2015-12-16 16:47:00

जयन्ती की एक विशेष निशानी है पापस्वीकार


वाटिकन सिटी, बुधवार 16 नवम्बर 2015 (सेदोक, वी. आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में  जमा हुए हज़ारों तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को इतालवी भाषा में  संबोधित करते हुए कहा-

प्रिय भाइयो एवं बहनो,

सुप्रभात,

पिछले सप्ताह हमने संत जोन लातेरन रोम के महागिरजाघर का पवित्र द्वार खोला और इसी के साथ विश्व के सभी धर्मप्रान्तों के महागिरजाघरों के पवित्र द्वारों को जो करुणा के द्वार हैं। मेरी अभिलाषा यही है कि पवित्र द्वार की यह निशानी करूणा के जयन्ती वर्ष में सभी के लिए ईश्वर के प्रेम को अनुभव करने का एक माध्यम बने। यह पवित्र वर्ष कलीसिया में और रोम के सभी धर्मप्रान्तों में मनाया जाये जो हमारी सार्वभौमिक सामुदायिकता की प्रत्यक्ष निशानी है। हमारी यह कलीसियाई एकता और प्रगाढ़ बने क्योंकि दुनिया में कलीसिया पिता ईश्वर के प्यार और दया की संजीव मिशाल पेश करता है।

दिनांक 8 दिसम्बर को मैं विशेष रूप से रेखांकित करना चाहा क्योंकि आज से 50 वर्ष पूर्व यह द्वितीय वाटिकन महासभा की समापन का दिन रहा। वास्तव में महासभा ने कलीसिया को सामुदायिकता के रहस्य से प्रकाशित किया है जो हमेशा से केवल एक ही कलीसिया है जिसे येसु ने संसार में प्रसारित करना चहा और जिसके कारण उन्होंने अपने को समर्पित कर दिया। कलीसिया येसु ख्रीस्त से संयुक्त है और येसु में जीवित रहती है।

सामुदायिकता का रहस्य कलीसिया को पिता की निशानी बनाता है जो हमारे जीवन में बढ़ता और सबल होता है जब हम येसु के क्रूस में उनके प्रेम को पहचानते और उसी प्रेम में अपने को सराबोर करते हैं। यह हमारे लिए अन्तत प्रेम है जिसमें ईश्वरीय क्षमा और दया का चेहरा दिखाई देता है।

लेकिन क्षमा और दया केवल सुन्दर शब्द मात्र न रहें लेकिन हम इसे अपने रोजमर्रा के जीवन में अनुभव करें। प्रेम और क्षमा हमारे जीवन की सशक्त निशानी हैं जो विश्वास में हमारे हृदयों को परिवर्तित करता है जिसके द्वारा हम ईश्वर के जीवन को अपने जीवन में जीते हैं। हम क्षमा और प्रेम का जीवन जीते हैं जैसे, येसु हमें सीखाते हैं। यह हमारा जीवन चक्र है जो बाधाओं या अपवादों के बावजूद हमें सदैव ईश्वर की उपस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

यह ख्रीस्तीय जीवन की निशानी दूसरे रूपों में परिवर्तित होती है जो जयन्ती की विशेषताएँ हैं। मैं सोचता हूँ कि कितने लोगों पवित्र द्वार में प्रवेश करेंगे जो इस साल सचमुच दया का प्रवेश द्वार है।

द्वार स्वयं येसु ख्रीस्त हैं जो कहते हैं, “मैं ही द्वार हूँ। यदि कोई  मुझ से होकर प्रवेश करेगा, तो उसे मुक्ति प्राप्त होगी। वह भीतर-बाहर आया-जाया करेगा और उसे चरागाह मिलेगा। (यो.10.9) पवित्र द्वार येसु मैं हमारे विश्वास की निशानी है जो हमारा न्याय करने नहीं वरन् हमें बचाने आये। यह हमारे सच्चे हृदय परिवर्तन की निशानी है। जब हम इस द्वार में प्रवेश करते हैं तो हमें याद करना है कि हमें भी अपने दिल के द्वार दूसरों के लिये खोलना है। पवित्र साल हमारे लिए प्रभावहीन होगा यदि हम येसु को अपने जीवन में प्रवेश करने न दें जो हमें दूसरों तक पहुँचने और उन्हें प्यार करने को हमें प्रेरित करता है अतः जिस तरह पवित्र द्वार खुला रहता है क्योंकि यह ईश्वर की निशानी है जो हमें स्वीकारते और हमें संभालते हैं उसी तरह हमें भी अपने हृदय रूपी द्वार बिना भेदभाव के दूसरों के लिए खुला रखना है।

जयन्ती की एक विशेष निशानी है पापस्वीकार। इस संस्कार में हमारा मेल-मिलाप ईश्वर से होता है और हम उनकी दया का अनुभव प्रत्यक्ष रूप में करते हैं। ईश्वर हमें हमारी कमजोरियों और विरोधाभास विचारों के बावजूद हमें समझते हैं। इतना ही नहीं वह हमें अपने प्यार में आश्वासन देते हैं कि जब हम अपने पापों को स्वीकारते हैं तो वे हमारे निकट रहते हैं और हमें निरन्तर आगे बढ़ने मैं हमारी सहायता करते हैं।

कितनी बार मैंने यह सुना है, “फादर, मैं क्षमा नहीं कर सकता।” लेकिन आप कैसे ईश्वर से क्षमा की याचना कर सकते हैं यदि आप दूसरों को क्षमा करने के योग्य नहीं हैं। निश्चित ही क्षमा करना आसान नहीं होता, क्योंकि हम हृदय से कमजोर हैं लेकिन उनकी शक्ति से हम ऐसा कर सकते हैं और यदि हम अपना हृदय उनकी दया के लिए खोलते हैं तो हम भी क्षमा देने के योग्य बन जाते हैं।

इसलिए आप साहसी बने। हम ईश्वर के अथाह प्रेम की निशानी में इस जयन्ती की शुरूआत करते हैं। ईश्वर हमारे साथ रहेंगे और हमें अपने प्रेम की निशानी का एहसास करायेंगे।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और आमदर्शन समारोह में भाग लेने आये सब का अभिवादन करते हुए कहा,
मैं इंग्लैंड, यूक्रेन, इंडोनेशिया और संयुक्त राज्य अमरीका से आज के आमदर्शन समारोह में भाग लेने आये आप सब तीर्थयात्रियों और अंग्रेजी बोलने वाले आगंतुकों का स्वागत करता हूँ। मैं अपनी प्रार्थनाओं के साथ शुभकामनाएँ अर्पित करता हूँ कि करूणा की जयंती आप के लिए आध्यात्मिक नवीकरण का समय हो। सर्वशक्तिमान ईश्वर की खुशी और शांति आप के साथ सदैव बनी रहे। ईश्वर आप सब का भला करे। इतना कहने के बाद संत पापा ने सब को अपना प्रेरितिक आर्शीवाद दिया। 








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