2015-10-27 15:43:00

युद्ध विराम हेतु कार्य करना आवश्यक


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015 (वीआर सेदोक): ″इन लोगों एवं इनके परिवारों को विशेष प्रेरितिक चौकसी की आवश्यकता है जो इन्हें कलीसिया के मातृतुल्य स्नेह का एहसास दिलाता है। उनके साथ नियुक्त पुरोहितों का कर्तव्य है कि वे अपनी उपस्थिति द्वारा उनकी जीवन यात्रा में भाईचारा एवं सांत्वना से उनका साथ दें तथा उन्हें समर्थन प्रदान करें।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने सैनिकों के लिए नियुक्त पुरोहितों के प्रशिक्षण प्रतिभागियों से मुलाकात करते हुए कही।

धर्माध्यक्षों के धर्मसंघ, न्याय एवं शांति के लिए बनी परमधर्मपीठीय समिति तथा अंतरधार्मिक वार्ता संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के संयुक्त तत्वधान में आयोजित प्रशिक्षण के प्रतिभागियों से सोमवार को मुलाकात करते हुए संत पापा ने युद्ध विराम की अपील की।

प्रशिक्षण में आधुनिक युग की चुनौतियों के मद्देनजर, संघर्ष के दौरान मानव प्रतिष्ठा की रक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया।

संत पापा ने कहा कि दुर्भाग्य से अफ्रीका, यूरोप तथा मध्यपूर्व में हिंसा एवं विश्व के विभिन्न हिस्सों में सशस्त्र संघर्ष के कारण मामला अत्यन्त पेचीदा हो चुका है।

उन्होंने पुरोहितों से कहा, ″इस युग में जब हम तृतीया विश्व युद्ध सा महसूस कर रहे हैं। सैनिकों एवं उनके परिवारों को आध्यात्मिक तथा नैतिक आयाम प्रदान करने की आवश्यकता है जो उन्हें कठिनाईयों का सामना करने एवं देश तथा मानवता की सेवा में शोक समाचारों को स्वीकार कर पाने में मदद करेगा।″

 ″कई सैनिक युद्ध अथवा शांति निर्माण के मिशन से कई आंतरिक चोटों के साथ वापस लौटते हैं। युद्ध अपनी अमिट छाप छोड़ सकती है।″

संत पापा ने कहा कि युद्ध के दौरान सैनिकों द्वारा अत्याचार से पीड़ित आध्यात्मिक घावों की चंगाई के लिए चिंता करना निश्चय की उचित है।

संत पापा ने निर्दोष लोगों की रक्षा हेतु मानवीय कानून पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसका उद्देश्य निर्दोष लोगों की रक्षा करना है। यह हथियारों को रोकता है जो भयानक और अनावश्यक पीड़ा उत्पन्न करता तथा पर्यावरण एवं सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करता है। इस महत्वपूर्ण मिशन के कारण सैनिकों एवं सभी सैन्य बलों के बीच मानवीय कानून को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

संत पापा ने कहा कि एक ख्रीस्तीय के रूप में हमें पक्का विश्वास है कि व्यक्ति के योग्य एवं मानवीय समुदाय के रूप में हमारा अंतिम लक्ष्य युद्ध को खत्म करना है।

उन्होंने सलाह देते हुए कहा, ″हमें निरंतर सेतु का निर्माण करना चाहिए जो एक-दूसरे को जोड़ता है। हमें मध्यस्थ तथा मेल-मिलाप की खोज में मदद करना चाहिए। कभी भी दूसरे व्यक्ति को एक शत्रु के रूप में देखने एवं उसको नष्ट करने के प्रलोभन में हमें नहीं पड़ना चाहिए किन्तु उसे एक ऐसा व्यक्ति स्वीकार करना है जो मानव प्रतिष्ठा का पात्र है तथा ईश्वर द्वारा सृष्ट उन्हीं का प्रतिरूप है।








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