2016-01-01 16:22:00

उदासीनता से ऊपर आयें और शांति को जीतें


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 1 जनवरी 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने 1 जनवरी को 49 वें विश्व शांति दिवस पर अपने संदेश में कहा कि हमें उदासीनता से ऊपर आना तथा शांति को जीतना है।

उन्होंने अपने संदेश में कहा, ″ईश्वर उदासीन नहीं हैं वे मानव जाति की देखभाल करते हैं। नूतन वर्ष के आरम्भ में मैं न केवल अपनी दृढ़ आस्था को बांटना चाहता हूँ किन्तु प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, देश तथा समस्त विश्व और साथ ही सभी राजनीतिक एवं धार्मिक नेताओं के प्रति समृद्धि, शांति तथा आशा की हार्दिक कामना करता हूँ।″

विश्व शांति दिवस हेतु संत पापा के संदेश की विषयवस्तु है, ″उदासीनता से ऊपर आयें और शांति को जीतें।″

उन्होंने कहा कि शांति ईश्वर का वरदान तथा मानव की उपलब्धि दोनों है। ईश्वर के वरदान के रूप में यह मानव को सौंपा गया है जो इसकी देखभाल हेतु बुलाये जाते हैं। संत पापा ने पूरे वर्ष का अवलोकन करते हुए कहा कि साल के शुरू से अंत तक विश्व में युद्ध, तनाव, अपहरण, धर्म के नाम पर अत्याचार तथा सत्ता के दुष्प्रयोग की स्थिति देखने को मिला किन्तु इन सब के बीच भी कुछ घटनाएं हमें प्रेरित करती हैं कि हम नये वर्ष को आशा के साथ देखें तथा बुराई एवं उदासीनता पर जीत पाने की मानवीय क्षमता को नहीं खोयें। इस पृष्ठभूमि पर सी. ओ. पी. 21 विश्व के नेताओं द्वारा उदासीनता पर जीत पाने हेतु एक महत्वपूर्ण प्रयास रहा जिसमें जलवायु परिवर्तन रोकने तथा पृथ्वी की रक्षा हेतु विचार-विमर्श किया गया। कलीसिया के लिए भी वर्ष 2015 एक विशेष वर्ष रहा जब यह विश्व के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध की अभिव्यक्ति करने वाले वाटिकन द्वितीय महासभा के दो महत्वपूर्ण दस्तावेजों नास्त्रा आएताते एवं गौदियुम एत स्पेस की स्वर्ण जयन्ती मनायी। इसके द्वारा कलीसिया ने मानव के बीच वार्ता, एकजुटता एवं सहचर्या द्वारा आपसी संबंधों को पुनः जागृत करने का आह्वान किया। नोस्त्रा आएताते गैरख्रीस्तीयों के साथ वार्ता हेतु खुला होने के लिए प्रेरित करता है जबकि गौदियुम एत स्पेस हमें समकालीन लोगों के सुख और दुःख पर ध्यान देते हुए एकजुटता, सम्मान और स्नेह के चिन्ह स्वरूप समस्त मानव परिवार के साथ समस्या पर विचार करने की मांग करता है। संत पापा ने करुणा के जयन्ती वर्ष पर कलीसिया से अपील की कि वह प्रार्थना तथा उदार कार्य करे ताकि सभी ख्रीस्तीय विनम्र एवं दयालु बनकर करुणा का साक्ष्य दे सकें।

संत पापा ने आशा व्यक्त की कि कई ऐसे कारण हैं जिन से मानव जाति एकजुटता तथा आपसी सहयोग द्वारा सार्वजनिक सम्पति की रक्षा कर सकती है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत सम्मान और पारस्परिक संबंध ही व्यक्ति को इंसान बनाता है जिसे ईश्वर ने अपने स्वरूप गढ़ा है। अविच्छेद्य गरिमा के साथ संपन्न प्राणी होने के कारण हम सभी भाई-बहन हैं जिनके साथ एकात्मता बनाये रखने की आवश्यकता है। इस संबंध के अभाव में हम पूर्ण मानव नहीं हो सकते, यही है उदासीनता।

संत पापा ने विभिन्न प्रकार की उदासीनता की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि उदासीनता कोई नयी बात नहीं है इतिहास के सभी युगों में ऐसे लोगों के उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने दूसरों की आवश्यकता के प्रति अपना हृदय द्वार बंद रखा, जिन्होंने अपने आस-पास की घटनाओं के प्रति अपनी आँखें मूँद ली तथा समस्या में पड़े लोगों से अपने को दूर रखा।

मानव समाज में पहले प्रकार की उदासीनता है ईश्वर के प्रति उदासीनता, जो व्यक्ति को अपने पड़ोसियों एवं पर्यावरण के प्रति उदासीन बना देता है। इस प्रकार वह खुद का तथा समाज का स्वामी बन जाता है और अपने आप में पूर्ण महसूस करता है। उसे लगता है कि किसी दूसरे व्यक्ति की उसे कोई आवश्यकता नहीं।

