2015-11-07 16:36:00

काथलिक नर्सों ने जीवन के संरक्षक होने का प्रण किया


भारत, शनिवार, 7 नवम्बर 2015 (ऊकान): भारत की काथलिक नर्सों ने मृत्यु की संस्कृति के विरूद्ध जीवन के संरक्षक होने की प्रतिज्ञा दुहराई।

मुम्बई में आयोजित नर्सों की 20 वीं वार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा गया कि ″नर्स होने के कारण हम अपने आपको जीवन के संरक्षक के रूप में देखती हैं। मृत्यु की संस्कृति के विपरीत हम चाहते हैं कि प्रेम, शांति, एकजुटता तथा न्याय के मूल्यों पर एक स्नेहिल समाज की स्थापना हो।″

भारत के 46 धर्मप्रांतों के 11000 नर्सों का प्रतिनिधित्व करती हुई 325 नर्सों ने सभा में भाग लिया जिसकी विषय वस्तु ″जीवन की सेवा में देखभाल एवं सहानुभूति की चुनौतियाँ थी।″

2 नवम्बर को समाप्त होने वाले तीन दिवसीय सम्मेलन में भारत के प्रेरितिक राजदूत महाधर्माध्यक्ष सलवातोरे पेन्नाक्यो, 5 धर्माध्यक्ष,16 पुरोहितों तथा मेडिकल विभाग के विशेषज्ञ भी उपस्थित हुए।

काथलिक नर्सों ने स्मरण किया कि कलीसिया स्वास्थ्य सेवा में संलग्न है क्योंकि चंगाई ख्रीस्त का कार्य है। येसु की प्रेरिताई थी मानव जीवन को आशा से भर देना। वे आये ताकि हम जीवन प्राप्त करें और परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें। (यो. 10,10) परिपूर्ण जीवन की पृष्ट भूमि पर हम येसु की चंगाई कार्य को देख सकते हैं जो उनके मिशन का बड़ा हिस्सा था। येसु अपने शिष्यों को भेजते हैं ताकि वे सभी बीमारों एवं दुर्बल लोगों को चंगा करें। कलीसिया ने बीमारों, पीड़ितों एवं मृत्यु शय्या पर पड़े लोगों की सेवा की है इस कार्य के द्वारा उसने मानव प्रतिष्ठा को सुदृढ़ किया है तथा मानव जीवन को गरिमा प्रदान किया है।








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