने उन्हें प्रकाश के अनुसरण हेतु अग्रसर किया। तारे ने उनका मार्गदर्शन तब तक किया जब तक उन्होंने यहूदियों के राजा को बेथलेहेम के एक विनीत घर में नहीं पा लिया।" 

सन्त पापा ने कहा, "यह सबकुछ हमारे लिये एक शिक्षा है। आज हमारे लिये ज्ञानी पुरुषों द्वारा पूछे गये प्रश्न को दुहराना उचित होगा, "यहूदियों के नवजात राजा कहाँ हैं? हमने उनका तारा उदित होते देखा है। हम उन्हें दण्डवत करने आये हैं।" विशेष रूप से, हमारे अपने जैसे एक युग में, हम ईश्वर के संकेतों की खोज करने के लिये प्रेरित होते हैं ताकि हम यह एहसास पा सकें कि इन चिन्हों की व्याख्या करने तथा उसके अनुसार ईश इच्छा को समझने के लिये महान प्रयास की आवश्यकता है। हमारे समक्ष चुनौती है कि हम शिशु एवं उनकी माता को पाने के लिये बेथलेहेम जायें। उस प्रकाश का हम अनुसरण करें जो ईश्वर हमें प्रदान करते हैं। वह प्रकाश जो, करुणा एवं विश्वास से परिपूर्ण, ख्रीस्त के मुखमण्डल से प्रज्वलित होता है। उन्हें पाने पर हम अपने सारे हृदय से उनकी आराधना करें तथा भेंट स्वरूप उन्हें अपने उपहार अर्पित करें जो हैं हमारी स्वतंत्रता, हमारी समझदारी और हमारा प्रेम। हम यह स्वीकार करें कि सच्ची प्रज्ञा इसी बालक के मुखमण्डल में छिपी है। यहीं पर, बेथलेहेम की सरलता में कलीसिया के जीवन का सार है क्योंकि यहीं प्रकाश का वह स्रोत है जो प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता तथा शांति के मार्ग पर लोगों की तीर्थयात्रा को मार्गदर्शन देता है।"








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