2016-01-04 15:44:00

“शब्द” हमारे बीच शरीरधारण कर निवास किया


वाटिकन सिटी, सोमवार, 04 जनवरी 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में 03 जनवरी, रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए इतालवी भाषा में कहा,

प्रिय भाइयो एव बहनो, शुभ रविवार।

ख्रीस्त जयन्ती के बाद का दूसरा रविवार, आज की धर्मविधि में हम संत योहन के सुसमाचार की प्रास्तावना सुनते हैं जो “शब्द”, ईश्वर के सृजनात्मक शब्द की घोषणा करता है, जो शरीरधारण कर हमारे बीच में निवास किया। वह शब्द जो ईश्वर के रूप में स्वर्ग में निवास करता है धरती में आया जिससे हम उन्हें जाने, सुनें और पिता के प्यार को स्पर्श कर सकें। ईश्वर का शब्द वही ईश्वर के भेजे गये पुत्र के समान हैं जो पूर्ण प्रेम और आज्ञाकारिता में मनुष्य बने। (यो.1.14) यह वही येसु हैं।

सुसमाचार लेखक शरीरधारण के स्वरूप को नहीं छुपाते लेकिन जोर देते हुए कहते हैं कि ईश्वर के प्रेम उपहार को मानव ने स्वीकार नहीं किया। यह “शब्द” ज्योति है लेकिन मनुष्य ने अंधकार को पंसद किया, शब्द अपनों के बीच आया लेकिन उन्होंने उसे नहीं स्वीकारा। उन्होंने ईश्वर के पुत्र हेतु अपने दरवाजों को बंद कर दिया। यह बुराई का रहस्य है जो हमारे जीवन को खतरे में डाल देता है जो हमें सजग और सतर्क रहने की माँग करता है क्योंकि यह सदैव बना नहीं रहता। उत्पति ग्रंथ का एक पद हमें इसे समझने में मदद करता है, “बुराई हमारे द्वार पर घात लगाये बैठा है” धिक्कार हमें यदि हम उसे प्रवेश करने देते हैं तो वह दूसरों के लिए हमारे हृदयों को बंद कर देगा। हम अपना हृदय द्वार ईश्वर के वचनों हेतु खोलने के लिए बुलाये गये हैं जिससे हम उनकी संतान बन सकें। 

ख्रीस्त जयन्ती के दिन ही संत योहन रचित सुसमाचार के इन प्रारंभिक पदों की घोषणा समारोहिक रुप में की गई। इसे आज पुनः प्रस्तावित किया गया है। यह पवित्र माता कलीसिया का निमंत्रण है जिसे हम मुक्तिदायी वचनों को, ज्योति के इस रहस्य को स्वीकार कर सकें। यदि हम इसका स्वागत करते हैं यदि हम येसु को स्वीकार करते हैं तो हम ईश्वर के ज्ञान और प्रेम में विकास करते और उनकी तरह करुणामय बनते हैं। इस करुणा के जयन्ती वर्ष में विशेष रुप से हम यह निश्चित करें कि सुसमाचार अधिक से अधिक हमारे जीवन का अंग बने। सुसमाचार का पाठन, उन पर मनन और इसे अपने जीवन में आत्मसात करना येसु को जानने का सर्वोतम तरीका है जिसे हम उन्हें दूसरों तक ले सकें। येसु की खुशी को दूसरों तक बाँटना प्रत्येक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति की बुलाहट है लेकिन ऐसा करने के पहले हमें उन्हें जानना और अपने बीच में उन्हें हमारे जीवन के मसीह की तरह रखना है। वे हमें बुराई और शैतान से बचाते हैं जो सदा हमारे द्वार पर और हृदय के समाने घात लगाये है और उसमें प्रवेश करना चाहता है।

 

एक सुयोग्य पुत्र की भांति आइए हम अपने को पुनः माता मरियम के हाथों में समर्पित कर दें, जो येसु की प्यारी माता और हमारी माता के प्रतिरूप हैं जिन्हें हम इन दिनों चरनी में मनन करते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने एकात्रित विश्वासी समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और उन्हें अपना प्रेरितिक आर्शीवाद दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा ने सब तीर्थ यात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा प्रिय भाइयो एवं बहनो,

रोम के विश्वासियों, इटली और अन्य देशों से आये आप सब को मेरा स्नेह भरा अभिवादन। मैं परिवारों, समुदायों और विभिन्न पल्लियों के समुहों को और विशेषकर मोंजाम्बनो के, बोनेट सोतो और युवा मलेयो के उम्मीद्वारों का अभिवादन करता हूँ।

वर्ष के प्रथम रविवार में आप सब को शुभकामनाएँ, ईश्वर की शांति और खुशी मिलें। अच्छे समय और कठिन समय में हम ईश्वर पर विश्वास करें जो हमारे लिए प्रेम और आशा हैं। विश्व शांति दिवस, नये साल के अवसर पर किये गये हमारे समर्पण को मैं याद करता हूँ “उदासीनता को जीते और शांति को जीते”, हम ईश्वर की कृपा से इसे अपने जीवन में कार्यान्वित कर सकें।

संत पापा ने कहा कि मैं उस सलाह की भी याद करता हूँ जिसे मैंने बारम्बार आप को दिया है, आप रोज दिन सुसमाचार का पाठ करें, सुसमाचार के एक अनुच्छेद का पाठ, जिससे आप येसु को और करीब से जान सकें जिससे हम अपना हृदय उनके लिए खोल सकें और उनके बारे में दूसरों को बतला सकें। बाईबल की एक छोटी प्रति अपनी थैली में रखें और हर रोज इसे पढ़ना न भूलें। और इतना कहने के बाद संत पापा ने रविवारीय शुभकामनाएँ अर्पित की और शीघ्र मिलने का आश्वासन देते हुए भक्त जनों से विदा लिया। 








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