2015-11-27 12:24:00

जलवायु वार्ताओं को स्वार्थ की बलि न चढ़ाने का सन्त पापा ने किया आह्वान


नायरोबी, केनिया, शुक्रवार, 27 नवम्बर 2015 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को नायरोबी में संयुक्त राष्ट्र संघीय पर्यावरण एजेन्जी यूनेप के मुख्यालय में विश्व के लगभग 3000 प्रतिनिधि नेताओं को सम्बोधित कर कहा कि यदि पेरिस में आयोजित जलवायु वार्ताओं को निजी स्वार्थ की बलि चढ़ाया गया तो इसके परिणाम विध्वंसकारी होंगे।

जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में आयोजित विश्व शिखर सम्मेलन "कॉप 21" की पूर्व सन्ध्या नायरोबी में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि विश्व के नेताओं को जलवायु परिवर्तन एवं निर्धनता निवारण के लिये ऐतिहासिक समझौते पर सहमत होना चाहिये।

उन्होंने कहा, "कुछ दिनों बाद पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर एक महत्वपूर्ण सम्मेलन होने जा रहा है जहाँ अन्तरराष्ट्रीय समुदाय इससे सम्बन्धित मुद्दों पर विशद विचार विमर्श करेगा। यह अत्यधिक दुःख का विषय होगा और मैं तो कहूँगा कि विध्वंसकारी होगा यदि जनकल्याण पर निजी स्वार्थ हावी हो जायें तथा अपनी परियोजनाओं की रक्षा के उद्देश्य से सूचना की ग़लत व्याख्या की जाये।" सन्त पापा ने कहा, "इस अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भ में, हमारे समक्ष एक विकल्प प्रस्तुत है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती, और यह विकल्प हैः पर्यावरण को या तो संरक्षित कर उसे समृद्ध बनाना या फिर उसे नष्ट कर देना।" उन्होंने कहा, "सृष्टि की रक्षा के लिये छोटा अथवा बड़ा, वैयक्तिक अथवा सामूहिक जो भी कदम हम उठाते हैं वह उदार एवं योग्य रचनात्मकता की ओर उठाया गया सुनिश्चित्त मार्ग है जिसका लक्ष्य मानव परिवार की भलाई है।" 

जलवायु को सम्पूर्ण मानवजाति की अनमोल धरोहर निरूपित कर सन्त पापा ने कहाः "जलवायु सबकी सामान्य धरोहर है, यह सभी के लिये है तथा सभी का संसाधन है तथा जलवायु परिवर्तन एक विश्वव्यापी समस्या है जिसके प्रति प्रत्येक को सचेत रहना चाहिये। इसके गम्भीर अभिप्राय हैं जिनमें पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं संसाधनों के वितरण से सम्बन्धित समस्याएं निहित हैं। आज मानवजाति के समक्ष प्रस्तुत यह एक महान चुनौती है और इस चुनौती के समक्ष हमारे प्रत्युत्तर को निर्धनों एवं हाशिये पर जीवन यापन करनेवाले लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा को ध्यान में रखना होगा।"

पर्यावरण की सुरक्षा एवं ईश्वर द्वारा सृजित सृष्टि के प्रति सम्मान के लिये सन्त पापा ने बच्चों एवं युवाओं की उचित शिक्षा एवं प्रशिक्षण की गुहार लगाई, उन्होंने कहा, "सृष्टि की रक्षा के प्रति हमारी मानसिकता में आवश्यक परिवर्तन शिक्षा एवं प्रशिक्षण के प्रति दृढ़ संकल्प के बिना नहीं आ सकता है। तब तक कुछ नहीं हो सकता जब तक राजनैतिक एवं तकनीकी समाधान शिक्षा के समन्वित न किये जायें क्योंकि शिक्षा ही जीवन यापन के नये तौर तरीकों का प्रस्ताव कर सकती है।" उन्होंने कहा कि शिक्षा की नई संस्कृति की बहाली अनिवार्य है जिसमें बच्चों, किशोर- किशोरियों, स्त्री पुरुषों, युवाओं तथा वयस्कों को देख-रेख की संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाये। अपशिष्ट या कचरे के समान फेंक देने की संस्कृति के बजाय, अपनी देख-रेख, अन्यों की देख-रेख, पर्यावरण की देख-रेख का पाठ सिखाया जाये ताकि सभी लोग नवीन दृष्टिकोण एवं नई जीवन शैली अपनाकर अपने लिये तथा भावी पाढ़ियों के लिये सृष्टि को सुरक्षित रख सकें।"                          








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