उदासीनता कई तरह से प्रकट होता है। संत पापा ने कहा कि हम कई समाचार माध्यमों द्वारा जानकारी तो हासिल कर लेते किन्तु लोगों के दुखों का हम पर कोई असर नहीं पड़ता। कई ऐसे लोग हैं जो ग़रीबों को कोसते हैं तथा गरीब देश अपनी समस्याओं के कारण परेशान रहते हैं जिसका समाधान शिक्षा को माना जाता है जो गरीबों को अधिक परेशानी में डाल देता है जबकि कई देश भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। चूंकि सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं पर्यावरण भी प्रभावित उसे होता है। इस प्रकार ईश्वर, पड़ोसी तथा पर्यावरण के बीच सामंजस्य का अभाव अशांति उत्पन्न करता है। 

संत पापा ने वैश्विक उदासीनता को शांति के लिए खतरा बताते हुए कहा कि ईश्वर के प्रति उदासीनता व्यक्ति के निजी जीवन से बाहर समाज को भी प्रभावित करता है। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें कहते हैं, ″ईश्वर की महिमा एवं मानव की शांति के बीच घनिष्ठ संबंध है। ईश्वर के प्रति उदारता की कमी से व्यक्ति न्याय एवं शांति के लिए कार्य करने में कठिनाई महसूस करता है। क्योंकि ईश्वर के प्रति उपेक्षा उसे स्वार्थ में अंधा बना देता है जिसके कारण वह क्रूर एवं हिंसक हो जाता है। 

व्यक्तिगत एवं सामुदायिक दोनों ही प्रकार की उदासीनता ईश्वर के प्रति उदासीनता से उत्पन्न होती है जो परिस्थिति को अधिक अन्यायपूर्ण एवं असंतुलित बनने में मदद करती है। इस प्रकार, संघर्ष को बढ़ावा मिलता है जिसकी चरम सीमा है हिंसा एवं असुरक्षा। उदासीनता एवं समर्पण की कमी के कारण गंभीर लापरवाही देखने को मिलती है जबकि हम सभी को हमारी योग्यता एवं समाज में भूमिका के आधार पर सार्वजनिक हित को प्रोत्साहन देने हेतु कार्य करना चाहिए, विशेषकर, शांति के लिए जो मानवजाति का सबसे बहुमूल्य साधन है। व्यक्ति, उसकी प्रतिष्ठा, मौलिक अधिकार तथा उनकी स्वतंत्रता के प्रति उदासीनता शांति को जोखिम में डालने वाली बातों को प्रोत्साहन देती तथा उन्हें न्यायसंगत ठहराती है। उदासीनता निजी लाभ अथवा किसी देश के लाभ के लिए अन्याय, विभाजन एवं हिंसा को भी उचित ठहरा सकती है। पर्यावरण के प्रति उदासीनता के कारण जंगल उजाड़ दिया जाता है तथा प्रदूषण फैलायी जाती है फलतः प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है जो पूरे समुदाय को तहस-नहस कर देता है और गहन असुरक्षा पैदा करता है। अंततः नये प्रकार की गरीबी तथा अन्यायपूर्ण परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। संत पापा ने खेद व्यक्ति की कि अब तक कितने युद्ध हो चुके हैं और कितने युद्ध जारी हैं।

संत पापा ने उदासीनता को करुणा में बदलने के लिए हृदय परिवर्तन की आवश्यकता बतलायी। उन्होंने कहा कि काईन और हाबिल की कहानी द्वारा हमें मालूम होता है कि आरम्भ से ही भाईचारा पर विश्वासघात हुआ है। काईन और हाबिल भाई थे, एक माँ के कोख से जन्मे थे, दोनों ही ईश्वर के प्रतिरूप थे किन्तु काईन ने ईर्ष्या के कारण हाबिल को मार डाला। यह काईन का अपने भाई हाबिल को भाई के रूप में अस्वीकृति की भावना को दर्शाता है। काईन अपने भाई के प्रति उदासीन था। मानव जाति की उत्पति में ईश्वर मानव के साथ संयुक्ति प्रदर्शित करता है। वह मूसा से कहता है कि मैंने अपने लोगों की दुर्दशा देखी है। ईश्वर उदासीन नहीं हो सकते वे हमारे साथ सक्रिय हैं। यही कारण है कि ईश्वर के पुत्र येसु इस दुनिया में हमारे बीच में आये। उन्होंने शरीर धारण किया तथा पाप को छोड़ सभी बातों में हमारी तरह बन गये। वे भीड़ को शिक्षा देने मात्र से संतुष्ट नहीं थे उन्होंने उनके सुख दुःख का ख्याल रखा तथा भूखों को रोटी खिलायी। उन्होंने न केवल मानव जाति के प्रति सहानुभूति रखा किन्तु जीव-जन्तुओं का भी ख्याल रखा। सब कुछ से बढ़कर उन्होंने मानव जीवन को स्पर्श किया। उन्होंने लोगों से बातें की, उनकी सहायता की तथा उनके दुःख में आँसू बहाया। उनकी पीड़ा, दुःख और मृत्यु का अंत करने के लिए कार्य किया। उन्होंने हमें भी पिता के समान दयालु बनने की शिक्षा दी है।

