2015-10-26 17:02:00

विश्वासी अपने जीवन में ईश्वर की मुक्तिदायी कार्य का अनुभव करता है


वाटिकन सिटी, सोमवार, 26 अक्टूबर 2015 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर में रविवार 25 अक्टूबर को, विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के समापन पर धन्यवाद स्वरूप संत पापा फ्राँसिस ने यूखरिस्तीय बलिदान अर्पित किया तथा उसके उपरांत उन्होंने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, ″इस रविवार का तीनों पाठ येसु में ईश्वर की करुणा, पितृभाव तथा स्थायित्व को प्रकट करता है।″  

उन्होंने नबी येरेमियह के ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए कहा कि राष्ट्रीय आपदा के बीच, ईश प्रजा अपने शत्रुओं द्वारा निर्वासित की गयी। नबी येरेमियह घोषित करते हैं कि निर्वासन के बावजूद प्रभु ने अपनी प्रजा इस्राएल के वंश को बचा लिया। (31:7) उन्होंने उन्हें क्यों बचा लिया? क्योंकि वे उनके पिता थे (पद. 9) और एक पिता की तरह वे अपने बच्चों की सुधि लेते थे। उन्होंने राह में उनका साथ दिया। उन में अंधे, लंगड़े, गर्भवती और प्रसूता स्त्रियाँ थीं।″ (31:8)

उनके पितृतुल्य स्नेह ने अत्यधिक विलाप एवं उदासी के बाद लोगों के सांत्वना का मार्ग प्रशस्त किया। ईश्वर के प्रति विश्वस्त बने रहने, विदेश में भी धीरज से उनकी खोज करने के कारण ईश्वर ने उनकी दासता को स्वतंत्रता में बदल दिया, उनकी एकाकीपन को समुदाय में परिणत कर दिया, जो रोते हुए बीज बो रहे थे वे आनन्द के साथ फसल काटेंगे। (स्तोत्र 125: 6)

खजूर रविवार को हम भी अपने आनन्द की अभिव्यक्ति करते हैं जो प्रभु के मुक्ति का आनन्द है। ″हमारे मुख पर हँसी खिल उठी, हम आनन्द के गीत गाने लगे।″ (पद.2)

विश्वासी वह है जो अपने जीवन में ईश्वर की मुक्तिदायी कार्य का अनुभव करता है।

संत पापा ने कहा कि हम धर्माध्यक्षों ने अनुभव किया कि कठिनाई से बोने का अर्थ क्या है, फसल लुनने की कृपा के लिए आँसू तथा आनन्द का अनुभव जो हमारी शक्ति और क्षमता के परे था।

इब्रानियों के नाम पत्र हमें येसु की दयालुता को दिखलाता है। ″वह अज्ञानियों और भूले भटके लोगों के साथ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार कर सकता है क्योंकि वह स्वयं दुर्बलताओं से घिरा है।″ (इब्रा.5:2)

येसु महापुरोहित हैं वे पवित्र तथा निर्दोष हैं किन्तु वे हमारी ही तरह दुर्बल थे, पाप को छोड़ सभी बातों में उन्हें भी प्रलोभन का सामना करना पड़ा। (पद 4:15)

यही कारण है कि वे एक नये तथा स्थायी व्यवस्थान के मध्यस्थ हैं जिन्होंने हमारे लिए मुक्ति प्रदान किया है।

आज का सुसमाचार पाठ सीधे तौर पर प्रथम पाठ से जुडा है। जिस तरह स्वतंत्र इस्राएलियों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया उसी तरह बारतेमियुस भी येसु की दया के लिए उन्हें धन्यवाद देता है।

येसु जेरिखो के रास्ते पर हैं यद्यपि उन्होंने येरूसालेम जाने की अपनी महत्वपूर्ण यात्रा अभी-अभी आरम्भ की है तथापि वे बारतेमेयुस की पुकार का उत्तर देने के लिए ठहर जाते हैं। येसु उसके अनुनय विनय से द्रवित हो जाते हैं तथा उसकी परिस्थिति को समझ जाते हैं। वे मात्र चंगाई देना नहीं किन्तु उनके साथ व्यक्तिगत मुलाकात करना चाहते हैं। वे उन्हें कोई सलाह नहीं देते वरन्  पूछते हैं कि तुम मुझसे क्या चाहते हो। (मार.10:51) संत पापा ने कहा कि भले ही यह प्रश्न बेकार लगे कि एक अंधा व्यक्ति दृष्टि के अलावा दूसरा और क्या मांग सकता है। फिर भी, यह सवाल उन्हें एक-दूसरे के करीब लाता है तथा यह दर्शाता है कि येसु जरूरतमंद लोगों की मदद करना चाहते हैं। वे हम प्रत्येक से हमारे जीवन, हमारी वास्तविक परिस्थिति के बारे बातें करना चाहते हैं जिससे हमारा जीवन उनसे बिलकुल छिपा न रहे। बरतेमियुस को कहे गये येसु के कथन, ″तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा किया″ को सुनना (पद. 52) कितना सुखद है। येसु बरतेमियुस के विश्वास पर दृष्टि डालते हैं। संत पापा ने कहा कि हम जितना अधिक अपने आप पर विश्वास नहीं करते उतना येसु हम पर विश्वास करते हैं।

