2015-10-22 08:33:00

प्रेरक मोतीः पापा जॉन पौल द्वितीय सन्त (1920-2005)


वाटिकन सिटी, 22 अक्टूबर सन् 2015: 22 अक्टूबर के दिन कलीसिया 27 वर्षों तक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष रहे सन्त जॉन पौल द्वितीय का पर्व मनाती है। कारोल वोईतीवा, सन् 1978 में, सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के नाम से कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये थे तथा सन् 2005 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर कार्य करते रहे। सन्त पापाओं के इतिहास में जॉन पौल द्वितीय, कलीसिया के परमाध्यक्ष पद पर इतने लम्बे समय तक रहनेवाले दूसरे सन्त पापा थे तथा सन् 1523 ई. के बाद से नियुक्त पहले ग़ैरइताली सन्त पापा थे।

कारोल वोईतीवा का जन्म पोलैण्ड के वादोविस्ट नगर में, 18 मई सन् 1920 को, तथा निधन रोम में 02 अप्रैल सन् 2005 को हुआ था। सन् 1929 ई. में उनकी माता का देहान्त हो गया था। उनके बड़े भाई एडमण्ड एक डॉक्टर थे जिनका देहान्त सन् 1932 ई. में हो गया था। पिता सेना के कर्मचारी थे जिनकी मृत्यु, सन् 1941 ई. में, हो गई थी।

नौ वर्ष की आयु में कारोल वोईतीवा ने पवित्र परमप्रसाद तथा 18 वर्ष का आयु में दृढ़ीकरण संस्कार ग्रहण किया था। हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद, सन् 1938 ई. में, कारोल क्रेकाव के जागेलोनियन विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिये भर्ती हो गये थे। दुर्भाग्यवश, सन् 1938 ई. में नाजी सेना के अधिकरण के फलस्वरूप उन्हें विश्वविद्यालय की पढ़ाई छोड़नी पड़ी। सन् 1940 ई. से सन् 1944 ई. तक, युवा कारोल, श्रम शिविर में कड़ी मेहनत करते रहे। तदोपरान्त, जर्मनी निष्कासित किये जाने के भय से उन्होंने सोलवे केमिकल फेक्टरी में काम करना स्वीकार कर लिया।

अपनी पुरोहितिक बुलाहट के प्रति सत्यनिष्ठ रहते हुए, सन् 1942 ई. में, कारोल वोईतीवा ने क्रेकाव के भूमिगत गुरुकुल में दर्शन एवं ईश शास्त्र का अध्ययन शुरु कर दिया था। इसी दौरान कारोल वोईतीवा, गुप्त रहकर, ड्रामा और थियेटर में भी सक्रिय रहे।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, उन्होंने क्रेकाव के बड़े गुरुकुल में अपना अध्ययन जारी रखा। पहली नवम्बर, 1946 ई. को वे पुरोहित अभिषिक्त किये गये थे। पुरोहातभिषेक के तुरन्त बाद कार्डिनल सेफिहा ने उन्हें रोम प्रेषित कर दिया था। रोम में उन्होंने फ्राँस के दोमिनिकन धर्मसमाजी गारीगो लागरांगे के अधीन रहकर अपनी प्रेरिताई का सम्पादन किया। सन् 1948 ई. में, क्रूस के सन्त जॉन पर अपना शोध प्रबन्ध लिख कारोल वोईतीवा ने ईशशास्त्र में डॉक्टरेड का पढ़ाई पूरी की। परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालय में अपने अध्ययनकाल के दौरान, अवकाशों पर वे पोलैण्ड, फ्राँस, बैलजियम तथा हॉलेण्ड के आप्रवासियों की प्रेरिताई में संलग्न रहा करते थे।

20 वीं शताब्दी के सर्वाधिक प्रभावशाली विश्व नेताओं में सन्त जॉन पौल द्वितीय की गिनती होती रही है। पोलैण्ड तथा अन्ततः सम्पूर्ण यूरोप में साम्यवाद को समाप्त करने में उनकी भूमिका अहं रही है। यहूदी एवं इस्लाम धर्मों और साथ ही ऑरथोडोक्स एवं एंगलिकन ख्रीस्तीयों के साथ काथलिक कलीसिया के सम्बन्धों को सुधारने में उनके प्रयास सराहनीय रहे हैं। हालांकि, कृत्रिम गर्भनिरोध तथा महिलाओं के पुरोहिताभिषेक के विरुद्ध उनकी शिक्षाओं के कारण कथित प्रगतिशील वर्ग द्वारा उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा तथापि, काथलिक विश्वास के तत्वों को अक्षुण रखने हेतु उनकी दृढ़ता एवं संकल्प की व्यापक प्रशंसा की गई है।

सन् 1978 ई. में कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त होने के बाद से विश्व के 129 देशों की प्रेरितिक यात्राएं करनेवाले सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय, ऐतिहासिक दृष्टि से, विश्व के उन नेताओं की सूची में शमिल हो गये हैं जिन्होंने विश्व में सबसे अधिक यात्राएँ की हैं।

पवित्रता हेतु सार्वभौमिक बुलाहट पर बल देते हुए सन्त जॉन पौल द्वितीय ने 1,340 प्रभु सेवकों को धन्य तथा 483 को सन्त घोषित किया। यह संख्या जॉन पौल द्वितीय से पूर्व परमाध्यक्ष पद पर रहे पाँच सन्त पापाओं द्वारा घोषित सन्तों से भी अधिक है। वर्तमान कार्डिनलों में अधिकांश की नियुक्ति सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय द्वारा ही की गई थी। उनके परमाध्यक्षीय काल का प्रमुख उद्देश्य काथलिक कलीसिया का रूपान्तरण एवं प्रतिस्थापन था, उनकी अभिलाषा थी, "कलीसिया को एक नवीन सम्विदा के केन्द्र में स्थापित करना, ऐसी सम्विदा जो यहूदियों, इस्लाम तथा ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को एकता एवं मैत्री के सूत्र में बाँध सके।" 19 दिसम्बर, सन् 2009 को सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय को, उनके उत्तराधिकारी सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने पूजनीय तथा 01 मई, सन् 2011 को धन्य घोषित किया था।

चिन्तनः "धर्मियों, प्रभु में आनन्द मनाओ। स्तुतिगान करना भक्तों के लिये उचित है। वीणा बजाते हुए प्रभु का धन्यवाद करो, सारंगी पर उसका स्तुतिगान करो, उसके आदर में नया गीत गाओ" (स्तोत्र ग्रन्थ, 33: 1,2)। 








All the contents on this site are copyrighted ©.