वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 12 नवम्बर 2015 (वीआर सेदोक): स्लोवाकिया के काथलिक धर्माध्यक्षों से सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि वे ख्रीस्तीय धर्म के इतिहास को न भुलायें जिसने उन्हें उदात्त मानवीय मूल्यों की शिक्षा प्रदान की है।
कलीसिया के परमाध्यक्ष के साथ अपनी पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात, "आद लीमिना" के लिये स्लोवाकिया से रोम पधारे काथलिक धर्माध्यक्षों से मुलाकात कर सन्त पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को स्लोवाकी धर्माध्यक्षों को सामूहिक रूप से सम्बोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने आधुनिक युग की चुनौतियों के बीच कलीसिया की बुलाहट पर जोर देते हुए सुसमाचार की घोषणा करने तथा मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बनाये रखने हेतु उनका सम्मान करने एवं उनके प्रति उदारता की भावना का साक्ष्य प्रस्तुत करने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि यह वांछनीय है कि स्लोवाकिया की जनता अपनी सांस्कृतिक पहचान, जातिगत धरोहर तथा आध्यात्मिक मूल्यों को बनाये रखते हुए काथलिक परम्पराओं से नजदीकी से जुड़ा रहे विशेषकर, मानव जीवन की मर्यादा तथा परिवार के आवश्यक कार्यों के संबंध में, ताकि दुनिया के साथ वार्ता में अपना योगदान दे सके। आज लोगों को ख्रीस्तीय मूल्यों से आलोकित होने की आवश्यकता कहीं अधिक है। अतः कलीसिया के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह आशा बनाये रखें ताकि वर्तमान युग की सभी चुनौतियाँ ख्रीस्त से मुलाकात करने का नया माध्यम बने तथा लोगों को सच्चे विकास की ओर अग्रसर करे।
संत पापा ने लोकधर्मियों को सम्बोधित कर कहा कि उनकी बुलाहट है कि वे भौतिक सच्चाईयों द्वारा सुसमाचार प्रचार की भावना को बढ़ावा दें। समाज में सुसमाचार का आनन्दमय साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु उन्हें कलीसिया का सक्रिया हिस्सा बनने की आवश्यकता है।
संत पापा ने धर्माध्यक्षों को सम्बोधित कर परिवारों के प्रति उनकी प्रेरिताई की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस पहल के लिए धर्मप्रांतीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर पूर्ण पारिवारिक प्रेरिताई का होना आवश्यक है। परिवार की प्रेरितिक देखभाल में युवाओं को भी संलग्न करने की आवश्यकता है जो कलीसिया तथा समाज के भविष्य हैं। युवाओं को जीवन के सच्चे अर्थ को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
संत पापा ने धर्माध्यक्षों को पुरोहितों के प्रति पितातुल्य चिंता करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि पुरोहित आदर्श ख्रीस्तीय जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करें, धर्माध्यक्षों के साथ जुड़े रहें, अन्य पुरोहितों के साथ भ्रातृभाव बनाये रखे तथा सभी के साथ भद्रता से पेश आयें। धर्माध्यक्ष पुरोहितों की समस्याओं को धीरज से सुनने के लिए तैयार हों।
कलीसिया जो ईश्वर तथा आपस में एकता का चिन्ह एवं माध्यम है वह एकता का घर एवं स्कूल बने जिससे हम दूसरों की प्रशंसा एवं उनका स्वागत कर सकते हैं। यह भावना एक अच्छा संबंध बनाये रखने हेतु अत्यन्त उपयोगी है।
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