येसु ने अपने चेलों से बरतेमियुस को बुलाने को कहा। चेलों ने अंधे व्यक्ति को दो शब्द कहा, पहला, ‘ढारस रखो’, जिसका शाब्दिक अर्थ है विश्वास करो, साहस रखो।″ निश्चय ही, येसु के साथ मुलाकात ही हमें कठिनतम परिस्थिति का सामना करने का साहस प्रदान करता है।

दूसरा शब्द है, ‘उठो’। येसु ने इस शब्द का प्रयोग कई बीमार लोगों को चंगाई प्रदान करने के लिए किया था। येसु के शिष्यों ने अपनी ओर से कुछ नहीं किया, वे मात्र येसु के आदेश अनुसार लोगों की मदद करते थे। संत पापा ने कहा कि येसु के शिष्य आज भी इसी के लिए बुलाये जाते हैं। मानवता जब बरतेमियुस की तरह पुकार रही है तो येसु की तरह प्रत्युत्तर देने से दूसरा कोई शब्द नहीं है। हमें सबसे बढ़कर अपने हृदय को येसु के समान बनाना है।

संत पापा ने कहा कि दुःख एवं संघर्ष के क्षण ईश्वर की करुणा को एहसास करने का अवसर होता है।

येसु के शिष्यों की कमजोरियों की ओर गौर करते हुए संत पापा ने कहा कि जो लोग येसु का अनुसरण करते हैं उनके लिए प्रलोभन भी हैं। आज का सुसमाचार उन में से दो प्रलोभनों को प्रकट करता है।

शिष्यों में से किसी ने अंधे की पुकार सुनकर येसु की तरह नहीं रूका, वे आगे बढ़ते रहे, जैसा कि कुछ भी न हुआ हो। यदि बरतेमियुस अंधा था तो चेले बहरे थे जिसके कारण वे समस्या को नहीं समझ पाये। समस्याओं के बीच इस तरह का व्यवहार हमारे लिए भी खतरनाक है जब हम सोचने लगते हैं कि उन कठिनाईयों से प्रभावित होने की अपेक्षा आगे बढ़ने में हमारी भलाई है। इस तरह येसु के शिष्यों के समान हम येसु के साथ होते हुए भी उनकी तरह व्यवहार नहीं कर सकते। उनके सान्निध्य में रहते हुए भी हमारा दिल उनके लिए खुला नहीं होता। हम आनन्दित होने, कृतज्ञता प्रकट करने तथा उत्साह प्रकट करने की भावना को खो देते हैं। हम उनके बारे बातें कर सकते हैं उनके लिए कार्य भी कर सकते हैं किन्तु उनके हृदय से दूर रहते हैं जो घायलों की खोज करता है। यह एक प्रलोभन है, ‘भ्रम की आध्यात्मिकता’। हम वास्तविकता से तटस्थ रहकर मानवता की बंजर भूमि से होकर पार हो जाना चाहते हैं। यद्यपि हम दुनियावी दृष्टिकोण से विकास कर सकते हैं किन्तु हम उन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं तथापि येसु हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। विश्वास जो लोगों के जीवन में गहराई तक नहीं जा सकता वह शुष्क होता है तथा एक दूसरा मरुस्थल का निर्माण करता है।

दूसरा प्रलोभन है ‘निर्धारित विश्वास’। हमें ईश प्रजा के साथ चलना चाहिए किन्तु अपनी निर्धारित योजना के अनुसार यात्रा करते हैं। हमारा सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है तथा हमें लगता है कि सभी लोग उसका सम्मान करें। हम सुसमाचार के उन लोगों के समान बनने के खतरे में पड़ जाते हैं जो बरतेमियुस को फटकार कर चुप करने का प्रयास कर रहे हैं। हम उन लोगों का बहिष्कार करने लगते हैं जो हमारी इच्छा के अनुसार नहीं चलते। दूसरी ओर, येसु उन सभी लोगों को शामिल करना चाहते हैं जो उन्हें पुकारते हैं। बरतेमियुस की तरह उन में विश्वास है क्योंकि मुक्ति की आवश्यकता के प्रति जागरूकता ही येसु से मुलाकात करने का उत्तम रास्ता है।

घटना के अंत में बरतेमियुस मार्ग में ईसा के पीछे हो लिया। (पद. 52) वह न केवल अपनी दृष्टि को पुनः प्राप्त किया किन्तु येसु के साथ चलने वाले समुदाय में प्रवेश किया।

संत पापा ने सिनॉड के धर्माचार्यों से कहा कि हमने एक साथ यात्रा की है। उस रास्ते के लिए धन्यवाद जिसमें हमने येसु पर आस रखकर हमारे भाई बहनों के साथ यात्रा की है। सुसमाचार न उस रास्ते को हमारे लिए प्रशस्त किया है ताकि हम पारिवारिक प्रेम के रहस्य की घोषणा कर सकें।

आइये हम प्रभु के रास्ते पर आगे बढ़े। हम अपने को निराश होने अथवा पाप में गिरने कभी न दें। हम ईश्वर की उस महिमा को खोजें जो सभी जीवित लोगों पर चमकता है।








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