ईश्वर का हृदय करुणामय है। बृहद परिवार में उनके सभी पुत्र-पुत्रियों का हृदय भी पिता के समान होना चाहिए। येसु हमें दूसरों से प्रेम करने की शिक्षा देते हैं परदेशी, बीमार, कैदी, बेघर यहाँ तक कि अपने शत्रुओं से भी प्रेम करने को कहते हैं। इन्हीं कार्यों द्वारा हम अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुँच पायेंगे। अतः कलीसिया के लिए यह अति आवश्यक हो गया है कि वह करुणा का साक्ष्य प्रस्तुत करे। अपनी भाषा तथा व्यवहारों द्वारा दया प्रदर्शित करे।

उदासीनता से ऊपर उठ पाने के लिए संत पापा ने एकात्मता एवं करुणा की संस्कृति के निर्माण की सलाह दी। उन्होंने कहा एकात्मता वह नैतिक मूल्य एवं सामाजिक भावना है जो व्यक्तिगत मन परिवर्तन से उत्पन्न होता है तथा शिक्षा हेतु समर्पण की मांग करता है। परिवार शिक्षा का पहला स्थान है। यह वह स्थान है जहाँ एक-दूसरे के प्रति प्रेम एवं भाईचारा, एकजुटता और बांटने, चिंता और देखभाल की शिक्षा मिलती है।

संत पापा ने शिक्षकों को स्मरण दिलाया कि वे बच्चों को प्रशिक्षण देने में न केवल उनके बौद्धिक विकास का ध्यान रखें किन्तु नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन की भी शिक्षा प्रदान करें। उन्हें स्वतंत्रता का मूल्य, आपसी सम्मान, एकात्मता आदि की शिक्षा भी बचपन में ही प्रदान क जानी चाहिए। युवा दैनिक जीवन में उदारता एवं दयालुता के कार्यों से प्राप्त आनन्द का रसास्वादन करना सीखें तथा मानवीय एवं भाईचारा पूर्ण समाज के निर्माण में सक्रिय भाग ले सकें। 

संत पापा ने संप्रेषण विभाग को भी शिक्षा की जिम्मेदारी का स्मरण दिलाया। उन्होंने कहा कि उनका पहला कर्तव्य है सच्चाई की सेवा। शिक्षा एवं संचार के बीच गहरा संबंध है क्योंकि संचार शिक्षा को प्रभावित करता जिसके द्वारा व्यक्ति का निर्माण अच्छा अथवा बुरा के रूप में होता है। अतः संप्रेषण तंत्र को यह याद रखना चाहिए कि वह जो जानकारी उपलब्ध कराता है वह कानूनी और नैतिक रूप से स्वीकार्य हो।

एकात्मता, दया तथा सहानुभूति का परिणाम है शांति। संत पापा ने उदासीनता के बीच शांति की ज्योति जलाने का निमंत्रण देते हुए कहा कि वैश्विक उदासीनता के बीच भी कई सकारात्मक पहल हैं जिनके द्वारा दया, सहानुभूति एवं एकात्मता की भावना को बढ़ाया जा सकता है। कई ग़ैरसरकारी तथा उदार संगठनों द्वारा बीमारों एवं घायलों की सेवा तथा विस्थापितों की मदद द्वारा हम शांति को प्रोत्साहन दे सकते हैं। पत्रकार जो कठिन परिस्थितियों में आम धारण तय करने में जनता को मदद करते हैं वे मानव अधिकार पर विशेष ध्यान दें।

संत पापा ने उदार संगठनों में कार्य करने वाले युवाओं की सराहना करते हुए उन प्रयासों में अधिक लोगों को संलग्न होने हेतु प्रोत्साहन दिया।

करुणा की जयन्ती के चिन्ह में शांति। संत पापा ने यह चिन्तन करने हेतु निमंत्रण दिया कि हमारे जीवन में किस प्रकार उदासीनता प्रकट होता है। उन्होंने देश के नेताओं से यह अपील की कि रोजगारी, भूमि तथा आवास से रहित भाई-बहनों का विशेष ख्याल रखें। उन्होंने युद्ध विराम की अपील दुहरायी तथा कहा कि इसके लिए क्षमाशीलता एक सही उपाय है।

अंत में उन्होंने सभी को नूतन वर्ष की शुभकामनाएँ अर्पित की तथा माता मरियम की मध्यस्थता द्वारा प्रार्थना की कि मानव परिवार में हमारी ज़रूरतों को समझने वाली धन्य कुँवारी मरियम अपने पुत्र येसु से प्रार्थना करे ताकि भाईचारा एवं एकतापूर्ण विश्व के निर्माण के हमारे दैनिक प्रयास में सफल हो सकें।








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