फ्लोरेंस, मंगलवार, 10 नवम्बर 2015 (वीआर सदोक): संत पापा फ्राँसिस मंगलवार 10 नवम्बर को प्रातो में कार्यकर्तों से मुलाकात करने के पश्चात् फ्लोरेंस रवाना हुए जहाँ उन्होंने वहाँ के महागिरजाघर में चल रहे कलीसिया की पाँचवीं सम्मेलन के प्रतिभागियों से मुलाकात की।
उन्होंने सम्मेलन को सम्बोधित कर कहा कि यह सुन्दर गिरजाघर अंतिम महान्याय को दर्शाता है। करूणा के इस महान्याय के आलोक में हमारे घुटने श्रद्धा से झुक जाते हैं तथा हमारे हाथ एवं पाँवों को स्फूर्ति मिलती है। येसु को केंद्र मानकर ही हम मानवता पर विचार कर सकते हैं तथा उन्हीं में हम सच्चे व्यक्ति का चेहरा देख सकते हैं। येसु ने कहा, ″तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?″
संत पापा ने प्रश्न किया कि उनके चेहरे पर गौर करते हुए हम क्या देखते हैं? ईश्वर का चेहरा जिसने अपने को खाली कर सेवक का रूप धारण किया तथा दीन बनकर मरण तक आज्ञाकारी रहे। येसु का चेहरा उन सभी भाई बहनों के समान है जो अत्याचार के शिकार होते तथा जिन्हें गुलामी एवं खालीपन सहना पड़ता है। वह चेहरा हमारी ओर ताक रहा है। जब तक हम विनम्र नहीं बन जाते हम उस चेहरे को नहीं देख सकते हैं और इस तरह हम ख्रीस्तीय मानवतावाद को नहीं समझ सकते हैं।
संत पापा ने कहा कि शब्द जो अलंकृत, सुसंस्कृत तथा परिष्कृत हो किन्तु उसमें विश्वास का अभाव हो तो वह ‘वैक्यूम’ की आवाज की तरह है। उन्होंने ख्रीस्तीय मानवतावाद जो ख्रीस्त का मनोभाव है उसे प्रबल आंतरिक शक्ति कहा जो हमें जीने तथा निर्णय करने की शक्ति प्रदान करती है। उनमें तीन मुख्य मनोभाव हैं, दीनता, आनन्द तथा निःस्वार्थ भावना।
संत पापा ने इन तीनों मनोभावों पर चिंतन करते हुए कहा कि ये तीनों मनोभाव ख्रीस्तीय मानवतावाद के मनोभाव हैं तथा ईश पुत्र की विनम्रता से आते हैं। ये मनोभाव हमें शिक्षा देते हैं कि हम ‘अधिकार’ की भावना के जाल में न फंसें। कलीसिया यदि ख्रीस्त का मनोभाव नहीं अपनाती है तो यह भ्रम में डाल देती है तथा अपनी सार्थकता खो देती है। कलीसिया जो केवल अपनी तथा अपनी रूचि का ध्यान रखती है तो वह उदास हो जायेगी।
संत पापा ने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि वे उदासीनता की भावना से बाहर आयें। उन्होंने कहा, ″आपकी जवानी को कोई तुच्छ न समझे किन्तु वचन एवं कर्म का आदर्श माने। उन्होंने इटली के निर्माताओं से कहा कि वे बेहतर इटली का निर्माण करें। जीवन को झरोखे से नहीं देखें किन्तु सामाजिक एवं राजनीतिक वार्ता के सहभागी बनें। ईश्वर का प्रेम सभी संबंधों का आधार बने। समय हमें समस्याओं को एक रूकावट के रूप में नहीं किन्तु चुनौती के रूप में देखने की प्रेरणा दे रहा है। प्रभु विश्व में सक्रिय हैं तथा वे कार्य कर रहे हैं। अतः हम भी अपनी पगडंडियों को छोड़ चौराहों में आयें तथा सभी को एक साथ लायें, अंधा, लँगड़ा, बहरा तथा विकलांग कोई छूटने न पाये। आप जहाँ भी हैं दीवाल या सीमा नहीं किन्तु ऐसे क्षेत्र का निर्माण करें जिसमें सभी आ सकें।
All the contents on this site are copyrighted ©. |